November 22, 2024

न ये उधर जा सके,न वो इधर आ सके

(डा.डीएन पचौरी)
जी हां। ये कहानी है दो राष्ट्रपिताओं की। एक महात्मा गांधी,जो हिन्दुस्तान के राष्ट्रपिता है और दूसरे मोहम्मद अली जिन्ना जो पाकिस्तान के राष्ट्रपिता है। महात्मा गांधी फरवरी १९४८ में पाकिस्तान जाने वाले थे। उनकी जिन्ना से बात हो गई थी और १० फरवरी १९४८ को गांधी जी को पाकिस्तान पंहुचना था पर नियति का चक्र देखिए कि दस दिन पूर्व ही ३० जनवरी को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी का वध कर दिया और ये उधर न जा सके।

मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान का निर्माण करके खुश नहीं थे। वे खुद को अकेला महसूस करते थे। उनका कोई वंशज पाकिस्तान नहीं गया था। उन्होने नेहरु जी को पत्र लिखा था कि वे शीघ्र ही भारत लौटना चाहते हैं अत: उनके बम्बई मलाबार हिल स्थित जिन्ना हाउस की उचित देखभाल की जाए। किन्तु ११ सितम्बर ४८ को कराची में उनकी टीबी से मृत्यु हो गई और जिन्ना यहां न आ सके।
विभाजन रुक सकता था-कायदे आजम जिन्ना को टी.बी. की बीमारी है,ये बात उनकी मृत्यु के पूर्व तक अत्यन्त गोपनीय रखी गई थी। केवल जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को उनकी बीमारी के बारे में मालूम था। उन दिनों टीबी एक लाइलाज बीमारी थी और जिन्ना की  शीघ्र मृत्यु अवश्यंभावी थी। इस पर लार्ड माउंटबेटन ने कहा था,कि यदि इस बात का पता होता तो भारत को आजादी देने में एक दो साल की देरी की जा सकती थी और शायद देश का विभाजन रुक सकता था।
हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर-
प्रारंभ में जिन्ना हिन्दू मुस्लिम एकता पर जोर देते थे। यहां तक कि १९०६ में स्थापित मुस्लिम लीग भी उन्होने इसलिए ज्वाईन नहीं की थी क्योकि लीग पूर्णतया मुसलमानों के हित के लिए स्थापित की गई थी। जबकि मोहम्मद अली जिन्ना धर्म निरपेक्षता में विश्वास करते थे। एक बार उन्होने अपने भाषण में कहा था कि मुसलमानों को अपने भाषण में कहा था कि मुसलमानों को अपने छोटे स्वार्थों से उपर उठकर इस देश के बारे में सोचना चाहिए। १९१२-१३ में जब जिन्ना इग्लैण्ड गए तो गोखले जी से मिले और भारत लन्दन संगठन की स्थापना की। इस संगठन द्वारा हिन्दुस्तान की तरक्की और भारत के जो छात्र लन्दन में अध्ययन कर रहे थे,उनकी भलाई के लिए कार्य किए जाने की व्यवस्था की जाती थी।
कांग्रेस से विमुखता
गांधी जी स्वदेशी रहन सहन,स्वदेशी खानपान और हिन्दी भाषा के प्रयोग पर बल देते थे। हिन्दुस्तान की जनता अंग्रेज और अंग्रेजियत से नफरत करती थी। अत: गांधी जी की लोकप्रियता व प्रसिध्दि दिनों दिन बढ रही थी,जबकि जिन्ना पूरी तरह अंग्रेजी रंग में रंगे थे। कहा जाता है कि उनके पास २०० सूट थे जिन्हे वो पहनते थे तथा एक बार लगाई हुई टाई को दोबारा प्रयोग नहीं करते थे। उनका पहनावा रहन सहन खानपान सब विदेशी था। उन्हे शराब तथा सुअर के मांस से परहेज नहीं था,जबकि ये दोनो चीजें इस्लाम  धर्म में हराम है। अंग्रेजियत के कारण जिन्ना उतने लोकप्रिय नहीं हो पाए,जितने गांधी व नेहरु हो रहे थे,अत: जिन्ना के मन में ईष्र्या उत्पन्न होने लगी।
