April 19, 2024

Raag Ratlami Police : झूठी कामयाबियों का ढोल पीटते वर्दीवाले,मगर हकीकत कुछ और है/फूल छाप वालो के लिए अब इन्तहा हो गई इंतज़ार की

-तुषार कोठारी

रतलाम। आजकल वर्दीवालों के तौर तरीके समझ से परे होते जा रहे है। वर्दीवाले अपनी कामयाबियों का ढोल कुछ इस तरीके से पीटते है,जैसे उन्होने कोई बहुत बडा कमाल कर दिया हो,लेकिन असलियत कुछ और होती है। कुछ मामलों में वर्दीवाले बदमाशों को बचाने की कोशिशें भी करते नजर आते है।

हफ्ते के आखरी दिन वर्दीवालों ने एक खबर जारी की,जिसमें बताया गया कि उन्होने जिस्म फरोशी के धन्धे में जबरन धकेली गई एक नाबालिग बच्ची को बचा लिया। वर्दीवालों की तरफ से जारी इस खबर मे कप्तान से लगाकर तमाम अफसरों के गुणगान किए गए।

वर्दीवालों की खबर की खासियत होती है कि अवैध शराब की दो चार बोटलें भी बरामद करते है तो खबर सीधे कप्तान के निर्देशन से शुरु होती है और फिर दो नम्बर वाले साहब के मार्गदर्शन का जिक्र होता है फिर तीसरे नम्बर वाले साहब का नेतृत्व होता है फिर टीम बनती है और फिर कप्तान के निर्देशन में टीम द्वारा अवैध शराब की दो चार बोटलें या दो चार सौ का जुआ खेलते जुआरियों की धरपकड पर जाकर यह खबर खत्म होती है। फिर आगे इसी खबर में सराहनीय भूमिका निभाने वालों की एक पूरी लिस्ट रहती है।

बहरहाल बात जिस्मफरोशी के धन्धे में धकेली गई नाबालिग बालिका की हो रही थी। जिसे वर्दीवालों ने बचाया और बाल कल्याण वालों को सौंप दिया। तो इस खबर में भी कप्तान से लगाकर तमाम अफसरों के गुणगान किए गए।

अब देखिए हकीकत क्या है? बच्चों को बचाने वाली एक एनजीओ को ये खबर मिली कि परवलिया के बांछडा डेरे में नाबालिग बालिका से जिस्मफरोशी कराई जा रही है। एनजीओ ने वर्दी वालों को खबर दी और आगे वर्दी वालों ने जाकर उस बच्ची को बरामद कर लिया। उससे धन्धा कराने वाली दो औरतों को भी वर्दी वालों ने धर लिया। लेकिन वर्दी वालो ने अपनी पूरी खबर में उस एनजीओ का नाम तक नहीं आने दिया जिसकी वजह से वो बच्ची बचाई जा सकी।

इससे भी बडी हकीकत ये है कि पूरे जिले को पता है कि रतलाम से मन्दसौर के रास्ते में ऐसे कई सारे डेरे है,जहां बरसों से जिस्मफरोशी का धन्धा होता है। जब आम लोगों को पता है तो वर्दी वालों को इसका पता क्यों नहीं होगा? हिन्दुस्तान के कोने कोने से आने वाले ट्रक ड्राइवरों की बदौलत इस इलाके की शोहरत पूरे मुल्क में फैली हुई है कि इस इलाके में जिस्म फरोशी के अड्डे बरसों से बदस्तूर चल रहे है। इन अड्डों पर जाने वालों को ये भी पता है कि यहां नाबालिग बच्चियों को गुडियाओं से खेलने की उम्र में ही जिस्म फरोशी के खेल में उतार दिया जाता है। इतना ही नहीं जिस्म फरोशी के लिए बच्चों की खरीद फरोख्त के किस्से भी लोग जानते है।

अगर कोई नहीं जानता,तो वो है वर्दी वाले। वर्दी वालों के कप्तान एक एनजीओ की सूचना पर एक बच्ची को बरामद करने के बाद खबरें छपवाते है,लेकिन इन अड्डों में दर्जनों और ऐसी बच्चियां उन्हे नजर नहीं आती।

कहने को तो वर्दी वालों की चौकी भी ढोढर में बनाई गई है। पूरे जिले में इस चौकी को थानों से भी ज्यादा दमदार माना जाता है,क्योकि डेरों की कमाई बहुत ज्यादा है। डेरों में आने वाले शहरी बाबू जब वर्दी वालों के हत्थे चढते है,तो भारी चढावा चढा कर जाते है। बरसों से खेल जारी है लेकिन कप्तान को महज एक बच्ची मिल पाई है।

