November 15, 2024

धर्म के लिए बुढ़ापे का इंतजार नहीं करें-भंसाली

रतलाम,05 सितम्बर (इ खबरटुडे)। शरीर की कितनी भी देखभाल और साजसज्जा की जाए किसी काम की नहीं। शरीर क्षण भंगुर है। शरीर की देखभाल के बजाय आत्मा को निखारने का काम करें। उदारी शरारी से धर्म, तपस्या करवाकर आत्मा की प्रगति की राह प्रशस्त करें।

उक्त उद्गार श्री धर्मदास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री भरतभाई भंसाली ने नौलाईपुरा स्थित श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल स्थानक पर व्यक्त किए। पर्युषण महापर्व पर इन दिनों आप लगातार लोगों को धर्म संदेश दे रहे हैं। सातवें दिन आपने फरमाया कि अनंत काल से आत्मा इस शरीर के कारागार में बंद है, हमें आत्मा की प्रसन्नता का प्रयास करना चाहिए। हमारा शरीर इन्द्रजाल के समान है। यह शरीर क्षणभंगुर है।शरीर को कितना भी सुशोभित कर लो यह समाप्त होने वाला ही है।

धर्मसभा में आपने कहा कि हमें धर्म करने के लिए बुढ़ापे का इंतजार नहीं करना चाहिए। गुरुदेव उमेशमुनिजी (अणु) ने मोक्ष पुरुषार्थ में यह फरमाया है कि मनुष्य को यह भ्रम है कि उसे कभी मृत्यु प्राप्त होगी ही नहीं, जबकि वास्तविकता यह है कि व्यक्ति प्रतिक्षण मर रहा हैं। मनुष्य जब इस बात को समझ लेगा और इसका चिंतन करेगा तो मोक्ष का रास्ता स्वत: ही खुल जाएगा। मनुष्य को इस एकत्व भावना का चिंतन करना चाहिए कि यह संसार सिर्फ मोहजाल है। मैंने जन्म अकेले लिया था और मुझे अकेले ही जाना पड़ेगा। आपने कहा कि जिस संपत्ति के लिए मनुष्य अपना सारा यौवन न्यौछावर कर देता है और संपदा प्राप्त कर लेता है लेकिन अंतिम समय में वह संपदा किसी काम नहीं आती है। इसलिए मनुष्य को इसका चिंतन-करना चाहिए।

आपने आगे फरमाया कि संसार के दुखों का चिंतन करना ही मोक्ष पुरुषार्थ है। हमें मनुष्य भव को समझना चाहिए। हमारे अथापुण्य और कर्म करने के कारण ही हमें ये दुर्लभ मनुष्य जीवन और सभी स्थितियां अनुकूल मिली हैं। अगर इसका उपयोग नहीं कर पाए तो कम से कम 10 हजार वर्ष तक तो नरक में रहना ही पड़ेगा। आपने ये संदेश दिया कि पर्युषण पर्व शुभ संदेश, धर्म क्रियाओं को करने की प्रेरणा देता है। ये लोकोत्तर पर्व कहलाता है। हमें जीवनभर और जीवन के अंतिम समय में सभी जीवों से खमतखामणा करके तप त्याग पूर्वक इस पर्युषण पर्व को मनाए तभी हमारा मनाना सार्थक होगा।

इस अवसर पर स्वाध्यायी बंधु श्री ललितभाई भंसाली ने अंतगढ़सूत्र के आठवें अध्ययन का वाचन करते हुए राजा कोणिक की दसों रानियों का वर्णन सुनाया। आपने बताया कि कोणिक राजा के भाई बैतलकुमार ने राजा चैतक की शरण ले ली थी जिससे राजा चेतक और कोणिक के बीच हार और हाथी के लिए युद्ध की स्थिति निर्मित हुई। यह युद्ध जैन जगत का विश्व युद्ध कहलाया। इसमें भारी जनहानि हुई थी और राजा कोणिक के दसों पुत्र मारे गए थे। इस नरसंहार से दुखी होकर सभी दसों रानियों ने दीक्षा लेकर भारी तपस्या करके अपने जीवन को शुद्ध-बुद्ध और मुक्त किया था। ललित भाई भंसाली ने बताया कि जीवन जीने की मनुष्य को कला सीखना चाहिए और अपने जीवन का सद्कार्यों में उपयोग करना चाहिए। छोटी उम्र से ही तपस्या और धर्मराधना शुरू कर देना चाहिए अन्यथा समय निकल जाता है और मनुष्य बाद में पछताता रहता है।

आज श्रीमती मधुबाला मांडोत और रमेश खाबिया ने स्तवन प्रस्तुत किया। श्री धर्मदास जैन श्रीसंघ के अध्यक्ष शैलेष पिपाड़ा, महामंत्री अरविन्द मेहता ने बताया कि कई लोगों की इस अवसर पर दीर्घतपस्या चल रही हैं। पिपाड़ा व मेहता ने कहा कि कल अंतगढ़ सूत्र का वाचन, प्रवचन व आलोचना का पाठ होगा। शाम को संवत्सरी का प्रतिक्रमण होगा। तेले और अट्ठाई के रूप में आज कई तपस्वियों ने नाम दिए गए। उक्त जानकारी श्रीसंघ प्रवक्ता ललित कोठारी ने दी।

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