Drone attack/ड्रोन से हमले का था अंदेशा सुरक्षा एजेंसियों को,हो गई फिर भी चूक,अब चल रही बड़ी तैयारी
नई दिल्ली,28 जून (इ खबरटुडे)। जिस तरह पिछले दो साल से पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों को हथियार मुहैया कराने के लिए लगातार ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है उससे सुरक्षा एजेंसियां चौकन्नी थीं। कई फोरम पर इस पर चर्चा भी होती रही है कि ड्रोन सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। साथ ही ड्रोन किस तरह भविष्य के युद्ध की तस्वीर बदलेंगे इसे लेकर भी चर्चाएं चल रही थीं।
इंडियन आर्मी ने इसी साल आर्मी डे पर दिखाया कि किस तरह ड्रोन अटैक कर सकते हैं।आर्मी डे परेड के दौरान इसका प्रदर्शन किया गया कि किस तरह ड्रोन बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के दुश्मन के ठिकानों को सटीक निशाना बना सकते हैं। कई ड्रोन के मिलकर एक मिशन को अंजाम देने के इस सिस्टम को ड्रोन स्वॉर्मिंग कहते हैं। सेनाएं ड्रोन के खतरे से निपटने की तैयारी तो कर रही हैं लेकिन अभी तैयारी पूरी नहीं है।
शनिवार रात को जम्मू में एयरफोर्स स्टेशन पर हुए ड्रोन अटैक ने यह साफ कर दिया है कि आर्म्ड फोर्सस को ड्रोन से निपटने के अपने मिशन में तेजी लानी होगी। अभी सरकारी सहित कई प्राइवेट फर्म भी एंटी ड्रोन सिस्टम बनाने का काम कर रही है। साथ ही इंडियन नेवी ने ड्रोन से निपटने के लिए इजरायल को स्मैश- 2000 प्लस का ऑर्डर दिया है। हालांकि इसकी डिलीवरी में वक्त लगेगा।
इंडियन नेवी ने दुश्मन के छोटे ड्रोन से निपटने के लिए इस्राइल को सीमित संख्या में ‘स्मैश-2000 प्लस’ का ऑर्डर दिया है। यह एंटी-ड्रोन हथियार कंप्यूटराइज्ड फायर कंट्रोल और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक साइट सिस्टम वाला है। इसे राइफल के ऊपर फिट किया जा सकता है। हथियार पर लगाने के बाद इसकी मदद से छोटे ड्रोन को हवा में मार गिराया जा सकता है।
डीआरडीओ ने बनाया है एंटी ड्रोन सिस्टम
डीआरडीओ ने भी दो एंटी ड्रोन सिस्टम विकसित किए हैं। पिछले साल 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जब प्रधानमंत्री भाषण दे रहे थे तब सुरक्षा में डीआरडीओ का एंटी ड्रोन सिस्टम भी तैनात था। तब पहली बार आधिकारिक तौर पर इसकी जानकारी दी गई थी। इनमें से एक सिस्टम माइक्रो वेव के जरिए किसी भी ड्रोन के कम्युनिकेशन को जैम कर सकता है, इसे जैमिंग सिस्टम भी कहा जाता है।
दरअसल ड्रोन किसी न किसी कम्युनिकेशन सिस्टम के जरिए ही ऑपरेट होता है और उस कम्युनिकेशन को जैम करने पर ड्रोन अपने आप नीचे आ जाता है। दूसरा सिस्टम जो लाल किले पर तैनात किया गया था वह लेजर बेस्ड डायरेक्टेड एनर्जी वेपन है। जो किसी भी छोटे से छोटे ड्रोन को लेजर बीम के जरिए गिरा सकता है। लेजर बीम ड्रोन को गरम कर देती है जिससे उसका इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और सेंसर डैमेज हो जाता है और ड्रोन नीचे गिर जाता है।
