पत्नी से छुटकारा पाने के लिए पति उसका कत्ल कर दे, इससे बेहतर है कि उसे 3 बार तलाक बोलने दिया जाए
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दो टूक- तीन तलाक पर दखल न दे सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली 03 सितम्बर(इ खबरटुडे)। “मर्द को एक से ज़्यादा शादी की इजाज़त देने की व्यवस्था औरत के लिए फायदेमंद है. पत्नी के बीमार होने या किसी और बात को आधार बना कर पति उसे तलाक दे सकता है. लेकिन पति को दूसरी शादी की इजाज़त होने की वजह से महिला बच जाती है.”
ये बातें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कही है. तीन तलाक और चार शादी की व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल लिखित जवाब में पर्सनल लॉ बोर्ड ने इन्हें सही ठहराया है.मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने कोर्ट में चल रही सुनवाई का विरोध किया है. बोर्ड के हलफनामे ने कहा गया है कि पर्सनल लॉ धार्मिक किताबों पर आधारित है. सुप्रीम कोर्ट इनमें बदलाव नहीं कर सकता.बोर्ड की दलील है कि धार्मिक आधार पर बने नियमों को संविधान के आधार पर नहीं परखा जा सकता. हर नागरिक को मिले मौलिक अधिकार, पर्सनल लॉ में बदलाव का आधार नहीं बन सकते.तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दायर किया है. बोर्ड ने मांग की है कि ट्रिपल तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किया जाना चाहिए.
शुक्रवार को लॉ बोर्ड ने मुख्य तौर पर याचिकाओं को खारिज करने के लिए दिए ये आधार:
– याचिका में जो सवाल उठाए गए हैं वो न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आते
– पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती.
– सामजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को दोबारा से नहीं लिखा जा सकता.
– मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक को चुनौती देने वाली याचिका कोर्ट के दायरे के बाहर है.
– सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि याचिका में उठाए गए सवाल न्यायिक समीक्षा के दायरे के बाहर है.
– सुप्रीम कोर्ट ने 1981 के कृष्णा सिंह मामले में कहा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट शादी, तलाक और गुजारे-भत्ते के मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधान की वैलिडिटी को परख नहीं कर सकता.
– पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसा करना संविधान का उल्लंघन है. संविधान के अनुच्छेद-25, 26 और 29 के तहत पर्सनल लॉ को संरक्षण मिला हुआ है.
– मुस्लिम पर्सनल लॉ शादी, तलाक और गुज़ारे-भत्ते के प्रावधान की व्याख्या करता है. ये कुरान और शरीयत पर आधारित है. इस पर कोर्ट अपनी व्याख्या नहीं कर सकती.
– पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा करना संविधान के पार्ट-3 का उल्लंघन होगा.
– संविधान के अनुच्छेद-44 में यूनिफर्म सिविल कोड की बात की गयी है लेकिन वो बाध्यकारी नहीं है.
संविधान का दिया हवाला
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से इस हलफनामे की शक्ल में नोटिस पर जवाब दिया गया है. बोर्ड ने हलफनामे में ये कहा है कि पर्सनल लॉ का मूल स्रोत कुरान है. ऐसे में उसकी वैधता को परखा नहीं जा सकता. मुस्लिम पर्सनल लॉ को वैलिडिटी के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती. संविधान का भाग- 3 पर्सनल लॉ को नहीं छूता और ऐसे में पर्सनल लॉ की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकता. धार्मिक मुद्दों पर पैदा होने वाले विवाद में धार्मिक किताबों का ही सहारा लिया जा सकता है.
पत्नी के लिए है खुला प्रावधान
हलफनामे में यह भी कहा गया है कि शरीयत के मुताबिक, शादी आपसी समझौते से चलती है और खुशहाल शादी के लिए शांति होनी चाहिए. लेकिन मियां-बीवी के रिश्तों में अगर खटास हो जाए और नफरत पैदा हो जाए तो रहना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जब शादी का कोई मकसद ही न बचे तो अलग रहना बेहतर है और शादी को खत्म करना जरूरी है, ताकि दोनों दूसरी जिंदगी शुरू कर सकें. पति तलाक ले सकता है और पत्नी के लिए खुला का प्रावधान है. तमाम न्यायविद इस बात पर सहमत हैं कि पति को तलाक लेने का अधिकार है. ये अधिकार शरीयत देता है क्योंकि पति फैसला ले सकता है और उसे अपनी भावनाओं पर ज्यादा काबू रहता है.
इद्दत पीरियड के लिए गुजारा-भत्ता
बहुविवाह के मामले में हलफनामे में कहा गया है कि मुस्लिम को चार शादियों की इजाजत है, ये सामाजिक और नैतिक जरूरत है और ये भी महिलाओं के लिए सहानुभूति का एक प्रावधान है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि जहां तक गुजारे-भत्ते यानी मेंटेनेंस का सवाल है तो मुस्लिम वूमैन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट ऑन डिवोर्स) एक्ट बना है. इसके तहत ‘इद्दत’ पीरियड तक गुजारे-भत्ते का प्रावधान है. साथ ही बच्चों की पैदाइश से लेकर दो साल तक मेंटेनेंस का प्रावधान है. अगर इद्दत पूरी होने के बाद भी महिला अपना गुजारा नहीं कर सकती और उसकी दूसरी शादी मुमकिन न हो और मैजिस्ट्रेट महिला की दलील से संतुष्ट हो जाए तो वो महिला के रिश्तेदार को निर्देश दे सकता है कि वो महिला की स्टैंडर्ड लाइफ मेंटेनेंस करें. इस तरह मुस्लिम महिलाओं के लिए मेंटेनेंस का अधिकार दिया गया है. ऐसे में इस मामले में दाखिल याचिकाओं को खारिज किया जाए.