जिपं अध्यक्ष पद निर्वाचन – सौदा और लालच का गणित भी गड़बड़ाएगा
दो ध्रुव साधना आसान नहीं होगा दोनों दलों के लिए
उज्जैन, 7 मार्च (इ खबरटुडे)। जिला पंचायत अध्यक्ष पद का निर्वाचन रोचक होता दिखाई दे रहा है। इसमें हालात दो ध्रुव के साधने जैसे ही बन गए है। दोनों दलों के दो ध्रुव को साधना टेढ़ी खीर बन पड़ा है। सौदा और लालच का गणित भी इस पूरी सियासत में गड़बड़ाने के हालात बने हुए है। देखना यह है कि सियासत के इस दांव-पेंच में कैसे दो ध्रुव को एक साथ साधने का काम सियासतदार करते है। कुल मिलाकर जिला पंचायत अध्यक्ष पद हासिल करने वाला दल सियासत की योग्यता का भी प्रमाण हासिल कर लेगा।
जिला पंचायत उज्जैन में 21 सदस्यों का निर्वाचन घोषित किया जा चुका है। 12 मार्च को जिला पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन होना है। इसके लिए दोनों ही दल जोरदार तैयारी कर रहे है। प्रॉक्सी वोट के साथ ही अपने समर्थित सदस्यों को पूरी तरह से मजबूत करने का काम तो चल ही रहा है। दोनों ही दल निर्दलीय और बागी सदस्यों को सेट करने में भी लगे हुए है।
एक को साधा तो दूसरा गणित गड़बड़ाएगा
वर्तमान में जिला पंचायत के निर्वाचित हुए सदस्यों की स्थिति यह है कि भाजपा 9 सदस्यों के समर्थन के साथ है और कांग्रेस 10 सदस्यों के। भाजपा को 2 सदस्यों की आवश्यकता है और कांग्रेस को 1 सदस्य की। इसके विपरित दोनों ही दलों के हालात ऐसे है कि अगर 1 सदस्य को साधने की स्थिति बनती है तो दूसरा गणित गड़बड़ा जाएगा और वहीं से सबोटेज की स्थिति बन जाएगी। अपने पराये हो जाएगे और बना बनाया गेम बिगड़ जाएगा।
कैसे गड़बड़ाएगा गणित ?
सियासत के जानकार इस पूरे हालात पर अपनी नजर गढ़ाए बैठे है। उनका कहना है कि भाजपा अगर मानुबाई बोड़ाना को अध्यक्ष बनाती है और अपने बागी डॉ. मदनलाल चौहान को नहीं तो ऐसी स्थिति में विरोध की भावना पनपना तय है। उपाध्यक्ष का पद सामान्य के लिए है। ऐसे में अगर भाजपा कांग्रेस के बागी भरत पोरवाल का साथ लेती है तो भी उसके पास एक सदस्य की कमी बन पड़ेगी। हालात ऐसे के ऐसे ही कांग्रेस के साथ भी है। कांग्रेस में करीब 5 सदस्य अजा वर्ग से जीतकर आए है। जिला पंचायत उज्जैन का अध्यक्ष पद अजा मुक्त है, ऐसे में इस पद पर पुरुष और महिला कोई भी अध्यक्ष चुना जा सकता है, वह अजा वर्ग से। कांग्रेस से महेश परमार की इस पद पर सशक्त दावेदारी है, करण कुमारिया भी इस वर्ग से ही है, दोनों के लिए कांग्रेस में जोर आजमाईश होना तय है। निश्चित है कि यहां वैचारिक मतभेद की स्थिति चुनाव में भी सामने आ सकती है। रहा सवाल बागियों को साथ लेने का तो सूत्र बता रहे है कि भरत पोरवाल एवं नरवर से निर्वाचित सदस्य उपाध्यक्ष के पद पर अड़े हुए है। ऐसे में गणित सामान्य तौर पर सधता नजर नहीं आ रहा है।
जब तक बागी साथ नहीं, तब तक कुछ नहीं
भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए दो सदस्यों का समर्थन गड़बड़ाने की स्थिति में आवश्यक बन पड़ा है। ऐसे में उन्हें कांग्रेस के बागी भरत पोरवाल और नरवर क्षेत्र से निर्वाचित श्रीमती वर्षाकुंवर राजपालसिंह झाला का समर्थन आवश्यक दिखाई दे रहा है। इन दोनों में से एक सदस्य के भी उलट हो जाने पर स्थिति उस दल के विपरित हो जाएगी। इसमें प्रॉक्सी वोट महत्वपूर्ण बनना तय है। यह बात भी साफतौर पर कही जा रही है कि सौदे की राजनीति भी होगी। जिसके चलते 45 दिन का पूरा हिसाब सामने रखा जाना तय है।