भारतीय सेना में भी हो रहा है काम
भारतीय सेना में इनोवेशन के तहत ड्रोन जैमिंग सिस्टम पर भी काम हो रहा है। कुछ वक्त पहले ही भारतीय सेना ने दिखाया कि उनके एक अधिकारी ने इनहेंस कॉडकॉप्टर जैमिंग सिस्टम तैयार किया है। इसकी रेंज करीब 3 किलोमीटर तक है। इसे बंकर के अंदर बैठकर रिमोट के जरिए कंट्रोल कर सकते हैं। इसमें थर्मल इमेजर के जरिए कॉडकॉप्टर को डिटेक्ट कर सकते हैं और रिमोट कंट्रोल के जरिए उसे ट्रैक कर सकते हैं। सिगनल जैमर को ऑन करते ही कॉडकॉप्टर के सिगनल जैम हो जाते हैं और वह नीचे आ जाता है।
कोई भी कॉडकॉप्टर नॉर्मल टाइम में अपने बेस स्टेशन के साथ कनेक्ट रहता है और जीपीएस सेटेलाइट की मदद से अपनी लोकेशन ले कर रखता है। जब जैमर ऑन कर देते हैं तो कॉडकॉप्टर अपने बेस स्टेशन से डिस्कनेक्ट हो जाता है और अपनी जीपीएस लोकेशन भी खो देता है। ऑपरेटर को पता नहीं चलता कि कॉडकॉप्टर क्या कर रहा है। कॉडकॉप्टर के अंदर एक रिटर्न टू होम फीचर है जो ऐसी हालात में एक्टिवेट हो जाता है लेकिन ये फीचर जीपीएस बेस फीचर है।
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जैमर सिस्टम के जरिए जीपीएस जैम कर देते हैं तो यह फीचर भी फेल हो जाता है। जिसकी वजह से दुश्मन का कॉडकॉप्टर अपनी ही जगह से नीचे आ जाता है। भारत की कई प्राइवेट फर्म भी एंटी ड्रोन गन बनाने पर काम कर रही हैं। इसके अलावा इंडियन आर्मी के एयर डिफेंस कॉलेज में भी कुछ प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। भारतीय सेना भी इमरजेंसी प्रॉक्योरमेंट के तहत एंटी ड्रोन सिस्टम लेने की प्रक्रिया में है।
क्यों है ड्रोन बड़ी चुनौती
सिक्योरिटी एजेंसी के एक अधिकारी के मुताबिक ड्रोन पर जो काम हुआ है वह ज्यादातर ऑफेंसिव ऑपरेशंस के लिए यानी अटैक करने के लिए हुआ है। दुनिया भर में इस पर काम हो रहा है कि कैसे दुश्मन को टारगेट करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल हो सकता है। लेकिन ड्रोन के हमले से किस तरह निपटा जाए इस पर अभी बहुत कम काम हुआ है। भारतीय सेना अभी दुश्मन के किसी ड्रोन को गिराने के लिए या तो स्मॉल आर्म्स का इस्तेमाल करती है या कभी कभी एयर डिफेंस गन का भी इस्तेमाल होता है। एक बार तो एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल का इस्तेमाल ड्रोन के लिए किया गया।
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ड्रोन के साथ चुनौती यह है कि यह रडार की पकड़ में भी नहीं आता। रडार एक तय ऊंचाई तक उड़ने वाली चीजों को ही पकड़ सकता है और छोटे ड्रोन उससे कम ऊंचाई पर उड़ते हैं। थोड़ा वजन कैरी करने वाले ड्रोन आराम से उपलब्ध भी हैं और कोई भी इनका इस्तेमाल कर सकता है। इन्हें कोई अपने घर की बालकनी से भी लॉन्च कर सकता है। हर ड्रोन अलग साइज के होते हैं। जरूरी नहीं कि ड्रोन हथियार ही कैरी करें, ड्रोन ट्रिगर का भी काम कर सकता है और कहीं पर रखे विस्फोटक को ड्रोन के जरिए एक्टिवेट किया जा सकता है।