April 25, 2024

नई शिक्षा नीति हमें अपनी प्राचीन और समृद्ध विरासत की ओर ले जाती है – राज्यपाल

उज्जैन,18 जनवरी (इ खबरटुडे/ब्रजेश परमार)। नई शिक्षा नीति में कई ऐसी बात है, जो हमें अपनी प्राचीन विरासत की ओर ले जाती है। हम भारत के बारे में कितना जानते हैं, यह आज हमारे सामने प्रश्न है। राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने यह बात बुधवार को विक्रम विश्वविद्यालय में शिक्षा समागम कार्यक्रम के अन्तर्गत भारतीय ज्ञान परम्परा पर आयोजित एक दिवसीय कॉन्फ्रेंस में सम्बोधित करते हुए कही।

इसके पूर्व उज्जैन शिक्षा समागम कार्यक्रम के अन्तर्गत भारतीय ज्ञान परम्परा एवं भारतीय भाषा संवर्धन की एक दिवसीय संगोष्ठी का आज विक्रम विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयन्ती हॉल में राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल, उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव, आईजीएनटीयू कुलपति डॉ.प्रकाशमणि त्रिपाठी, श्री कैलाशचंद्र शर्मा राष्ट्रीय अध्यक्ष विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान, प्रो.नरेंद्र कुमार तनेजा राष्ट्रीय महामंत्री विद्या भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान, कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय डॉ.अखिलेश कुमार पाण्डेय, कुल सचिव डॉ.प्रशांत पुराणिक एवं अन्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर शुभारम्भ किया गया।

राज्यपाल ने कहा कि अपने देश की संस्कृति को फिर से लोगों के बीच ले जाने के लिये विद्या भारती कई वर्षों से प्रयत्न कर रही है। हमारी सांस्कृतिक विरासत और परम्परा के पुनर्विचार के लिये विद्या भारती शिक्षा समागम का आयोजन करती रही है। आज के इस उदात्त सांस्कृतिक आयोजन के लिये सभी को साधुवाद। उज्जैन की शैक्षणिक सांस्कृतिक विरासत अद्वितीय है। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की, यह कालिदास की नगरी के नाम से सुशोभित होती है, यहां पर वराहमिहीर जैसे विक्रम के नवरत्नों ने जन्म लिया।

भारतीय ज्ञान परम्परा की सलीला सतत प्रवाहित रही है। अब तक्षशिला व नालन्दा की बात हो रही है। हमारे देश में कभी दूध-दही की नदियां बहा करती थी। इस देश में राणा सांगा की शौर्य गाथा गूंजती रहती है। वर्तमान समाज में विकृति का लक्षण दिखाई दे रहे हैं। संघ परिवार की कई संस्थाएं सेवा के प्रकल्प में लगी हुई है, सेवा कार्यों को और अधिक विस्तार देना होगा, काम बहुत बाकी है। राज्यपाल ने कहा कि जब से वे मध्य प्रदेश में आये हैं, तब से पिछड़े व वंचित समाजों में निरन्तर जा रहे हैं। इन समाजों के उत्थान के कार्य निरन्तर करना चाहिये।

समाज की स्थिति सुधारना बहुत आवश्यक है। आज के युग में आत्मीयता नहीं है। वसुधैव कुटुंबकम की बात करने वाली संस्कृति का पालन करते हुए हमें पास वाले की भी चिन्ता करनी चाहिये। उन्होंने वर्तमान में उच्च शिक्षित लोगों द्वारा छोटे काम करने वाले कामगारों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार को भी रेखांकित किया और कहा कि यह देखकर ग्लानि होती है। नई पीढ़ी को यह समझाने की आवश्यकता है। सभी का आत्म सम्मान बनाये रखना आवश्यक है।

कार्यक्रम में सम्बोधित करते हुए उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने कहा कि हमारे उज्जैन की विशेषता है कि हम अपने मन्दिर की प्रतिमाओं में भी प्राण प्रतिष्ठा कर देते हैं। हमारे यहां कालभैरव मन्दिर में मंत्रोच्चार से प्रतिमा मदिरापान करती है। बोरेश्वर महादेव दंगवाड़ा में शिव लिंग पर जितना भी जल चढ़ाओ, पृथ्वी के गर्भ में समा जाता है, पता नहीं लगता पानी कहां जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां के पुरातत्वविद डॉ.विष्णु श्रीधर वाकणकर ने डोंगला में शंकु यंत्र की स्थापना की। इस यंत्र से 21 जून व 22 दिसम्बर के दिन समय की माप का सटिक दर्शन देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी परम्परा में अनेकों उदाहरण पड़े हैं, जिनमें हमें अपनी संस्कृति के दर्शन होते हैं।

डॉ.यादव ने अपने उद्बोधन में विक्रम और बेताल की कथा तथा विक्रमादित्य की 32 पुतलियों की कहानी के बारे में बताते हुए कहा कि बेताल पच्चीसी की पच्चीस कहानियों में सहजता से ज्ञान की बात कही गई है। ज्ञान के साथ चतुराई भी आवश्यक है, यह बात इन कहानियों से स्पष्ट होती है। उन्होंने कहा कि हम अपनी ज्ञान परम्परा को बिना भाषा व बोली के एक-दूसरे तक सम्प्रेषित करने की कला वर्षों से जानते रहे हैं।कार्यक्रम में स्वागत भाषण विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.अखिलेश कुमार पाण्डेय द्वारा दिया गया। भारतीय ज्ञान परम्परा पर विषय प्रवर्तन प्रो.नरेंद्र कुमार तनेजा राष्ट्रीय महामंत्री विद्या भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान एवं भारतीय ज्ञान परम्परा पर उद्बोधन आईजीएनटीयू कुलपति डॉ.प्रकाशमणि त्रिपाठी ने दिया।

एग्जाम वॉरियर पुस्तिका का विमोचन
एक दिवसीय संगोष्ठी में राज्यपाल एवं अन्य अतिथियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परीक्षा के लिये लिखी गई पुस्तक एग्जाम वॉरियर का विमोचन किया गया। हिन्दी व अंग्रेजी में प्रकाशित इस पुस्तक में परीक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये उद्बोधनों को शामिल किया गया है। उक्त पुस्तक भारत की विभिन्न 16 भाषाओं में अनुवादित की जा रही है।

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