September 21, 2024

कन्या भ्रूण हत्या रोकने जन-आंदोलन एक सशक्त माध्यम

सिहंस्थ में शामिल संतों ने व्यक्त किये विचार
उज्जैन 10,मई(इ खबरटुडे)। समाज में कन्या-भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जन-आंदोलन एक सशक्त माध्यम हो सकता है। समाज में इस विषय पर चर्चा तो बहुत होती है लेकिन समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को इसमें शामिल कर निरंतर प्रयास किये जाने की जरूरत है।

कन्या का हृदय से सम्मान करेगा तभी कन्या-भ्रूण हत्या को पूरी तरह से रोका जा सकेगा
इस विषय में उज्जैन सिंहस्थ महाकुंभ में आए साधु-संतों से जब बात की गई तो उनका कहना था कि हमारे प्रयास तभी सार्थक होंगे जब महिलाओं और बेटियों के प्रति लोगों की सोच में परिवर्तन आए। व्यक्ति जब कन्या का हृदय से सम्मान करेगा तभी कन्या-भ्रूण हत्या को पूरी तरह से रोका जा सकेगा।
संतों का कहना था कि मध्यप्रदेश सरकार महिला सशक्तिकरण, कन्या-भ्रूण हत्या रोकने, बेटी-पढ़ाओ बेटी बचाओ, जैसे सामाजिक मुद्दों पर जोर दे रही हैं, जो सराहनीय है।
हरिद्वार करूणाधाम की साध्वी करूणागिरिजी ने कहा कि कन्या-भ्रूण हत्या रोकने के लिए जमीनी-स्तर पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए ग्रामीण और शहरी इलाकों में लोगों को समझाइश देने की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने ग्राम पंचायत स्तर पर लगातार कार्यक्रम करने पर जोर दिया। उन्होंने इसमें धर्मगुरुओं को भी जोड़ने की बात कही। साध्वी करूणागिरिजी ने कहा कि देश भर में बाल विवाह रोकने पर जिस तरह से काम किया गया है और इसमें सभी समाज के लोग जुड़े हैं, इससे बाल विवाह पर काफी हद तक रोक लगी है। साध्वी ने यह भी कहा कि लोगों को लड़का और लड़की के बीच के अंतर को मिटाने के लिए लोगों के मन में यह बात बैठाने की जरूरत कि कन्याओं को शिक्षित करने और बहुओं को घर में बेटी कि तरह माना जाए।
बाल योगिनी करूणागिरि ने भी सिहंस्थ में की गईं व्यवस्थाओं की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि उज्जैन में उनका यह तीसरा सिहंस्थ है। इस प्रकार की व्यवस्था उन्होंने इसके पहले नहीं देखी है।
सिहंस्थ मेले में राज्य सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाओं कि प्रशंसा की
शंभू पंचायती अखाड़ा के पुजारी श्री आनंदगिरि ने कहा कि कन्या-भ्रूण हत्या रोकने के लिए समाज के साथ साधु-संतों को आगे आना होगा। संतों की समझाइश से समाज की सोच में निश्चित ही बदलाव आएगा। पंचायती अखाड़ा के पुजारी ने सिहंस्थ मेले में राज्य सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाओं कि प्रशंसा की। इसी प्रकार के विचार अन्य साधु-संतों ने व्यक्त किए।

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