November 20, 2024

नगर निगम बजट- जनता को मूर्ख बनाने की हास्यास्पद कोशिश,नगर के विकास के लिए कुछ नहीं है बजट में

रतलाम,16 जुलाई (इ खबरटुडे)। नगर निगम परिषद में वर्ष 2019-20 के लिए महापौर डॉ. सुनीता यार्दे द्वारा प्रस्तुत बजट शहर की जनता को मूर्ख बनाने की हास्यास्पद कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं है। वर्ष 2017-18 में महज एक सौ तेईस करोड रु. का वास्तविक आय व्यय दर्शाने वाली रतलाम नगर निगम में बिना किसी ठोस आधार के सात गुना अधिक सात सौ तिरयासी करोड का बजट पेश किया गया है। इतना ही नहीं बजट में कई महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपा लिया गया है।

आमतौर पर स्थानीय स्तर पर पेश किए जाने वाले बजट को ना तो जनता गंभीरता से लेती है और ना ही पार्षद चूंकि ये बजट इस निगम परिषद का आखरी बजट है और इसके बाद चुनाव होना है,इसलिए कोई कर वृध्दि या नए कर का प्रस्ताव नहीं है। शायद यही कारण है कि निगम के नेताओं ने जनता को बिना किसी आधार के सात गुना अधिक का बजट बनाकर प्रभावित करने या एक तरह से मूर्ख बनाने की कोशिश की है।

वास्तविकता से कोसों दूर

निगम परिषद में पेश किया गया बजट वास्तविकता से कोसों दूर है। निगम परिषद में महापौर द्वारा पेश किए गए बजट में जहां वर्ष 2019-20 के प्रस्तावित आय व्यय का ब्यौरा दिया गया है,वहीं समाप्त हो चुके वित्तीय वर्ष 2017-18 के वास्तविक आय व्यय का ब्यौरा भी दिया गया है। इन दोनो आंकडों का अंतर ही सारी कहानी खुद बयान कर देता है। वर्ष 2017-18 में निगम की कुल आय एक सौ तेईस करोड तिरेपन लाख रु.दर्शाई गई है,वहीं व्यय की राशि एक सौ तेईस करोड सौलह लाख रु. बताई गई है। यह निगम की वास्तविक तस्वीर है। लेकिन एक सौ तेईस करोड रु. की आय अर्जित करने वाली नगर निगम अगले साल यानी 2019-20 में सात गुना अधिक सात सौ तिरयासी करोड अठोत्तर लाख रु. की आय अर्जित करने का अनुमान लगा रही है। सात गुना अधिक आय कैसे होगी,इसके लिए जो अनुमान लगाए गए हैं,वो मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसे है। निगम महापौर और अधिकारियों ने जब सात गुना आय का अनुमान लगाया,तो व्यय का अनुमान भी इसी हिसाब से लगाया। बजट के मुताबिक नगर निगम सात सौ तिरयासी करोड पन्द्रह लाख रु.व्यय करेगी और कुल 63 लाख का शुध्द लाभ अर्जित करेगी।

न नौ मन तेल होगा,ना राधा नाचेगी

नगर निगम में पेश किए गए बजट को देखने भर से मालूम पड जाता है कि न नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी। निगम के प्रस्तावित आय पत्रक में 31 मदें ऐसी दर्शाई गई है,जिनसे करोडों की आय का अनुमान लगाया गया है। मजेदार बात यह है कि वर्ष 2017-18 के बजट में भी इन मदों से बडी आय का अनुमान लगाया गया था। उस समय भी निगम को इन मदों से कोई आय नहीं हुई थी। इस बार भी उन्ही मदों से करोडों की आय का अनुमान लगाया गया है। जब पिछले साल यह आय नहीं हो सकी तो इस अगले साल कैसे होगी,यह कोई नहीं जानता। मजेदार बात यह है कि इन मदों में कुछ मदें तो अरबों रु.की आय दर्शाती है। उदहारण के लिए अमृत सागर तालाब के लिए चार अरब दस करोड रु. की राशि मिलने का अनुमान लगाया गया है। वर्ष 2017-18 के बजट में भी यही सपना देखा गया था। यह सपना तब भी पूरा नहीं हुआ था,इस बार कैसे पूरा होगा,पता नहीं। इसी तरह मुख्यमंत्री शहरी अधोसंरचना और अमृत योजना के तहत एक एक अरब यानी सौ-सौ करोड रु.मिलने का अनुमान वर्ष 2017-18 में भी लगाया गया था,इस बार भी लगाया गया है। तब भी कुछ नहीं मिला था,इस बार भी मिलने की कोई आशा नहीं है। लेकिन बजट में बडे जोर शोर से इसे दिखाया गया है। अमृत योजना में बडे नालों के लिए डेढ अरब रु.मिलने का दावा किया गया है। यही दावा वर्ष 2017-18 में भी किया गया था,लेकिन कुछ नहीं मिला।
कुल मिलाकर बजट का आकार बडा बनाकर जनता को यह दिखाने की कोशिश की गई है कि रतलाम नगर निगम एक सक्षम नगर निगम है,जो जनता के हित में और नगर विकास के लिए अरबों खर्च करने की योजना बना रही है। जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरित है।

