भाजपा के बुजुर्ग के बचपन का यह पुनरागमन……?
भोपाल,24 जनवरी (इ खबरटुडे) ।हाल ही में हुए नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा अच्छी खासी जीत दर्ज करती। कांग्रेस से आगे वो अभी है लेकिन धार जिले में भाजपा की राजनीति ने पार्टी की चुनावी सफलता में रंग में भंग डाल दिया। धार और मनावर नगरपालिका भाजपा ने जीती है लेकिन पीथमपुर नगर पालिका सहित अधिकांश नगर परिषदों में उसे हार का सामना करना पड़ा। प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव था धार और पीथमपुर नगरपालिका में। पीथमपुर राजस्व के हिसाब से एक बड़ा स्थानीय निकाय है। कारण उसका औद्योकिग क्षेत्र होना है। धार और पीथमपुर की भाजपा में एक दूसरी पहचान भी है। वो है बुजुर्ग और सीनियर नेता विक्रम वर्मा और उनकी विधायक पत्नी श्रीमती नीना वर्मा। विक्रम वर्मा धार से विधायक रहे, राज्यसभा सांसद रहे, प्रदेश और केन्द्र में मंत्री रहे, प्रदेश संगठन के अध्यक्ष रहे, नेता प्रतिपक्ष रहे और अब पिछले तीन विधानसभा चुनावों से उनकी पत्नी श्रीमती नीना वर्मा धार की विधायक हैं। तो इन संदर्भों के बाद…….
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बूढ़ी काकी’ याद आ गयी । खासकर इसकी पहली पंक्ति, ‘ बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है।’ अक्सर इंसान के अंदर इन दिनों में बचपन की तरह जिद और लालच सवार हो जाते हैं । धार में भाजपा की लड़ाई में ऐसा ही कुछ हुआ। विक्रम वर्मा बदलती हुई नई और युवा भाजपा के साथ तारतम्य नहीं बिठा पाए और अपने सारे जीवन की तपस्या को उन्होंने खुद ही खंडित कर दिया। जिस पीथमपुर को उन्होंने कांग्रेस से छीनकर भाजपा का गढ़ बनाया, उस पीथमपुर के नगरपालिका चुनाव में भाजपा बुरी तरह हार गयी । इतना ही नहीं, वर्मा के गृह क्षेत्र धार जिले की धरा पर नौ में से छह नगरीय निकायों पर अब कांग्रेस का कब्जा हो चुका है। यह उस जिले की स्थिति है, जहां खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी सभाएं कीं। शिवराज ने तीन जगह सभाओं को संबोधित किया। इनमें से मनावर और धार को भाजपा ने कांग्रेस से छिन लिया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी प्रचार किया। राज्य मंत्रिमंडल के दो वरिष्ठ सदस्य तुलसीराम सिलावट और मोहन यादव अपनी पूरी ताकत झोंकते रहे।
यदि उस जिले में भाजपा की यह दुर्गति हुई है तो उसका बहुत बड़ा कारण विक्रम वर्मा ही कहे जा सकते हैं । टिकट वितरण को लेकर घातक जिद में उन्होंने भाजपा को चुनावी साल में झन्नाटेदार हार दिला दी। सभी जानते थे कि धार में भाजपा का प्रत्याशी चयन एक तरफ पार्टी के जिलाध्यक्ष युवा राजीव यादव थे और दूसरी तरफ वर्मा का भारी भरकम कद। राजीव यादव भाजपा में धार विधानसभा क्षेत्र से अब चुनाव लड़ने के भी दावेदार हैं। इसलिए जाहिर है वहां टकराव होना ही था।
