March 29, 2024

पीएम मोदी को अधीनम ने सौंपा सेंगोल, नए संसद भवन में किया जाएगा स्थापित,पवित्र सेंगोल को अब मिलेगा उचित स्थान

नई दिल्ली, 27 मई(इ खबर टुडे)। नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह से एक दिन पहले शनिवार शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर अधीनम लोगों से मुलाकात की और उनका आशीर्वाद लिया। इस दौरान अधीनम ने प्रधानमंत्री मोदी को एतिहासिक राजदंड सेंगोल सौंपा। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस सेंगोल को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला और इसे वाकिंग स्टिक बना दिया गया था। लेकिन भारत की सत्ता हस्तांतरण के सबसे मंगल प्रतीक पवित्र सेंगोल को अब उसका उचित स्थान दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस दौरान तमिलनाडु से संबंध रखने वाले और चांदी से निर्मित एवं सोने की परत वाले ऐतिहासिक राजदंड (सेंगोल) को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया जायेगा। . अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया। यह रस्मी राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, तमिलनाडु से दिल्ली आए अधीनम ने पीएम आवास पर मंत्रोच्चारण के बीच उन्हें ‘सेंगोल (राजदंड)’ सहित विशेष उपहार दिए। वहीं पीएम मोदी ने उनका आशीर्वाद लिया और उनका अभिनंदन किया।

संसद भवन बनाने में लगी देश के अलग-अलग हिस्सों की सामग्री

नए संसद भवन के निर्माण में उपयोग की गई सामग्री देश के विभिन्न हिस्सों से लाई गई है. इसमें प्रयुक्त सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से लाई गई है। जबकि लाल और सफेद बलुआ पत्थर राजस्थान के सरमथुरा से लाया गया है।

बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी में लाल किले और हुमायूं के मकबरे के लिए बलुआ पत्थर भी सरमथुरा से लाया गया था। वहीं हरा पत्थर उदयपुर से, तो अजमेर के पास लाखा से लाल ग्रेनाइट और सफेद संगमरमर अंबाजी राजस्थान से मंगवाया गया है।

अशोक चिह्न के लिए औरंगाबाद और जयपुर से लाई गई सामग्री

वहीं लोकसभा और राज्यसभा कक्षों में ‘फाल्स सीलिंग’ के लिए स्टील की संरचना केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव से मंगाई गई है। जबकि नये भवन के लिए फर्नीचर मुंबई में तैयार किया गया था। इमारत पर लगी पत्थर की ‘जाली’ राजस्थान के राजनगर और उत्तर प्रदेश के नोएडा से मंगवाई गई थी. इसके अलावा अशोक चिह्न के लिए सामग्री महाराष्ट्र के औरंगाबाद और राजस्थान के जयपुर से लाई गई थी, जबकि संसद भवन के बाहरी हिस्सों में लगी सामग्री को मध्य प्रदेश के इंदौर से मंगाया गया था।

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