Raag Ratlami Public Meeting : फूल छाप का जोरदार जम गया रंग,पंजे का बिगड गया बोनी बट्टा/राजा जी रतलाम आये पर नहीं हुई आमसभा
-तुषार कोठारी
रतलाम। चुनावी चकल्लस अब पूरे शबाब पर चल रही है। हफ्ते का आखरी दिन सियासत का मजा लेने वालों के लिए सरगर्मी भरा दिन था। यूं तो चुनाव के दोनो दावेदार गली गली घूम रहे थे,लेकिन हफ्ते का आखरी दिन दोनो ही पार्टियों की चुनावी सभाओं की शुरुआत का दिन था। इस शुरुआत में जहां फूल छाप का रंग जोरदार ढंग से जमा वहीं पंजा पार्टी का बोनी बट्टा ही बिगड गया।
फूल छाप वाले तो हफ्ते की शुरुआत से ही फार्म में थे। दुनिया के बास बन चुके देश के सबसे बडे सेवक की सभा शहर में होने की खबर ने ना सिर्फ फूल छाप वालों को बल्कि शहर के बाशिन्दों को भी उत्साहित कर दिया था। हफ्ते की शुरुआत से ही इसकी तैयारियां हो रही थी। जैसे जैसे सभा का दिन नजदीक आ रहा था,फूल छाप वालों की खुशियां बढ रही थी। उन्हे लग रहा था कि सबसे बडे सेवक की सभा पूरे इलाके की हवा को बदल देगी।
यही हुआ भी। सबसे बडे सेवक की एक झलक पाने और उन्हे सुनने के लिए ना सिर्फ शहर बल्कि आसपास के जिलों के हजारों महिला पुरुषों के जत्थे बंजली पंहुचे। दुनिया के बास कहे जाने वाले सबसे बडे सेवक के हैलीकाप्टर जैसे ही शहर के आसमान में नजर आए,पूरा इलाका जोश भरे नारों से गूंजने लगा। सबसे बडे सेवक ने भी आते ही रतलामी सेव की तारीफ कर दी। रतलाम के लोग सेव की तारीफ सुनकर खुश हो गए। सबसे बडे सेवक ने पच्चीस मिनट में फूल छाप का वो रंग जमाया कि पूरा इलाका फूल छाप के रंग में रंगता हुआ नजर आया।
झुमरू का बिगडा बोनी बट्टा
उधर फूल छाप वालों का बडा ताम झाम जम रहा था,इधर पंजा पार्टी ने भी झुमरू दादा की सभा कराने की तैयारी कर ली। शाम के पहले फूल छाप का सारा तामझाम खत्म हो गया और लोग अपने घरों को लौट गए। इधर पंजा पार्टी ने रात के वक्त शहर के बीचो बीच एक छोटे चौराहे पर अपनी सभा सजाई।
एक जमाना था,जब झुमरु की सभा का लोग इंतजार किया करते थे। वो जमाना 2008 का था। लोग झुमरू के लच्छेदार भाषणों,हंसी मजाक और शेरो शायरी के कायल हुआ करते थे। इसका नतीजा झुमरू की तीस हजारी जीत के रुप में सामने आया था। लेकिन बाद में सेठ जी ने जब अदलिया में जाकर गुहार लगाई कि उनके खिलाफ पूरी तरह से झूठे इल्जाम लगाए गए है,और अदलिया ने इसे सही पाया,तो झुमरू दादा के उस चुनाव को ही खारिज कर दिया। तब लोगों को पता चला कि लच्छेदार भाषण,शेरो शायरी और हंसी मजाक के पीछे जो बातें कही जा रही थी,वो तमाम की तमाम झूठी थी। सेठ पर लगाए गए इल्जाम भी पूरी तरह झूठे थे।
बस तभी से झुमरू के भाषणों को पसन्द करने वाले घटने लगे। हांलाकि पंजा पार्टी वालों को उम्मीद थी कि झुमरू के भाषण अभी भी हवा बदलने में कारगर साबित होंगे। शायद यही वजह थी कि जिस दिन देश के सबसे बडे सेवक शहर के लोगों से गुफ्तगू करके गए,उसी दिन को दादा ने भी लोगों से खिताब करने को चुना। वक्त शाम के आठ बजे का रखा गया था। पंजा पार्टी वालों के मंच तो इससे पहले सज गया था,लेकिन सुनने वाले आए नहीं थे। बडी देर के बाद सुनने वाले आए,तो सभा शुरु हुई।
