विस्तृत चुनाव विश्लेषण – नए मतदाताओं ने दिलाई रेकार्डतोड जीत
अल्पसंख्यकों ने लाज बचाई कांग्रेस की,बदल रही है मतदाता की मानसिकता
रतलाम,९ दिसम्बर (इ खबरटुडे)। चुनावी आंकडों का विश्लेषण कई तथ्यों की ओर संकेत करता है। विश्लेषण बताता है कि पहली बार मतदान करने वाले युवा मतदाता जहां शिवराज और मोदी लहर पर सवार थे,वहीं अल्पसंख्यक मतदाताओं ने पारंपरिक रुप से कांग्रेस को वोट दिया। इसी वोट ने कांग्रेस की लाज भी बचाई। पिछले डेढ दशक पर नजर डाले तो यह भी स्पष्ट होता है कि मतदाता की मानसिकता बदल रही है और कांग्रेस के पास कमिटेड वोटर अब नहीं के बराबर बचे है।
विधानसभा चुनाव के बूथवार परिणाम और पिछले चुनावी आंकडों का तुलनात्मक अध्ययन कई नए तथ्यों को प्रदर्शित करता है। ताजा विधानसभा चुनाव के बूथवार आंकडे दर्शाते है कि मुख्यत: अल्पसंख्यक मतदान केन्द्रों के अलावा पूरे शहर में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पडा है। शहर के शहर के दो सौ तीस मतदान केन्द्रों में से महज पन्द्रह प्रतिशत मतदान केन्द्र ऐसे थे जहां कांग्रेस को बढत मिली। कांग्रेस को लगभग ३५ मतदान केन्द्रों पर बढत मिली तो बाकी सभी मतदान केन्द्रों पर शिवराज और मोदी की सुनामी का असर नजर आया।
परिपक्व हुए मतदाता
शहर के मतदाताओं की परिपक्वता पिछले वर्षों में काफी बढी है। इसका सीधा सा प्रमाण यह है कि शहर के मतदाता अपना वोट बिगाडने को बिलकुल तैयार नहीं। अगंभीर प्रत्याशियों को मतदाता बिलकुल पसन्द नहीं करते। शहर से इस बार कुल पन्द्रह प्रत्याशी मैदान में थे। मुख्य मुकाबला भाजपा,कांग्रेस और पारस सकलेचा के बीच था। शहर के मतदाताओं ने अन्य उम्मीदवारों को कतई सम्मान नहीं दिया। निर्दलीय प्रत्याशियों को कई बूथों पर शून्य मत मिले। मतदाताओं की परिपक्वता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब मतदाता मुद्दों के आधार पर वोटिंग करने लगे है। दो दशक पहले तक भाजपा और कांग्रेस दोनो पार्टियों के पास अपने कमिटेड वोटर हुआ करते थे,जो हर स्थिति में पार्टी को वोट देते थे। लेकिन अब कांग्रेस के पास से कमिटेड वोटर नदारद हो गए है। भाजपा के कमिटेड वोटर भी कुछ कम हुए है,लेकिन अभी भी भाजपा के पास विचारधारा के आधार पर वोटिंग करने वाले कमिटेड वोटर मौजूद है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों को देखें तो कांग्रेस के स्थाई मतदाता गायब हो चुके है। जबकि भाजपा के पास करीब तीस हजार कमिटेड मतदाता मौजूद है। भाजपा के कमिटेड वोटर के अलावा अन्य वोटर मुद्दों के आधार पर परिवर्तित हो जाते है। पिछली बार जो मतदाता नाराजगी के चलते पारस को समर्थन दे रहा था,इस बार वही मतदाता सभाओं में भीड जुटाने के बावजूद पारस सकलेचा को समर्थन देने को राजी नहीं हुआ।
पारस नदारद
शहर के जिन मतदाताओं ने पांच साल पहले 62 हजार वोट देकर पारस सकलेचा को अपना सरताज बनाया था,उन्ही मतदाताओं ने इस बार पारस को अर्श से उठाकर फर्श पर पटक दिया। पारस सकलेचा इस बार61 हजार वोट से चुनाव हार गए।
युवाओं का नमो शिवाय
इस विधानसभा चुनाव में पहली बार मतदान करने आए युवा मतदाताओं पर नरेन्द्र मोदी और शिवराज सिंह का जादू सर चढ कर बोलता नजर आया। परिणामों पर नजर डाले तो 2008 के विधानसभा चुनाव में पारस सकलेचा को मिले 62 हजार मतों में से पन्द्रह हजार मतदाता उन्ही के साथ बने रहे। इनमें से करीब पच्चीस हजार अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता कांग्रेस के साथ चले गए और शेष बचे मतदाताओं ने भाजपा की राह चुनी। नए आए मतदाताओं में से लगभग 80 प्रतिशत मतदाताओं ने सीधे सीधे भाजपा के पक्ष में मतदान किया।
मत बढे लेकिन प्रतिशत कम रहा
उम्मीदवारों को मिले मतों पर नजर डाले तो भाजपा प्रत्याशी चेतन्य काश्यप ने ऐतिहासिक अंक हासिल किया। उन्हे ७६ हजार से अधिक मत मिले। लेकिन उन्हे मिले मतों का प्रतिशत पिछली बार पारस सकलेचा को मिले मत प्रतिशत से थोडा कम रहा। हांलाकि यह अन्तर बहुत बडा अन्तर नहीं है। इसके अलावा कांग्रेस ने इस चुनाव में बडा आधार वापस पाया है।
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