December 24, 2024

False Miracle : बीस साल पहले गणेश मूर्तियों ने पिया था,अब नन्दी महाराज पी रहे है दूध ; सामान्य वैज्ञानिक घटना को चमत्कार मान रहे हैैं लोग (देखें लाइव विडीयो)

nandi milk

रतलाम,5 मार्च (इ खबरटुडे)। करीब बीस साल पहले देश विदेश में गणेश मूर्तियों के दूध पीने की खबर जंगल में आग की तरह फैली थी। ठीक उसी तर्ज पर शनिवार दोपहर से भगवान शिव के वाहन नन्दी महाराज के दूध पीने की खबर फैल रही है। हांलाकि यह पृष्ठ तनाव की एक साधारण वैज्ञानिक घटना है,लेकिन धर्मालुजन इसे भगवान का चमत्कार मान रहे हैैं।

उल्लेखनीय है कि 21 सितम्बर 1995 को अचानक पूरे देश में गणेश प्रतिमाएं दूध पीने लगी थी। ये खबर इस तरह फैली थी कि छोटे छोटे गांवों में भी गणेश जी दूध पीने लगे थे। इस खबर के फैलते जाने के कारण देश में दूध की कमी हो गई थी और हर कोई गणेश जी को दूध पिलाने की कोशिशों में लग गया था। हांलाकि बाद में वैज्ञानिकों ने इसे तरल पदार्थो के पृष्ठ तनाव की एक साधारण घटना बताया था।

आज भी इसी तरह की घटना की पुनरावृत्ति हो रही है। आज दोपहर करीब डेढ बजे से अचानक ये खबर फैलने लगी कि शिव मन्दिर में शिवलिंग के सामने रहने वाली नन्दी प्रतिमा दूध पी रही है। देखते ही देखते नन्दी को दूध पिलाने के लिए महिलाओं की भीड लगने लगी। पहले तो ये खबर एक ही स्थान से आई थी,लेकिन कुछ ही देर में कई शहरों और गांवों से नन्दी के दूध पीने की खबरें आने लगी। समाचार लिखे जाने तक नन्दी को दूध पिलाने की घटना अब मध्यप्रदेश से निकलकर छत्तीसगढ तक भी पंहुच गई।

प्रतिमाएं नहीं पीती दूध

बीस साल पहले गणेश जी के दूध पीने की घटना हो या आज नन्दी महाराज के दूध पीने की घटना। प्रतिमाएं कभी दूध नहीं पीती। बल्कि वास्तविकता यह है कि तरल पदार्थो में पृष्ठ तनाव (सरफेस टेंशन) होता है,जिसकी वजह से चम्मच जैसे पात्र में रखा तरह पदार्थ जब भी किसी अन्य सतह के सम्पर्क में आता है,वह अन्य सतह की तरफ खींचने लगता है और चम्मच में रखा तरल पदार्थ,अन्य सतह की तरफ चला जाता है। जब यही घटना किसी मूर्ति के मूंह के साथ होती है,तो देखने वाले को यह प्रतीत होता है कि मूर्ति तरह पदार्थ पी रही है। जबकि वास्तविकता यह होती है,कि उक्त तरल पदार्थ,मूर्ति से होता हुआ नीचे चला जाता है और जमीन पर बहने लगता है। यदि मूर्ति सचमुच में दूध या पानी पी रही होती,तो दूध या पानी की एक भी बून्द नीचे जमीन पर नहीं जाती,बल्कि मूर्ति के भीतर चली जाती। यह तथ्य ही इसे साबित करने के लिए पर्याप्त है कि मूर्ति को जितना दूध कथित तौर पर पिलाया जा रहा है,वह पूरा दूध जमीन पर बह जाता है।

कोई भी व्यक्ति इस तथ्य का परीक्षण करके देख सकता है। किसी चम्मच में दूध या पानी भरकर उसे अगर दीवार से या किसी भी अन्य सतह जैसे दरवाजे के सम्पर्क में लाया जाता है,तो चम्मच को बिना टेढा किए,चम्मच का सारा पानी या दूध,दीवार के साथ बहकर नीचे चला जाता है।

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