December 24, 2024

गुरु के शक्तिपात के रुप में मिलता है वासक्षेप – लोकसन्तश्री

dsc_0005

जयन्तसेन धाम में हुआ महंत श्री गोपालदासजी महाराज का बहुमान

रतलाम,04 नवम्बर(इ खबरटुडे)।दीपावली पर्व से जयन्तसेन धाम में गुरुभक्तों के आने का सिलसिला लगातार चल रहा है । लोकसन्त, आचार्य, गच्छाधिपति श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. के दर्शनार्थ आ रहे श्रद्धालुओं को प्रतिदिन वासक्षेप के रुप में आशीर्वाद मिल रहा है । शुक्रवार को सनातन धर्मसभा के अध्यक्ष व बड़ा रामद्वारा के महंत श्री गोपालदासजी महाराज भी लोकसन्तश्री के दर्शन-वन्दन करने जयन्तसेन धाम पहुंचे। चातुर्मास आयोजक व राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष चेतन्य काश्यप परिवार व रतलाम श्रीसंघ ने महंतश्री का बहुमान किया। महंतश्री ने कहा कि लोकसन्तश्री का चातुर्मास रतलाम का सौभाग्य है । सालों बाद आया यह अवसर अनन्त वर्षों तक याद किया जाएगा ।

लोकसन्तश्री ने गुरुभक्तों को आशीर्वचन में कहा कि साधना में सफल होने के लिए साधक को गुरूकृपा अनिवार्य है। गुरूकृपा पाने के लिए हृदय में गुरू के प्रति पूर्ण श्रद्धा होना चाहिए। गुरू शिष्य के ऊपर अनेक प्रकार से अपनी शक्ति प्रत्यारोपित करते हैं। गुरू की दृष्टि पडऩे से भी शक्ति प्राप्त होती है। शब्दों एवं हस्त के द्वारा भी गुरु की शक्ति का संचार शिष्य के अंदर हो जाता है। वासक्षेप गुरु के शक्तिपात के रुप में मिलता है, इसे तभी करवाना चाहिए जब गुरू प्रसन्नचित्त, एवं अनुकूलता में हो। यह सामान्य क्रिया नहीं है इसका मूल्यांकन करना चाहिए। महंतश्री गोपालदासजी महाराज से कुशलक्षेम पूछने के साथ लोकसन्तश्री ने साहित्यिक चर्चा भी की। उनका नरेन्द्र घोचा, नरेन्द्र छाजेड, राजेश जैन, पवन पाटौदी आदि ने बहुमान किया ।

तीरने का साधन है धर्म-आराधना : मुनिराजश्री
मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने सुबह प्रवचन में कहा कि मानव जीवन प्रभु कृपा से ही प्राप्त होता है। प्रभु कृपा से हमें जीवन में मात्र समय ही नहीं बहुत अनुकूलता भी मिली है, लेकिन प्रभु के लिए भी हमारे पास समय नहीं है। हमारा अधिकतम समय मौज-शौक-स्वार्थमय प्रवृत्तियों में ही व्यतित हो रहा है। भक्ति, आराधना, साधना के लिए हमेशा समय की कमी रहती हैं। संसार के सुखों को पाने लिए जैसे मूल्य चुकाना पड़ता है, वैसे ही उनसे बंधने वाले कर्मों का भी हिसाब देना पड़ेगा। प्रभु ने जीवन में तीरने के साधन दिए हैं तो साथ ही डूबने के भी दिए है। धर्म-आराधना तीरने का साधन है।

उत्तराध्ययन सूर्त का विवेचन करते हुए मुनिश्री ने कहा कि साधु का जीवन शुभ में प्रवृत्त एवं अशुभ से निवृत होने के लिए है। आचारों की शुद्धि श्रेष्ठ धर्म है, इसका पालन करने वाला अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है। आचार ही सबसे बड़ा उपदेश है। इसलिए आचारवंत बनना ही प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। रतलाम चातुर्मास काश्यप परिवार के पुण्योदय, इस भूमि के उदय एवं रतलामवासियों के सौभाग्य की त्रिवेणी का संयोग है। काश्यप परिवार ने सम्पूर्ण लाभ लेकर पुण्योपार्जन कर लिया है, जयन्तसेन धाम का भी सम्पूर्ण अस्तित्व परिवर्तित हो गया है। रतलामवासियों ने भी तपस्या, आराधना, भक्ति करके अपने सौभाग्य का लाभ उठा लिया है।

आज मनेगी ज्ञानपंचमी –
जयन्तसेन धाम में 5 नवम्बर को ज्ञानपंचमी का पर्व मनाया जाएगा । इस मौके पर लोकसन्तश्री के सान्निध्य में प्रात: विशेष प्रवचन तथा देववंदन, जाप तथा प्रतिक्रमण आदि के कार्यक्रम भी होंगे ।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds