क्षमा वही है जो भूलों को भूल जाए: राष्ट्रसंतश्री
रतलाम 19 सितम्बर(इ खबरटुडे)। क्षमा में दो शब्द है। क्ष कहना है जीवन में जो क्षति हुई है जिसके लिए ही क्षमा मांगना है। गलती हम से हो जाए तो उसका पश्चाताप कर माफी मांग लेना चाहिए। ब्लेक बोर्ड पर कितना भी, कैसा भी लिखा हो पर वो एक डस्टर घुमाने से बोर्ड साफ हो जाता है।
वैसे क्षमापना भी एक ऐसा ही डस्टर है जिसे गलतियों के बोर्ड पर घुमा देना चाहिए। क्षमावान व्यक्ति ही सच्चा आराधक कहलाता है। अगर हृदय में से दुर्भाव नहीं जाए तो हम आराधना करके भी विराधक ही कहलाएंगे। राष्ट्रसन्त गच्छाधिपति श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने जयन्तसेन धाम में आशीर्वचन के रुप में व्यक्त किए।
मृत्यु को सुधारना भी एक कला है: मुनिश्री निपुणरत्न विजयजी
उत्तराध्ययन सूर्त के पंचम अकाम भरण अध्ययन का विवेचन करते हुए मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिसे स्वीकारना ही पड़ता है। यह एक ऐसी घटना है जिसे घटने से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन मृत्यु के पूर्व हम ऐसा जीवन बना ले जिससे मृत्यु के पश्चात आने वाला भव सुंदर हो जाए। यार्ता के पूर्व हमें जहां जाना है वो एवं साथ में क्या ले जाना है वो पूर्व से पता हो सकता है। लेकिन परलोक की यार्ता से हमारा अगला भव कौन सा होगा वह हम जान नहीं सकते एवं अगले भव में कुछ साथ नहीं ले जा सकते।
आपने कहा कि शान्न् में दो प्रकार के मरण है 1. बाल मरण 2. पंडित मरण जो मृत्यु से डरता है, जो अपने जीवन में धर्म-अधर्म का भेद नहीं समझता, वे सभी जीवों का मरण बाल मरण है। जो मृत्यु को सुधार लेता है, जीवन में पुण्य-पाप, हित-अहित को समझकर सही मार्ग पर चलता है उनका मरण पंडित मरण कहा जाता है। बाल मरणवाला बार-बार मृत्यु को प्राप्त करता है। पंडित मरणवाला अंतिम बार एवं 7-8 से अधिक बार मृत्यु का वरण नहीं करता।
राष्ट्रसन्तश्री की निश्रा में हिमांशु जीवन मुरार ने मासक्षमण की दीर्घ तपस्या की । व्याख्यान के दौरान चातुर्मास आयोजक काश्यप परिवार की ओर से श्रीसंघ अध्यक्ष डॉ. ओ.सी. जैन और सुशील छाजेड़ ने तपस्वी का बहुमान कर तप की अनुमोदना की।
श्रीसंघों के आगमन का क्रम जारी –
पर्युषण पश्चात राष्ट्रसन्तश्री के दर्शनार्थ गुरुभक्तों के आने का क्रम जारी है । 19 सितम्बर को दादाल, कुशलगढ़, बरमण्डल, झाबुआ, राजगढ़, बडऩगर, नागदा जंक्शन, मुम्बई, राणापुर श्रीसंघों ने राष्ट्रसन्तश्री के दर्शन-वन्दन कर क्षमायाचना की। श्रीसंघों के अध्यक्षों का अभिनन्दन डा. जैन व श्री छाजेड़ ने किया। राणापुर श्रीसंघ ने चातुर्मास आयोजक परिवार की मातुश्री तेजकुंवरबाई काश्यप का बहुमान किया । दादा गुरुदेव की आरती का लाभ श्रीमती निर्मला डॉ. ओ.सी. जैन ने लिया। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।