सन १९१३ में जब जिन्ना हिन्दुस्तान लौटे थे तो उन्होने मौलाना मोहम्मद अली जौहर तथा सैयद बाजिर हसन के कहने पर मुस्लिम लीग ज्वाईन कर ली थी तथा १९१६ में जिन्ना इसके प्रेसीडेन्ट बने और धीरे धीरे वे कांग्रेस से विमुख होने लगे। १९२० में उन्होने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
सनसनीखेज मुकदमा
एक हिन्दू प्रकाशक ने रंगीला रसूल नामक पुस्तक प्रकाशित की थी,जिसमें मोहम्मद साहब के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई थी। इससे मुस्लिम सम्प्रदाय में क्रोध व उत्तेजना की लहर फैल गई। एक मुस्लिम कारपेन्टर इस्लामुद्दीन ने  पुस्तक प्रकाशक की हत्या कर दी। इस कातिल की ओर से पैरवी जिन्ना ने की। इस प्रकार हिन्दू और मुसलमानों के बीच की खाई बढती गई। जिन्ना का सोचना था कि हिन्दू बाहुल्य देश में मुसलमानों का हित सुरक्षित नहीं है और वे अलग राष्ट्र की कल्पना करने लगे। इतना ही नहीं जिन्ना ने गांधी जी के अंग्रेजों के विरुध्द चलाए गए खिलाफत आन्दोलन का विरोध भी किया।१९४२ में चलाए गए भारत छोडो आन्दोलन का भी जिन्ना विरोध करते रहे। गांधी,नेहरु और जिन्ना के मध्य मतभेद इतने बढ गए कि १९४४ में गांधी जी और जिन्ना के मध्य १४ मीटिंग हुई किन्तु सहमति नहीं हुई। जिन्ना अलग राष्ट्र की मांग पर अडे रहे व देश का विभाजन होकर रहा।
दोहराया इतिहास
जिन्ना ने अपने घनिष्ठ मित्र पारसी सम्प्रदाय के दिन्शा पेटिट की सुपुत्री रतनबाई पेटिट से ४० वर्ष की उम्र में शादी की। जिन्ना रतनबाई से उम्र में २४ वर्ष बडे थे। १९१९ में इनके यहां पुत्री का जन्म हुआ,जिसका नाम दीना जिन्ना रखा गया। दीना जिन्ना ने नेविली वाडिया से शादी करके इतिहास दुहरा दिया। जिन्ना ने दिन्शा की इच्छा के विरुध्द शादी की,तो दीना ने जिन्ना की इच्छा के विरुध्द पुन:पारसी युवक से शादी की। दीना के सुपुत्र और जिन्ना के नवासे नुस्ली वाडिया बाम्बे के प्रसिध्द उद्योगपति रहे हैं। सन १९७० में दीना वाडिया ने जिन्ना हाउस पर आधिपत्य के लिए कोर्ट में याचिका दायर की किन्तु फैसला विपरित रहा। आजकल जिन्ना हाउस भारत सरककार के आधिपत्य में है।
१९४८ में पाकिस्तान के भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त  श्री प्रकाश से मो.अली जिन्ना ने भारत आने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी और नेहरु को पत्र भी लिखा था,किन्तु न आ सके।
काबिलेगौर बात यह भी है कि गांधी जी की अस्थियां विश्व की सभी प्रसिध्द नदियों में प्रवाहित की गई ,किन्तु पाकिस्तानियों ने अस्थियां सिन्ध नदी में प्रवाहित करने की इजाजत नहीं दी। अत: गांधी जी की बात छोडिए,उनकी अस्थियां तक पाकिस्तान नहीं जा सकी। न जिन्ना इधर हिन्दुस्तान आ सके,न गांधी जी उधर पाकिस्तान जा सके।

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