April 28, 2024

Raag Ratlami Politics – शहर को छोड पूरे जिले की सियासत में है बवाल/ज्यादतियों से परेशान है वर्दी वाले

-तुषार कोठारी

रतलाम। सूबे के चुनाव की रणभेरी बजने में अब एक महीने से भी कम वक्त बचा है। अगले महीने के पहले पखवाडे में चुनाव आयोग एलान कर देगा और चुनावों की रणभेरी बज जाएगी। पंजा पार्टी और फूल छाप दोनो ही पार्टियों में सियासी संग्राम की तैयारियां जोर पकड चुकी है। पंजा पार्टी जन आक्रोश दिखाने की यात्राएं कर रही है,तो फूल छाप वाले जन आशिर्वाद दिखाने को यात्राएं कर रहे है। इन यात्राओं के चलते बडा सवाल यही छाया हुआ है कि किस अखाडे में किस योद्धा का उतारा जाएगा। रतलाम शहर को छोडकर जिले की चारों सीटों पर इसी एक सवाल का बवाल मचा है।

जिले की पांच सीटों में से तीन फूल छाप वालों कब्जे में है,जबकि दो पर पंजा पार्टी ने परचम लहराया था। लेकिन इस बार शहर को छोडकर सबकुछ बदला बदला सा नजर आ रहा है। शहर तो बरसों से फूल छाप का गढ रहा है। भैया जी के आने के बाद ये गढ पहले से भी ज्यादा मजबूत हो गया है। शहर में अब सारी जोड बाकी इस बात को लेकर लगाई जा रही है कि पंजा पार्टी का किला कौन लडाएगा। पंजा पार्टी के युवा पहलवान का मैदान में उतरना अदालती चक्कर में फंसा हुआ है। पंजा पार्टी के पास ले देकर इस युवा पहलवान के अलावा कोई दमदार चेहरा नहीं है। लोग तो अब इस बात का अंदाजा लगाने लगे है कि पंजा पार्टी को इस बार कितने की हार मिलेगी।

माना ये जा रहा है कि पंजा पार्टी का टिकट झुमरू दादा को ही मिलेगा और हो सकता है कि झुमरू दादा हार का नया रेकार्ड बनवा दें। वैसे तो झुमरू दादा ने बीते जमाने में जीत का रेकार्ड बनाया था,लेकिन उसके बाद से झुमरू दादा का कलर इतना उतरा कि अब उनके मैदान में आने से फूल छाप वाले खुशियां मनाने को तैयार है।

जिले की बकाया चार सीटों का गणित बुरी तरह उलझा हुआ है। देहाती इलाकी अब तक तो फूल छाप के कब्जे में है लेकिन माडसाब से माननीय बने नेताजी ने बीते सालों में जो कारगुजारियां की है,उसके चलते फूल छाप बडे खतरे में आ गई है। अगर पंजा पार्टी यहां व्यवस्थित लडाके को उतार दे तो मैदान फतह कर सकती है। लेकिन पंजा पार्टी के पास कोई ठीक ठाक चेहरा ही नहीं है। ठीक यही हालत आलोट की है। आलोट पर एक महामहिम की छाया है। महामहिम अगर अडे रहे तो फूल छाप लटक सकती है। महामहिम किसी दूसरे के लिए राजी हो गए तो सीन बदल सकता है। वैसे आलोट पर फिलहाल पंजा पार्टी का कब्जा है,लेकिन पंजा पार्टी के माननीय भी अपनी कारगुजारियों के चलते पूरी तरह खतरे में है।

नवाबी नगरी के माननीय दोबारा मैदान में उतरने की कोशिश में लगे है,लेकिन श्रीमंत के फूल छाप में आ जाने के बाद अब नवाबी नगरी में उनके किसी पट्ठे को टिकट मिलने की भी संभावना है। दूसरी तरफ पंजा पार्टी के दावेदारों के बीच जमकर घमासान है। आदिवासी अंचल सैलाना की सीट पंजा पार्टी के पास है। पंजा पार्टी के गुड्डू भैया फिर से मैदान में उतरने वाले है,तो फूल छाप वाले ये तय नहीं कर पा रहे कि गु्ड्डू भैया के सामने मैदान में किसे उतारा जाए। पुरानी वाली बहन जी को मौका दें या किसी नए चेहरे पर दांव लगाया जाए? कुल मिलाकर शहर के आलावा सारी सीटों पर दोनो ही पार्टियों में बवाल है। चुनाव की रणभेरी बजने के बाद ही शायद ये सामने आएगा कि कौन किससे टकराएगा? तब तक अंदाजे लगाए जा रहे है और ये अंदाजे लगते रहने चाहिए।

ज्यादतियों से परेशान वर्दी वाले

जिले भर के वर्दी वाले हर हफ्ते होने वाली ज्यादतियों से परेशान है। नए आए साहब हर हफ्ते दर्जनों वर्दी वालों का नम्बर लगा रहे है। किसी की निन्दा की जा रही है,तो किसी को कोई और सजा सुनाई जा रही है। वर्दी वालों को समझ में नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें? नए वाले कप्तान जैसे ही आए,उन्होने तमाम वर्दी वालोंको डायरी लिखने का फरमान जारी कर दिया। इसके अलावा बेहद छोटे मामलों में हर दिन किसी ना किसी को पकडने का हुक्म भी जारी कर दिया। ये दोनो ही काम वर्दी वालों के लिए बेहद परेशानी भरे साबित होने लगे।

कहां तो वर्दी वाले,हफ्तावारी छुट्टी के ख्वाब देख रहे थे और कहां उनके सिरों पर ये कहर टूट पडा। हफ्ते की छुट्टी तो ना जाने कहा गई,जिन लोगंो ने पहले हफ्ते डायरी नहीं लिखी ऐसे दर्जनों वर्दी वालों की साहब ने निन्दा कर डाली। पहला हफ्ता था इसलिए वर्दी वालों को लगा कि अगली बार शायद ऐसा नहीं होगा। लेकिन दूसरे हफ्ते में भी वैसा ही हुआ और फिर तो हर हफ्ते ये ही सिलसिला चालू हो गया।

वर्दी वाले इतने परेशान है कि तीन लोगों ने तो इस्तीफे की पेशकश भी कर डाली है। कई और भी यही करना चाहते है। कई सारे चाहते है कि उनका तबादला कहीं और कर दिया जाए। तमाम परेशान वर्दी वाले नए साहब की तानाशाही के लिए फूल छाप वालों को जिम्ममेदार मान रहे है। उनका कहना है कि साहब को रतलाम लाने वाले फूल छाप के ही नेता है। इसलिए उनका गुस्सा फूलछाप के लिए बढ रहा है। फूल छाप वालों को इस मामले को लेकर सतर्क हो जाना चाहिए वरना कप्तान की तानाशाही कहीं फूल छाप पर भारी ना पड जाए।

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