दूसरा किस्सा भी कुछ इसी तरह का है। मिशनरी के स्कूलों में बच्चों के यौन शोषण की खबरें अब आम होने लगी है। नामली के एक मिशनरी स्कूल वालों ने बच्चियों के वाशरुम में सीसीटीवी कैमरे कुछ इस तरह लगवाए थे,कि उनसे सब कुछ देखा जा सकता था। मामला जब उजागर हुआ तो काफी हडकम्प मचा। जांच चालू हुई तो छ: महीने गुजर गए। छ: महीने गुजरने के बाद ही सही वर्दी वालों ने हफ्ते के आखरी दिनों में इस मामले पर एफआईआर दर्ज की।

यहां तक तो सबकुछ सही था,लेकिन खेल यहां से शुरु हुआ। वैसे तो वर्दी वाले रोजाना खबरचियों को जिले भर के थानों में दर्ज होने वाले मामलों की लिस्ट भेजते है। लेकिन नामली में दर्ज हुए इस मामले की जानकारी लिस्ट से हटा दी गई। कुछ खबरचियों को इसकी जानकारी लग गई तो खबर बाहर आ गई वरना खबर को तो गायब कर ही दिया गया था।

सवाल ये है कि जब तमाम मामले लिस्ट में दर्ज होते है,तो ये इकलौता मामला ही लिस्ट से कैसे गायब हो गया। लिस्ट से मामला हटाना किसी छोटे मोटे अफसर के बस का काम नहीं है। ये काम तो सीधे उपर से ही हो सकता है। किसी अपराधी की खबर को छुपाने की वर्दीवालों को क्या जरुरत पड सकती है। सीधी सी बात है कि जब इसके लिए कीमत चुकाई जाती है,तो ऐसी खबरें छुपाई जा सकती है।

जब कीमत वसूल ली गई तो खबर भी छुपा दी गई। लेकिन इसके बावजूद जब खबर अखबारों में आ गई तो इसकी गाज थाने के अफसर पर पडी। साहब लोगों को इस बात से जबर्दस्त नाराजगी थी कि खबर बाहर कैसे आ गई। नतीजा थाने वाले साहब को भुगतना पडा। साहब लोगों ने उन्हे जमकर फटकार लगाई।

बहरहाल वर्दी वालों के ये दो कारनामें वर्दीवालों की हकीकत को बयान कर रहे है। दिखाने के लिए बडी बडी बातें हो रही है,लेकिन असलियत इसके एन उलट है। गली मोहल्लों में नशे का कारोबार हो रहा है। सटोरियो का धन्धा जोरों पर है। जेहादी जहालत फैलाने वाले भी सक्रिय है। दुनियाभर के जुर्म हो रहे है लेकिन वर्दी वालों की नजर में सबकुछ ठीक ठाक है।

इन्तेहा हो गई इन्तजार की

फूल छाप वाले नेता इन्तजार करते करते थकने लगे है। पार्टी का मुखिया बदला जाना है,विकास प्राधिकरण की कुर्सी खाली पडी है। और भी कई पद है जिनके दावेदार है। लेकिन फूल छाप के उपर वाले पता नहीं किस गुन्ताडे मेें उलझे है कि फैसला ही नहीं हो पा रहा है।

जिन्होने विकास प्राधिकरण पर नजरें गडाई थी,वो सब के सब पूरी ताकत से अपने अपने आकाओं को पटाने मनाने में लगे हुए थे। इसी तरह पार्टी का मुखिया बनने की चाहत रखने वाले भी भागदौड में लगे हुए है। ये तमाम दावेदार दौड लगा लगा कर थक चुके है। अब उनके इन्तजार की इन्तेहा हो गई है,लेकिन फैसला हो ही नहीं पा रहा है।

सूबे के चुनाव में अब महज कुछ महीनों का वक्त बचा है। दावेदारों को उम्मीद है चुनाव के पहले के बचे खुचे वक्त के लिए भी अगर कुर्सी मिल जाए तो उनका उद्धार हो जाएगा। लेकिन फिलहाल ऐसा कोई भी नहीं है,जो तमाम दावेदारों को ये दिलासा दे सके कि फैसला अमुक दिन तक हो जाएगा। दावेदारों को एक ही बात का डर है कि कहीं ऐसा ना हो जाए कि मामला टलते टलते चुनाव ही आ जाए और सारी उम्मीदें धरी रह जाए।

होटल के चर्चे…

शहर में इन दिनों बाहरी किनारों पर बने एक होटल के जबर्दस्त चर्चे है। सारी कहानी ढंकी छुपी है। होटल रसूखदार आदमी का है और वर्दी वालों को पचास पेटी का भुगतान किए जाने की बातें हो रही है। जाहिर सी बात है कि मामला पचास पेटी तक पंहुचा होगा तो इसमे आदमी और औरतों वाला किस्सा रहा होगा। शहर में हो रही कानाफूसी में “आदमी”,”औरत”, “वर्दी वाले”,”छापा” और “पचास पेटी”,जैसे शब्दों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन पूरी खबर अब तक सामने नहीं आई है। ढूंढने वाले ढूंढने में लगे है। हो सकता है जल्दी ही पूरी खबर भी सामने आ जाए।

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