सुनने के लिए जितने भी आए थे,उनमें से ज्यादातर झुमरू को ही सुनने आए थे। लेकिन मंच पर पंजा पार्टी के नेता एक के बाद एक भाषण पैल रहे थे। लोगों को उम्मीद थी कि शायद साढे नौ पर दादा माइक सम्हाल लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नेता बोलते रहे। पहले एक पहलवान पार्षद बोलने आए,फिर पंजा पार्टी के शहर के मुखिया ने माइक सम्हाला। शहर सरकार के चुनाव में पंजा पार्टी की इज्जत बचाने वाले युवा पहलवान ने इसके बाद पारी खेली। लोग घडी देखते जा रहे थे। साढे नौ बजे,नौ बजकर चालीस मिनट हो गए। नौ बजकर पैैंतालिस मिनट हो गए। दादा अभी तक माइक पर नहीं आए।
सभी को पता है कि चुनाव के दिनों में माइक दस बजे बन्द हो जाते है। आखिरकार नौ बजकर उनचास मिनट (9.49) पर झुमरू के हाथ में माइक आया। अब बताईए,ग्यारह मिनट में कोई प्रत्याशी क्या बोल सकता है? दादा का भाषण ठीक से शुरु भी नहीं हुआ था कि खत्म हो गया? खत्म भी उन्होने नहीं किया,वो तो माइक वाला था,जिसने दस बजते ही माइक बन्द कर दिया। बेचारे दादा अपने लिए वोट की गुहार भी नहीं कर पाए।
वहां से लौट रहे लोगों की चर्चा यही थी कि आखिर इसके पीछे राज क्या था कि दादा को महज ग्यारह मिनट दिए गए? या ये खुद दादा की चाल थी? हो सकता है कि सुनने वालों की कम तादाद को देखकर दादा ने खुद ही ऐसा गेम बनाया हो कि उन्हे ज्यादा बोलना ना पडे? जो भी हो,लोग तो यही कह रहे थे कि दादा का तो बोनी बट्टा ही बिगड गया..।
इस्तीफों का मौसम
पंजा पार्टी की तरफ से रतलाम ग्रामीण की दावेदारी करने वाली एक मैडम ने कुछ दिनों पहले पंजा पार्टी को पंजा दिखाकर टा टा बाय बाय कर दिया। पिछले दो तीन दिनों से इन मैडम जी और इनके साथ पंजा पार्टी के कुछ और नेताओं और एकाध पार्षद के फूल छाप मेंं शामिल होने की खबरें हवाओं में तैर रही थी। कुछ लोग तो ये अन्दाजा लगा रहे थे कि ये कार्यक्रम देश के सबसे बडे सेवक के कार्यक्रम के साथ होगा। लेकिन जिस मंच पर प्रदेश के मुखिया को महज ढाई मिनट का वक्त मिला हो,वहां ऐसे छुटभैयों को टाइम कैसे मिल जाता? वैसे पंजा पार्टी से इस्तीफा देने वालों को अब किसी दूसरे वरिष्ठ नेता की मौजूदगी में फूल छाप में लाया जाएगा।
रतलाम आए राजा जी,नहीं हुई सभा
पंजा पार्टी के उम्मीदवारों की एक बडी समस्या ये है कि उनके पास ऐसे नेता नहीं है,जिनकी आमसभा करवा कर वोट खींचे जा सके। ले देकर राजा जी है और नाथ जी है। राजा जी के बारे में कहते है कि वो आते है तो वोट कम करवा देते है। शायद यही वजह थी कि राजा जी रतलाम तो आए,लेकिन उनकी सभा नहीं करवाई गई। राजा जी के लिए कार्यकर्ता सम्मेलन रखा गया। अब सवाल यही पूछा जा रहा है कि पंजा पार्टी इस मोर्चे पर क्या करेगी? बडे नेता है नहीं और झुमरू की सभा अब चल नहीं पा रही।