मध्यप्रदेश के किसी भी क्षेत्र में शिवराज की लोकप्रियता के फैक्टर से इंकार नहीं किया जा सकता । पूरे समय इलेक्शन मोड में रहने वाली भाजपा के संगठन की क्षमताओं से भी किसी को इंकार नहीं हो सकता, लेकिन वर्मा की अहंकार-मिश्रित जिद ने शिवराज और संगठन जैसे तत्वों को भी असरहीन बना दिया। आप बेशक कह सकते हैं कि धार सहित मनावर और डही में भाजपा जीत गयी, लेकिन बाकी छह जगहों की पराजय का क्या? वर्मा तो पूरे जिले को अपनी मिल्कियत मानकर मनमाने तरीके से आगे बढ़े थे, तो फिर हार का जिम्मा तो उन्हें खुद ही लेना होगा। आखिर पीथमपुर नगरपालिका में वर्मा के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले संजय वेष्ण्व ने एक दर्जन से ज्यादा बागी उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। पिछली नगर निगम में संजय की पत्नी नगर पालिका अध्यक्ष थीं और इस बार वे खुद बनना चाहते थे। जाहिर है भाजपा की ताजा नीतियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मजबूत आग्रह के कारण परिवारवाद को किसी भी हालत में सहन नहीं करने की है। लिहाजा, यहां श्रीमती नीना वर्मा और जिलाध्यक्ष राजीव यादव के बीच खींचतान थी। टिकट बंटवारे में एक तरह से संगठन की चली, इसलिए वर्मा खेमे ने एक दर्जन से ज्यादा बागी उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। नतीजा, पीथमपुर जैसी नगरपालिका भाजपा के हाथ से निकल ही गई है। वहां कांग्रेस में भी घमासान है, इसलिए बड़ी बात नहीं कि तोड़फोड़ कर भाजपा यहां कोशिश करने से बाज न आएं।
मुंशी प्रेमचंद दूसरे नहीं हो सकते, लेकिन किसी मुंशी की तरह हिसाब कर लीजिए। पार्टी से और पार्टी में लगभग सब कुछ पा चुके विक्रम वर्मा का सियासी सन्यास में मन नहीं रम पाया है। ‘और’ के फेर में वह ऐसा कर गुजरे कि पार्टी के लिए उनके गृह जिले की अधिकांश जगहों पर सियासी ठौर ही शेष नहीं बचा है। हैरत है कि पार्टी की ताजा परिवारवाद और अधिकारवाद के खिलाफ सख्ती के बावजूद वर्मा को यह उम्मीद क्यों करना चाहिए थी कि संगठन उनके आगे बराबर नतमस्तक होता रहेगा।
भाजपा के धार जिला अध्यक्ष राजीव यादव से वर्मा परिवार की नाखुशी किसी से छिपी नहीं है। इस परिवार का अनुराग पीथमपुर के बाहुबली नेता संजय वैष्णव के प्रति ज्यादा रहा। वर्मा दंपति की कोशिश थी कि वैष्णव की पत्नी के बाद अब संजय को पीथमपुर नगरपालिका में अध्यक्ष पद पाने का अवसर मिले। इस चक्कर में खींचतान इतनी हुई कि भाजपा द्वारा वर्मा और पटेल के बीच संतुलन साधने की कोशिश ने वैष्णव खेमे को नाराज कर दिया। उसके कई नेताओं ने निर्दलीय चुनाव के जरिये भाजपा को जीत से दूर कर दिया। मजे की बात यह कि जिस पीथमपुर को लेकर विक्रम और नीना वर्मा ने तमाम आग्रहों को दुराग्रह में बदल दिया, उस पीथमपुर में उन्होंने एक चुनावी सभा तो दूर, वहां प्रचार में जाने तक में कोई रूचि नहीं दिखाई।
स्थानीय निकायों के चुनावों में 413 में से 316 निकायों पर भाजपा की जीत बताती है कि उसने सफलता के प्रयत्न पूरे मन से किए। पार्टी यह सोचकर भी राहत महसूस कर सकती है कि पीथमपुर जैसी प्रतिष्ठापूर्ण नगरपालिका में बहुमत न मिलने के बावजूद वह परिषद बना सकती है, लेकिन क्या चुनावी साल में इस तरह के सांत्वना पुरस्कार शुभ संकेत कहे जा सकते हैं?