साहित्य

उसे मनाले…..

गीत गाले,उसे मनाले,जिसने जगत रचाया है,
वही है कण कण का स्वामी,उसी मेंजगत समाया है ।

इधर उधर भटक रहा,कहीं शरण नहीं मिल पाने का,
शरण मिलेगी उसी के चरणों,इधर उधर नहीं भटकने का ।

बुद्धि दी गृहै सोच,उसकी दया बिन आगे नहीं बढ पाने का,
प्रात: उठ गीत गाले,उसे मनाले,काम तेरा बन जाने का ।

प्राणों पर अधिपत्य उसी का,कब ले जाए कोई नहीं जान पाएगा,
जग में आया है,दुखियों के कष्ट मिटा ले,इसी से यश मिल पाएगा।

कहीं आग से झुलस रहे,कहीं पानी में डूब रहे,सब उसी का नजारा है,
सच्चे ईश्वर को भूला दिया,उस बिन मिलना नहीं किनारा है।

उसकी लीला अपरंपार,गए सब हार,किसी का बल नहीं चल पाया है,
सभी के कर्मों का लेखा उसी के पास,कोई भ्रमित नहीं कर पाया है।

किए का दण्ड मिलेगा,लालच में कोई न उसे फंसा पाया है,
उससे डर ले शुभ कर्म करले,अन्त समय यही काम आना है।

-राजेन्द्र बाबू गुप्त
प्रधान
आर्यसमाज दयानन्द मार्ग रतलाम (म.प्र.)

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