चुनावी चख-चख -8
ढोल ढमाकों और गानों से नहीं बदलते वोटर
आठवां दिन- 18 नवंबर
चुनावी माहौल अब बढते बढते आठवें दिन पर आ पंहुचा है। मतदान आज से ठीक आठवें दिन यानी अगले सोमवार को होना है। मैदाने जंग के कुल चौदह योध्दा अपनी अपनी तैयारियों में जुटे है। कोई आटो रिक्शा लेकर घुम रहा है,तो कोई पंखा हिला रहा है। एक प्रत्याशी अपनी आलमारी लेकर गली गली खाक छान रहे है। चौदह में से दो प्रमुख पार्टियों के योध्दाओं को छोड दिया जाए तो बाकी बचे में से एक प्रमुख निर्दलीय झुमरु दादा टेलीफोन की घण्टी बजाते फिर रहे है। बचे हुए सात दिनों में से आखरी दो दिन तो चुप्पी साधकर काम करने के है। सिर्फ पांच दिनों तक वोटरों को चाहे फिल्मी गाने सुनाएं या घर घर जाकर चरणस्पर्श करें। कुल इतना ही समय है। इसीलिए अब सड़कों पर सिर्फ और सिर्फ शोर है। एक वाहन गुजरा नहीं कि दूसरा आ गया। ये बेचारे नहीं जानते कि वोटर ढोल ढमाकों और गाने बजाने से नहीं बदलते बल्कि आजकल वे हर उम्मीदवार को अपने तराजू पर तौलते है और फिर कोई फैसला करते है।
जनसम्पर्क बना मुसीबत
चुनावी जंग में जीत हासिल करने के लिए जरुरी है कि वोटरों के पास पंहुचकर उन्हे रिझाया जाए। सारे दावेदार इसी कोशिश में जुटे है। पहले पंजा छाप पार्टी के लोगों की शिकायत थी कि बहनजी बहुत घमण्डी है। वोटरों से दिल खोलकर मिलती नहीं है। इस बात की शिकायत बाकायदा पंजा छाप पार्टी की बैठक में भी की गई। बहन जी ने अपना तौर तरीका बदला और अब ये शिकायत दूर हो गई है। नई समस्या फूल छाप पार्टी के साथ खडी हो गई है। वोटरों की शिकायत है कि फूल छाप वाले भैयाजी की ठसक बरकरार है और उनका हाईप्रोफाईलनेस जस का तस बना हुआ है। वोटरों को इसी बात पर गुस्सा आता है। वाट्स एप्प पर अब दिन भर ये ही संदेश फैल रहे है कि वोटर उनसे मिलना चाहते थे लेकिन वे सामने से बिना कोई रिस्पांस दिए गुजर गए। नतीजा यह हुआ कि वोटर नाराज हो गए। वे अपनी नाराजगी का इजाहर सोशल मीडीया पर कर रहे है। नाराज वोटर ये नहीं जानते कि पन्द्रह दिनों तक लगातार धूप धूल में पैदल घुमना कोई आसान काम नहीं है। आखिरकार आदमी थकता भी है। वोटरों को इससे कोई मतलब नहीं। भगवान जाने इस समस्या का निराकरण कैसे होगा?
क्या होती है आचार संहिता?
कुछ लोग आदतन फितरती होते है। नियम कायदे तोडना उनकी फितरत में शामिल होता है। नियम भंग करने पर सजा भुगतने के बावजूद उनका यही कहना होता है कि हम नहीं सुधरेंगे। झूठ बोलने के चक्कर में हाई कोर्ट के आदेश से विधायकी गंवा चुके निर्दलीय झुमरु दादा इसी श्रेणी के व्यक्ति है। कहने को तो ये भी कहा जाता है कि इंसान गलतियोंका पुतला होता है,लेकिन गलतियां सुधरना भी इंसानों का ही काम होता है। झुमरु दादा के साथ ऐसा नहीं है। वे गलतियों को स्वीकार ही नहीं करते,तो सुधारेंगे क्यो? पिछले चुनाव में बोले गए झूठ पर विधायकी गंवाने के बावजूद उनकी आदतोंमें कोई परिवर्तन नहीं है। मंचों पर बडी सफाई से झूठ तो वे परोस ही रहे है। चुनाव के लिए बनाई गई आचार संहिता को तोडना भी उनके व उनके समर्थकों के लिए शान की बात है। निर्वाचन आयोग ने पहले ही कहा था कि टीशर्ट साडी इत्यादि नहीं बांटे जा सकते। लेकिन झुमरु दादा को इससे क्या? उन्होने बाकायदा अपने फोटो वाले टी शर्ट बनवाए भी और बंटवाए भी। अब उनके एक तथाकथित दिवाने के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया है। यही नहीं घर के बाहर बिना अनुमति टेण्ट लगाने की शिकायत होने पर टेण्ट भी उखाडा गया। पिछले चुनाव में दर्ज एक मामले में वे लगातार कोर्ट से गैरहाजिर है। लेकिन बात वही है कि उनके लिए आचार संहिता है क्या?
ये मांग है बडी
पंजा छाप पार्टी के पार्षद यूं तो राजी हो गए है। लेकिन भीतर की खबर रखने वालों का कहना है कि पार्षदों ने चुनावी काम करने के लिए बडी मांग रखी है। कहने वाले तो यह भी कह रहे है कि पंजा छाप पार्षदों को फूल छाप की तरफ से नाराज बने रहने की मोटी गड्डियां दी जा चुकी है। अब पंजा छाप पार्षद चाहते है कि इधर से भी कुछ हाथ आ जाए। इस मामले में भाव ताव जारी है। मांग बडी है और देने वाले कम देने के चक्कर में है। जैसे ही मामला निपटेगा काम में तेजी आ जाएगी।