November 16, 2024

आस्ट्रेलिया मूल के महामंडलेश्वर जसराजपुरी उज्जैन आये

योग के लिये आये थे गुरु के पास, संन्यासी हो गये
उज्जैन 26 फरवरी(इ खबरटुडे)।आस्ट्रेलिया मूल के पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर जसराजपुरीजी महाराज राजस्थान के पाली अंतर्गत जाडऩ आश्रम से सिंहस्थ-2016 के लिये व्यवस्थाओं का अवलोकन करने उज्जैन आये हैं।

वे सिंहस्थ-2004 में भी यहां भागीदारी कर चुके हैं। महामंडलेश्वर के अनुुसार वे योग के प्रति रुझान के साथ गुरु महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी श्री महेश्वरानंदपुरीजी के पास आये थे, उनसे प्रभावित होकर संन्यासी बन गये।
श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा से संबद्ध
फर्राटेदार हिन्दी बोलने वाले आस्ट्रेलिया मूल के महामंडलेश्वर जसराजपुरीजी महाराज बताते हैं कि बड़े बाबजी की सेवा में रहते हुए उन्हें हिन्दी का बेहतर ज्ञान हुआ। वे उज्जैन सिंहस्थ-2016 में आश्रम के पांडाल सहित अन्य व्यवस्थाओं के लिये वर्तमान में उज्जैन आये हुए हैं। उनके साथी आस्ट्रिया मूल के स्वामी प्रेमानंदजी भी आये हुए हैं। भारत के योग और आध्यात्म ने हमें प्रभावित किया है तथा जब हमारे देश में हमारे गुरू विश्वगुरू महामण्डलेश्वर परमहंस स्वामी श्री महेश्वरानंदपुरीजी आये, तब हम उनकी शरण में गये तथा भारत आ गये और तभी से सन्यासी के रूप में इस पावन भूमि पर हैं।
संन्यास के बाद नया जीवन, पुराने से वास्ता नहीं
श्री जसराजपुरीजी एवं स्वामी प्रेमानंदजी बताते हैं कि सन्यास धारण करने के बाद साधु का नया जन्म होता है एवं वह अपने पुराने नाम एवं जीवन को भूल जाता है तथा यही उनके साथ हुआ है। महामण्डलेश्वर जसराजपुरीजी वर्ष 1996 में भारत आये थे तथा स्वामी प्रेमानंदजी 1988 में भारत आये थे तथा तब से निरन्तर यहां हैं। वे श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के अन्तर्गत जाडऩ आश्रम जिला पाली राजस्थान में साधनारत हैं। महामंडलेश्वर जसराजपुरीजी की गुरु से पहली मुलाकात सिडनी आश्रम में 1996 में हुई थी।
परमहंस पद्धति में दीक्षित
श्री जसराजपुरी बताते हैं कि पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में दीक्षा की 2 पद्धतियां हैं, नागा पद्धति एवं परमहंस पद्धति। वे परमहंस पद्धति में दीक्षित हैं। वे गुरू परम्परा का निर्वाह करते हैं तथा भगवान शंकर की पूजा करते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य है प्रेम से रहना तथा सभी को प्रेम देना। सभी के विचारों को जगह देना, परन्तु अपने विचार को नहीं छोडऩा। माता-पिता को बच्चों के साथ रहना चाहिये तथा उन्हें प्रेम एवं संस्कृति की शिक्षा देनी चाहिये।

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