आमदनी अठन्नी-खर्चा रुपया

नगर निगम बजट की असलियत तब सामने आती है,जब बजट का गहनता से अध्ययन किया जाता है। नगर निगम की वास्तविकता यह है कि नगर निगम को होने वाली वास्तविक आय का सत्तर प्रतिशत से अधिक हिस्सा तो सिर्फ स्थापना व्यय में खर्च हो रहा है। वर्ष 2017-18 में नगर निगम की वास्तविक राजस्व आय अडसठ करोड चौहत्तर लाख(6874.75 लाख) रु.थी। इस आय के विरुध्द निगम का स्थापना व्यय चालीस करोड सौलह लाख रु.(4016.59 लाख) था। नगर के विकास के लिए निगम के पास महज बीस करोड रु. निजी आय से थे। इसके अलावा जो कुछ था वह विभिन्न अनुदानों से प्राप्त होने वाली आय थी,जिसे पूंजीगत आय माना जाता है।

महत्वपूर्ण आंकडें नदारद

नगर निगम के बजट में कई महत्वपूर्ण आंकडों को छुपा लिया गया है। वर्ष 2017-18 के आंकडों के मुताबिक निगम के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के मोबाइल फोन के बिल पर निगम ने 6 लाख अठ्यासी हजार रु.व्यय किए और निगम के वाहनों के डीजल पैट्रोल पर एक करोड तीस लाख रु. खर्च किए गए। लेकिन बजट बनाने वालों ने निगम आयुक्त, महापौर और निगम अध्यक्ष की यात्रा और वाहन पर व्यय हुई राशि को शून्य दिखा दिया है। इस बात को कौन मानेगा कि आयुक्त,महापौर और निगम अध्यक्ष के वाहनों पर एक भी रुपया खर्च नहीं किया गया है। मजेदार बात यह भी है कि इसी बजट में इन तीनों मदों पर कुल मिलाकर पच्चीस लाख रु.का प्रावधान रखा गया था। इस बार के बजट में भी इतना ही प्रावधान रखा गया है। वर्ष 2017-18 में जहां आयुक्त,महापौर और निगम अध्यक्ष के वाहन पर शून्य राशि व्यय हुई वहीं कर्मचारी व अधिकारियों ने इस मद में 64 हजार रु.खर्च कर डाले। यानी कि महापौर और अध्यक्ष से ज्यादा वाहन कर्मचारी घुमाते रहे। बजट का अगला चमत्कार देखिए। वर्ष 2017-18 के बजट में कालिका माता मेले के लिए 40 लाख का प्रावधान रखा गया था,लेकिन निगम ने इस पर वास्तविक व्यय केवल एक लाख चार हजार रु.का दर्शाया है। यह कैसे हुआ होगा,कोई नहीं जानता,जबकि कालिका माता मेला शहर का सबसे खर्चीला मेला है। वर्ष 2017-18 में नगर निगम में होने वाली एमआईसी तथा अन्य बैठकों पर होने वाले व्यय के लिए ना तो कोई बजट प्रावधान था और ना ही इस पर एक भी रुपए का व्यय दिखाया गया है,लेकिन इस बार के बजट में इस मद के लिए पांच लाख रु.का प्रावधान किया गया है। जिस मद में कोई व्यय ही नहीं हुआ हो,उसके लिए पांच लाख के प्रावधान की जरुरत कैसे हो सकती है?

विपक्ष के रुख पर रहेगी नजर

बहरहाल,नगर निगम का बजट बच्चे बहलाने का उपक्रम ही नजर आता है। बजट का कोई ठोस आधार ही नहीं है। ना तो कमाई होना है और ना खर्च,लेकिन निगम के कर्णधारो ने बजट पुस्तिका इतनी शानदार छपवाई है,जैसे यह केन्द्र सरकार को बजट हो। बजट पर बुधवार को चर्चा होना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष इस पर कैसा रुख दिखाता है?

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