April 29, 2024

Raag Ratlami -जिले की पंचायत में फूल छाप की जीत,किस्मत या करामात…? फूल छाप का मुखिया बनने की दौड शुरु

-तुषार कोठारी

रतलाम। जिले की पंचायत में फूल खिल गया। इसे फूल छाप वालों की किस्मत कहा जाए या करामात ये अलग बात है। जिले की पंचायत में इस बार सबकुछ उल्टा पुल्टा हुआ था। पंजा पार्टी अपने गढ सैलाना से साफ हो गई थी। पंजा पार्टी के तीन नेता जैसे तैसे जीत कर आए थे। फूल छाप के सात लोग जीते थे और फूल छाप से बगावत करने वाले दो लोगों ने जीत हासिल की थी।

फूल छाप वालों को उम्मीद थी कि पंजा पार्टी कमजोर है,इसलिए जिले की पंचायत पर फूल छाप आसानी से कब्जा जमा लेगी। लेकिन जिले के विकास के नाम पर बनाए गए मंच ने फूल छाप वालों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। पंजा पार्टी वालों ने फूल छाप के बागियों को अपने साथ मिलाकर फूल छाप को पटखनी देने की पूरी योजना बना ली थी। लेकिन आखरी वक्त में सबकुछ बदल गया।

सियासत की ये कहानी किसी सस्पेंस फिल्म से कम दिलचस्प नहीं है। सौलह में से तीन वोचों पर दो दो मोहर लगी हुई थी और इसी वजह से जिले की पंचायत पर फूल छाप का कब्जा हो पाया। पहले तो पंजा पार्टी के लोगों को लगा था कि इस सारे खेल में जिला इंतजामिया के अफसरों ने कोई करामात दिखाई है। इसकी वजह भी थी। इंतजामिया के अफसरों ने सैलाना में इसी तरह की करामात दिखाई थी और पंजा पार्टी वालों का फार्म ही निरस्त कर दिया था। लेकिन पंजा पार्टी की ये शंका जल्दी ही दूर हो गई,जब उन्हे पता चला कि तीन वोट वास्तव में ही गडबड थे।

शुरुआत में ये अंदाजा लगाया गया कि सैलाना के जयस वालों ने करामात दिखाई और पंजा पार्टी के अरमानों पर पानी फेरा। लेकिन जब उपाध्यक्ष का चुनाव हुआ तो पहले के सारे अंदाजे गलत साबित हो गए। उपाध्यक्ष के चुनाव में भी अगर वही फार्मूला चलता,तो फूल छाप को इसमें भी जीत मिलती। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उपाध्यक्ष का चुनाव फूल छाप हार गई और जीत का ताज सैलाना वाले जयस के हाथ लग गया।

अब सवाल ये खडा हो गया है कि अध्यक्ष के चुनाव में अगर जयस के लोगों ने अपने वोट निरस्त करवाए थे,तो उपाध्यक्ष के चुनाव के वक्त उन्हे सारे के सारे वोट कैसे मिल गए। जयस के लोगों ने अगर फूल छाप के बागी के साथ दगाबाजी की थी,तो दगाबाजी झेल चुके लोगों ने जयस के साथ दगाबाजी क्यो नहीं की? अगर जयस के उम्मीदवार के साथ बागियों के वोट नहीं होते तो उपाध्यक्ष का चुनाव भी फूल छाप के हत्थे लग जाता।

पूरी कहानी में अब सिर्फ सवाल ही सवाल है। जवाब कहीं नहीं। चुनाव हारे हुए लोग इस पूरी कहानी के पीछे इंतजामिया के अफसरों की करामात ढूंढ रहे है। अफसरों ने कोई करामात की भी होगी तो उसे ढूंढ पाना बेहद कठिन है। कुल मिलाकर जीत तो जीत है। ये जीत किस्मत की जीत है या करामात की,इसका जवाब सियासत से जुडे लोग ढूंढने में लगे रहेंगे।

फूल छाप का मुखिया बनने की दौड शुरु

चुनावों का चक्कर अब निपट चुका है और फूल छाप पार्टी के नेता अब जिले का मुखिया बनने की दौड में उतरने की तैयारी में लग गए है। फूल छाप में अब तक जिले के मुखिया रहे दरबार,उम्र की सीमा तोड कर मुखिया बने थे। फूल छाप वालों ने मुखिया के लिए उम्र की सीमा का फार्मूला पहली बार तय किया था इसलिए उस वक्त इसमें ढील पोल चल गई थी,लेकिन अब ये माना जा रहा है कि इस बार उम्र की सीमा तोडी नहीं जा सकेगी।

फूल छाप के कई सारे युवा नेता अब जिले की कमान सम्हालने की दौड में उतर रहे है। इनमें वो भी शामिल है,जिन्होने महापौर बनने के लिए टिकट मांगा था और वो भी शामिल है,जो टिकट की दौड में नहीं थे। टिकट कटने वाले नेता,टिकट मांगने को अपनी योग्यता के रुप में प्रदर्शित कर रहे है। वे पार्टी को ये जताने की कोशिश कर रहे है कि टिकट कटने के बावजूद उन्होने पार्टी का साथ नहीं छोडा इसलिए उनका दावा ही सबसे मजबूत है। इसी तरह जिन्होने टिकट की दावेदारी ही नहीं की थी,वे ये बता रहे है कि उनका दावेदारी ना करना जिले की कमान सम्हालने की योग्यता है। फूल छाप की गतिविधियों पर नजर रखने वालों का कहना है कि पिछली नगर निगम में नम्बर दो रहे इन्दौरी आका के चेले ने खुद को अभी से जिले का मुखिया मान लिया है। ये नेताजी अखबारी खबर से तीन दिन के लिए शहर के प्रथम नागरिक बने थे। लेकिन बाद में प्रथम नागरिक बनने की जिम्मेदारी वाटर पार्क वाले भैया को मिल गई थी। नेताजी इससे बहुत गुस्से में थे और इस गुस्से के चलते उन्होने फूल छाप का खेल बिगाडने की तमाम कोशिशें भी की थी,लेकिन उपर उपर से वे खुद को फूल छाप का निष्ठावान बताने में लगे हुए थे। इसी तरह एक दूसरे नेताजी वैसे तो संगठन का बडा पद सम्हाल रहे थे,लेकिन पंजा पार्टी से अपनी नजदीकी के चलते चुनाव के दौरान उन्होने पंजा पार्टी की मदद करने में भी कोई कसर नहीं छोडी थी। फूल छाप वावे दूसरे नेता,इन दावेदारों की हरकतों को उपर पंहुचाने की कोशिशों में लगे है। आने वाले वक्त में फूल छाप की अंदरुनी सियासत अभी और दिलचस्प दौर में पंहुचेगी। किसकी कोशिशें कितना कमाल दिखाएगी ये जानने के लिए अभी काफी इंतजार करना होगा।

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