November 22, 2024

Raag Ratlami Unlock – खत्म होने को है कोरोना काल,किसी ने बहुत कुछ गंवाया,किसी ने बहुत कुछ कमाया

-तुषार कोठारी

रतलाम। करीब दो महीने तक तालाबन्दी में रहने के बाद अब तालाबन्दी खत्म होने के दिन नजदीक आ गए है। तीन हफ्तों पहले कोरोना का कहर अपने पूरे जलाल पर था,लेकिन बीते हफ्ते में ये लगातार उतार पर है। सरकारी इंतजामों के असर के साथ साथ थोडी थोडी आंकडों की बाजीगरी का नतीजा है कि अब मरीजों का आंकडा दो अंकों में आ गया है और जल्दी ही इसके एक अंक में हो जाने की भी उम्मीद है।

अस्पतालोंं में लगने वाली भीड अब नदारद है। अस्पतालों के बिस्तर खाली पडे है। ना तो कहीं आक्सिजन की मारामारी है और ना दवाईयों की किल्लत है। रतलाम की किस्मत इस मामले में भी अच्छी रही है कि यहां ब्लैक फंगस के मामले देखने को नहीं मिले है। कुल मिलाकर अब सब कुछ नियंत्रण में नजर आ रहा है।

लाकडाउन से बाहर निकलने के इस दौर में अब लोगों का ध्यान उन बातों पर जा रहा है,जिन पर पहले कोई ध्यान नहीं था। कोरोना के दौर में कई लोगों ने काफी कुछ गंवाया। किसी ने अपनो को खोया,तो किसी ने जिन्दगी भर की कमाई गंवा दी। लेकिन शहर के कई सारे सफेद कोट वालों और इलाज के धन्धे से जुडे कई लोगों ने इस दौर में जमकर हासिल किया।

अस्पतालों के बिल अब सामने आ रहे है। किसी भी प्राइवेट हास्पिटल का कोई बिल लाख रुपए से कम नहीं रहा। निश्चित रुप से सफेद कोट वालों ने खतरा उठाकर लोगों का इलाज किया,लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं हो सकती,कि खतरा उठाने के एवज में उन्हे मोटी कमाई मिली। कई सारी मेडीकल की दुकानों के बाहर शामियाने तान दिए गए थे,ताकि दवा लेने वालों की भीड को धूप से राहत मिल सके। आमतौर जब किसी जगह कोई मंगल आयोजन होता है,तो शामियाने लगाए जाते है। मेडीकल दुकानों के बाहर ताने गए शामियाने भी कुछ कुछ ऐसे ही लगते थे।

अस्पतालों ने तो आक्सिजन तक पर मोटी कमाई कर डाली। साढे पांच सौ रु. के आक्सिजन सिलैण्डर के साढे चार हजार रु. वसूलने का मौका तो उन्हे कोरोना ने ही दिया था। अस्पतालों के भारी भरकम बिलों को देखकर कई लोगों का मानना है कि शहर के निजी अस्पताल अब बैैंकों को फायनेन्स करने की स्थिति में आ गए है।

कोरोना काल के गुजरने के बाद ये सारी बातें इतिहास में दर्ज हो जाएगी। कोरोना का दौर इतना खतरनाक था कि हर कोई इसे भूल जाना चाहेगा। और शायद इसीलिए इस दौर में हुई लूटपाट भी किस्से कहानियों में ही रह जाएगी। इस पर ना तो कभी कोई कार्यवाही होगी और ना किसी को इसके लिए कोई सजा दी जाएगी। इसके उलट सभी सफेद कोट वालों की तारीफों के पुल बान्धे जाएंगे,भले ही उनमें से कई सारे तो केवल कमाई में लगे थे। इस दौर में दवाईयों और उपकरणों की कालाबाजारी करने वालों में से जो पकडा गए ,उन्हे भी भुला दिया जाएगा और जो नहीं पकडे गए उनका तो कोई जिक्र भी नहीं होगा। कुल मिलाकर कोरोना के गुजरने के बाद अब नई शुरुआत का वक्त है। इसलिए पिछली सारी बातों को भुला देना ही ठीक है।

डीजल का सदुपयोग….

पिछले करीब एक हफ्ते से शहर में रोजाना वर्दी वालों के वाहनों का काफिला सायरन बजाते हुए शहर में घूमता है। इस काफिले में वर्दी वाले अफसरों के साथ इंतजामिया के अफसर भी मौजूद रहते है। पिछले हफ्ते इंतजामियां के कम्प्लीट लाकडाउन और इ पास वाले आर्डर के बाद शहर के लोग वैसे ही बाहर निकलने से परहेज करने लगे है। जरुरी कामों के लिए निकलने वाले भी बहुत कम हो गए है। लेकिन इंतजामियां की सोच है कि शहर की सडक़ों पर काफिला गुजरने से जनता को इंतजामियां की सख्ती और सक्रियता का एहसास ठीक से हो जाता है। भले ही इसकी जरुरत ना हो। यही वजह है कि रोजाना काफिला निकाला जाता है। लेकिन कुछ लोगों ने इसे कुछ अलग अंदाज में देखा। काफिले को देखकर एक शख्स की टिप्पणी थी कि लाकडाउन में वर्दीवालों की गाडियां कम चल रही है, डीजल की खपत भी कम हो गई है। डीजल का कोटा कम ना हो जाए,बस इसी चक्कर में काफिला निकालने का इंतजाम किया है,ताकि डीजल भी जल जाए और लोगों को सरकार के होने का एहसास भी बना रहे।

गायब हुआ जलसंकट

कोरोना के इस दौर में कुछ अच्छी बातें भी हुई। लेकिन कोरोना के हडकम्प में इस पर किसी का ध्यान ही नहीं गया। अप्रैल और मई ये दोनों महीने कोरोना की भेंट चढ गए। ये ही दो महीने आमतौर पर जलसंकट वाले महीने होते है। अगर कोना ना होता तो अखबारों में हर दूसरे दिन जलसंकट की खबरें नजर आ रही होती। कभी ढोलावाड का जलस्तर कम होने की खबर होती,तो कभी किसी इलाके में जलप्रदाय नहीं होने की खबर आती। लेकिन चमत्कार देखिए इस बार इन दो महीनों में ऐसी एक भी खबर नजर नहीं आई। इसका एक मतलब तो साफ है कि शहर अब जलसंकट वाले दौर से आने निकल गया है। यह भी कह सकते है कि नगर निगम की कार्यकुशलता बहुत बढ गई है। ये अन्दाजा भी लगाया जा सकत है कि मोहल्लों के तमाम नेता कोरोना के चक्कर में उलझे हुए थे इसलिए कहीं कोई
बवाल नहीं हुआ।

You may have missed