प्रतिष्ठांजनशलाका महामहोत्सव के आयोजनों में रमे श्रद्धालु
राष्ट्रसन्तश्री की निश्रा मे निकली भव्य शोभायात्रा
रतलाम 16 अगस्त(इ खबरटुडे) जयन्तसेन धाम में श्री मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय एवं श्री राजेन्द्रसूरि गुरुमंदिर के प्रतिष्ठांजनशलाका महामहोत्सव के आयोजनों की धूम मची हुई है । मंगलवार को पंचकल्याणक पूजा के साथ दीक्षा कल्याणक और वर्षीदान के आयोजन में हजारों श्रद्धालु उमड़े।
शोभायार्ता में दीक्षा कल्याणक की जय-जयका
राष्ट्रसन्तश्री जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में भव्य शोभायात्रा शोभायात्रा निकली। इससे पूर्व भगवान के 18 अभिषेक, नामकरण, पाठशालागमन, लग्न महोत्सव, मामेरा, राज्याभिषेक, माता-पिता, कुल महत्तरा द्वारा आज्ञा प्रदान के प्रसंगों के मंचन ने भी समां बांधा। शोभायार्ता में दीक्षा कल्याणक की जय-जयकार हुई।
राष्ट्रसन्तश्री ने दीक्षा कल्याणक के प्रसंग पर कहा कि संयम के पथ पर चलने वाला साधक ही सिद्धि प्राप्त करता है । परमात्मा भी मोह-माया को त्यागकर संयम पथ की ओर अग्रसर होते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि त्याग बिना वीतराग बनना संभव नहीं । संसार के किसी भी पदार्थ में शाश्वत सुख देने का सामर्थ्य नहीं है । उसमें मात्र सुख का आभास है । आत्मा के लिए स्थिर होने वाला ही शाश्वत सुख को पा सकता है । उन्होंने कहा आत्मा के गुणों नम्रता, क्षमा, सहनशीलता, ज्ञान, सरलता आदि की प्राप्ति से ही मोक्ष मिल सकता है । संयम का मार्ग ही इन गुणों को प्राप्त कर सकता है। बाहरी वैभव को छोडऩे वाले को ही आत्मवैभव का आनन्द मिलता है ।
इस मौके पर जयन्तसेन धाम परिसर में बैण्डबाजों के साथ परमात्मा के दीक्षा कल्याणक का भव्य चल समारोह निकला। उसके बाद परिसर में वर्षीदान के आयोजन में श्रद्धालुओं ने बढ़-चढक़र हिस्सा लिया । काश्यप परिवार के सिद्धार्थ काश्यप ने संगीतमय स्तवन प्रस्तुत कर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। चातुर्मास आयोजक व विधायक चेतन्य काश्यप परिवार की ओर से तपस्वी प्रकाश गुगलिया का सम्मान किया गया। दादा गुरुदेव की आरती का लाभ श्रेणिकलाल दिलीप कुमार मुकेश कुमार ओरा (आंचल टेंटवाले) ने लिया।
नमो को आत्मसात करना जरुरी: मुनिराजश्री
जयन्तसेन धाम में चल रही नौ दिवसीय नवकार आराधना अंतिम चरण में पहुंच गई है। मंगलवार को विभिन्न प्रांतों से आए आराधकों ने लाखों मंर्तों का जाप कर वातावरण में आध्यात्मिकता घोल दी। मुनिराज श्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि नवकार के नमो का संदेश है कि महान बनना है तो नमो को आत्मसात करना ही होगा। नमो के बिना कोई साधना सफल नहीं हो सकती । नमो का आचरण में आना भी जरुरी है । प्रभु के सामने झुकने वाला सबको पसंद आता है, लेकिन जो सबके सामने झुकता है, वह प्रभु को पसंद आता है । नमो का यही उपदेश है कि जीवन में किसी बात का अहंकार नहीं करना चाहिए । उन्होंने कहा कि फल लगने पर जैसे वृक्ष झुक जाता है, वैसे ही व्यक्ति को सत्ता, सम्पत्ति, ज्ञान आदि सभी मिलने के बाद नम्र बनना चाहिए। नमो से ही साधना-आराधना की शुरूआत होती है । यही धर्म का प्रवेश द्वार है । इस मौके पर मुनिराजश्री अपूर्वरत्न विजयजी म.सा. ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से नवकार मंत्र की महिमा बताई। नवकार आराधकों कांतिलाल दुग्गड़, शकुन्तला बेबी, अशोक श्रीमाल, तपस्वी महेन्द्र भाई आदि ने नवकार आराधना से जीवन में आए परिवर्तन साझा किए । संचालन राजकमल जैन ने किया।