खजाने का गणित बिगाड़ सकती है कर्ज माफी की राजनीति
नई दिल्ली,29दिसम्बर (इ खबरटुडे)। किसानों की हालत सुधारने एक तरफ विपक्ष की ओर से कर्ज माफी का दांव तो दूसरी ओर राजनीतिक रुख देख सरकार की तरफ से वित्तीय मदद देने के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार तो शुरू हो गया है लेकिन इस तरह का कोई भी कदम सरकारी खजाने के गणित को बिगाड़ सकता है।
ऐसे समय जब जीएसटी से राजस्व संग्रह सरकार की बजट के अनुमानित लक्ष्य के अनुरूप नहीं दिख रहा है तब किसानों को बड़ा पैकेज देने के लिए धन जुटाना केंद्र के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण काम साबित हो सकता है।
रेटिंग एजेंसियों की मानें तो इस तरह का पैकेज ना सिर्फ राज्यों के वित्तीय ढांचे को गड़बड़ा सकता है बल्कि उनके लिए विकास कार्यों पर खर्च बढ़ाना भी मुश्किल हो सकता है।
वित्त मंत्रालय की तरफ से गुरुवार को राजकोषीय घाटे की स्थिति पर जारी रिपोर्ट खजाने की कोई मजबूत तस्वीर पेश नहीं करती है। वर्ष 2018-19 में सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष राजकोषीय घाटे के अनुपात का लक्ष्य 3.3 फीसद (6.24 लाख करोड़ रुपये) तय किया था।
अप्रैल से नवंबर, 2018 तक की स्थिति यह है कि यह घाटा 7.16 लाख करोड़ रुपये यानी लक्ष्य का 118 फीसद हो चुका है। ऐसे में चालू वित्त वर्ष में कृषि कर्ज माफी का बोझ सरकार तभी उठा पाएगी जब राजस्व में अप्रत्याशित उछाल आये या विभिन्न मंत्रालयों के खर्चों में भारी कटौती की जाए। चूंकि सरकार के बजट की ज्यादातर राशि पहले से तय मदों में जैसे पेंशन, वेतन, ब्याज अदायगी व सरकार चलाने के अन्य खर्चों के लिए आवंटित होती है इसलिए किसानों के पैकेज के लिए जगह बनाने के लिए विकास के खर्च पर ही कैंची चलानी होगी।
चालू साल के लिए राजस्व संग्र्रह का लक्ष्य 14.8 लाख करोड़ तय किया गया था जबकि इन सात महीनों में यह 7.31 लाख करोड़ रुपये रहा है। वस्तु व सेवा कर से सरकार को हर महीने औसतन 1.12 लाख करोड़ रुपये का संग्र्रह होने का अनुमान था जबकि नवंबर, 2018 तक के आंकड़े बताते हैं औसत संग्रह की राशि 97,000 करोड़ की रही है। हर महीने 15 हजार करोड़ रुपये के औसत कम संग्रह का मतलब यह है कि आगे स्थिति नहीं सुधरी तो जीएसटी संग्रह अनुमान से 1.80 लाख करोड़ रुपये कम होगा।