December 25, 2024

पारिवारिक सत्ता को थोपने के लिए हंगामा है बरपा

– डॉ रत्नदीप निगम

आज देश की समस्त समस्याएं ख़त्म हो गयी है और देश में चारो ओर खुशहाली आ गयी है कुछ दिनों के लिए , क्योंकि अभी देश में केवल एक ही संकट है और वह है नेशनल हेराल्ड केस में कांग्रेस के नेताओं को न्यायालय का समन । कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री जी का सूट पहनना संकट था , फिर प्रधानमंत्री का विदेश जाना समस्या बना , यहाँ तक विपत्ति आ पड़ी कि प्रधानमंत्री ज्यादा बोलते क्यों है । अभी अभी हम भारत की सबसे बड़ी आपदा ” असहिष्णुता ” से ग्रस्त हो गए थे लेकिन पुरस्कार वापस करने वालो ने हमें इस आपदा से उबार लिया और हम असहिष्णुता की बाढ़ में बहने से बच गए । बुद्धिजीवियों ने हमें कुछ बयानों और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओ की बारिश से आयी बाढ़ से बचा लिया भले ही चेन्नई तबाह हो गया लेकिन सहिष्णुता बच गई । इस समय देश पर पुनः भीषण संकट आया है इसलिए संसद को रोक दिया गया है । वैसे तो यह आपदा आयी एक परिवार के माँ बेटे पर परंतु वसुधैव कुटुम्बकम् की हमारी संस्कृति ने इसे देश के सभी परिवारो का संकट बना दिया है । नेशनल हेराल्ड केस में न्यायालय द्वारा किये गए निर्णय को आधार बनाकर संसद में विपक्ष की सर्वोच्चता को स्थापित करने का प्रयास कांग्रेस द्वारा किया जाना इस बात की ओर इंगित करता है कि देश में जनता के द्वारा निर्वाचित सत्ता पक्ष देश की नीतियों का सञ्चालन नहीं कर सकता बल्कि यह जिम्मेदारी तो जनता ने निर्वाचित विपक्ष को सौंपी है कि वह देश चलाये । यह संकेत स्पष्ट है कि विपक्ष ने संविधान को उल्टा कर दिया है ,जिस संविधान को बदलने पर कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भीषण रक्तपात की धमकी संसद में दे रहे थे । मानसिक रक्तपात तो हुआ लेकिन देश में नहीं कांग्रेस के भीतर । सुब्रमण्यम स्वामी के मिशन मोड में रहने के फलस्वरूप कांग्रेस के प्रथम परिवार पर आयी विपत्ति को लेकर उनके वफादारों द्वारा जो तर्क दिए जा रहे है उससे यह साबित होता है कि यह परिवार और उनके समर्थक उन्हें देश के कानून से ऊपर मानते है , ये सामन्ती यह प्रदर्शित करना चाहते है कि प्रजा पर जो कानून लागू होते है वह हम पर लागू नहीं होते है क्योंकि हम जन्मना शासक है और वर्तमान में जो शासक है वह तो चंद दिनों के मेहमान है । वैसे कांग्रेस का यह रवैया अचंभित नहीं करता क्योंकि कांग्रेस का इतिहास रहा है कि उसने कभी भी न्यायालय के निर्णयो को स्वीकार नहीं किया है । जब 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराते हुए उनको सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया था , तब इस निर्णय को अस्वीकार करते हुए इंदिराजी ने तुरंत देश में आपातकाल लगाकर न्यायालय के अधिकारो को सीमित कर दिया था और सम्पूर्ण विपक्ष को जेल में डाल दिया था । उनके ही सुपुत्र श्री राजीव गाँधी ने भी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में यही किया , जब शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने एक महिला के अधिकारो के पक्ष में फैसला दिया तो राजीव गाँधी ने उस फैसले को नहीं मानते हुए संसद में बहुमत से कानून ही बदलकर फैसले को पलट दिया । कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव के कार्यकाल में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश दिया था लेकिन उन्होंने उसका भी अनुपालन नहीं किया । ऐसे ढेरों उदाहरण है जब कांग्रेस ने न्यायालय , संसद और अन्य संवैधानिक संस्थाओ का निरादर कर अपनी सत्ता और अपने प्रथम परिवार को देश से ऊपर महत्व दिया । आज फिर इतिहास की पुनरावृति हो रही है फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस सत्ता में नहीं है । यह तो देश का सौभाग्य है कि कांग्रेस सत्ता में नहीं है अन्यथा देश में पुनः आपातकाल लगा दिया जाता । यह आशंका निराधार नहीं है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने न्यायालय का समन आते ही तुरंत मिडिया में कहा कि मै किसी से नहीं डरती क्योंकि मै इंदिरा जी की बहू हूँ । इसका आशय यही है कि जो इंदिराजी ने किया वह मै भी कर सकती हूँ । यह देश की जनता का दुर्भाग्य है कि आजादी के 68 वर्षो के बाद भी देश का एक परिवार अपने आपको संविधान और न्यायालय से ऊपर मानता है । संसद को बाधित करने के अनुचित कृत्य को उचित बताने के लिए दिए जा रहे कुतर्को की श्रंखला में एक कुतर्क यह दिया जा रहा है कि प्रवर्तन निर्देशालाय के निर्देशक को बदला गया और फिर इस केस को खोला गया । क्या कांग्रेस बताएगी कि पुराने निर्देशक ने इस केस को किसके कहने पर बंद कर दिया था ,? क्या वह प्रधानमंत्री कार्यालय का हस्तक्षेप नहीं था ? कांग्रेस के नेता जब इस तरह के कुतर्क रखते है तो अपना इतिहास भूल जाते है । प्रवर्तन निर्देशालाय के एक निर्देशक के बदल जाने पर हाय तौबा मचाने वालों ने तो चुनाव आयोग से लेकर संसद के सदस्यों तक को प्रलोभन से बदल दिया था । देश वह दृश्य कैसे भूल सकता है जब 2009 में डॉ मनमोहन सिंह के विश्वास मत के लिए सांसद ख़रीदे गए , कांग्रेस नेता नवीन चावला को चुनाव आयुक्त बनाया गया जिनके बारे में स्वयम् मुख्य चुनाव आयुक्त गोपाल स्वामी जी ने कहा कि वे बैठक में से उठकर जाते है और कांग्रेस नेताओ को फोनकर बैठक की जानकारी देते है । सी बी आई के निर्देशक को तो कानून मंत्री स्वयम् केस को कमजोर करने का निर्देश दे रहे थे । इसलिये वर्तमान घटनाक्रम देश को समस्यामुक्त करने अथवा तरक्की करने के लिए नहीं गढ़ा गया अपितु देश की जनता पर अपनी सर्वोच्च पारिवारिक सत्ता को थोपने के लिए हंगामा बरपाया गया है । देश का मिडिया , बुद्धिजीवी और समाज यह तमाशा देख रहा है ।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds