December 24, 2024

Raag Ratlami Politics – सूनी है सियासत,नेता है नाकारा,बेबस है जनता,परेशान है शहर सारा

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तुषार कोठारी

रतलाम। इन दिनों शहर की सियासत सूनी पडी है। इसका सीधा खामियाजा शहर की रियाया को भुगतना पड रहा है। पूरा शहर सरकारी मनमर्जी से चल रहा है। ना कोई रोकने वाला है ना टोकने वाला। जिन पर रोकने टोकने की जिम्मेदारी है,वो सारे नेता नदारद है। इंतजामिया से लडने भिडने और लोगों की समस्याएं उठाने का काम वैसे तो विपक्ष के नेताओं का होता है,लेकिन पंजा पार्टी के नेता रस्म अदायगी वाले प्रोग्र्राम निपटा कर अपनी सियासती जिम्मेदारी पूरी कर ले रहे है। फूल छाप वालों की हालत ये है कि उनमें से कोई भी खुद मुख्तार नहीं है। फूल छाप वाले नेता तो गली मोहल्ले की समस्या भी बिना इजाजत उठाने की हैसियत के नहीं रह गए है। नतीजा ये है कि छोटी से छोटी समस्या का निपटारा भी आसान नहीं है।

इन हालातों को एक छोटे से किस्से से समझा जा सकता है। रतलाम के महाराजा ने किसी जमाने में अपनी राजकुमारियों के मन बहलाव के लिए गुलाब चक्कर बनवाया था। किसी जमाने में ये गुलाब चक्कर गुलाब के फूलों की खुशबू से महकता रहता था। फिर इंतजामियां के किसी अफसर को इसके उपयोग की सूझी तो जिले भर से खुदाईयों में मिली प्राचीन मूर्तियों को यहां रखा जाने लगा और इसे पुरातत्व संग्र्रहालय का नाम दे दिया गया। इसी तरह कई साल गुजरे। गुलाब चक्कर गुलाब चक्कर ही बना रहा। फिर कुछ सालों पहले इंतजामिया के एक बडे साहब आए,तो उन्हे एक नई सनक सूझी। उन्होने गुलाब चक्कर को खुला रंगमंच मुक्ताकाश बनाने की ठानी। बस फिर क्या था? पूरा इंतजामिया बडे साहब की इच्छा पूरी करने में जुट गया। सबसे पहले तो यहां से गुजरने वाली सडक़ के दोनो ओर लोहे के एंगल गाड कर रास्ता बन्द कर दिया गया। फिर शहर भर के भू माफियाओं की मदद लेकर इस गुलाब चक्कर में पता नहीं क्या क्या काम करवाए गए। जिस रास्ते को रोका गया था,उस जगह को मुक्ताकाश की दर्शक दीर्घा में तब्दील कर दिया गया। गुलाब चक्कर के बीचोबीच बने पाण्डाल के पास बाकायदा एक मंच बनाया गया। इस व्यवस्था के लिए साउण्ड सिस्टम और लाइट की व्यवस्था भी जुटाई गई। इतने सारे ताम झाम जुटाने के बाद मुक्ताकाश के खुले मंच पर बडे साहब की इच्छानुसार गीत संगीत का एक सांस्कृतिक समारोह आयोजित किया गया। शहर के तमाम खासो आम को बुलाया गया।

लेकिन जब समारोह शुरु हुआ,तब लोगों के ध्यान में आया कि गुलाब चक्कर परिसर में खडे पेडों पर हजारों परिन्दों ने अपने घर बना रखा है। शाम के वक्त सारे परिन्दे अपने घोंसलों में लौटते है। दिन भर के थके हारे परिन्दे अपने घोंसलों मेंं लौटने के बाद दिन भर का चुगा हुआ दाना पानी बीट के रुप में उत्सर्जित करते है। नतीजा ये हुआ कि सज संवर कर आए तमाम शहरी बाशिन्दों के कपडों और सिरों पर परिन्दों की बीट गिरती रही,और उनका सजना संवरना बेकार हो गया। इतना सबकुछ हुआ लेकिन बडे साहब नहीं माने। उन्होने एक प्रोग्र्राम और करवाया। पिछली बार के अनुभवों से डरे हुए कई सारे लोग तो आए ही नहीं,जो आए,उन्हे फिर से बीट की बरसात का सामना करना पडा। दो बुरे अनुभवों के बाद सबकी समझ में आ गया कि यहां मुक्ताकाश का सपना पूरा नहीं हो सकता।

फिर वक्त गुजरा। वो वाले बडे साहब दूसरे शहर चले गए और उनकी जगह एक मैडम जी आ गई। फिर दूसरी मैडम आई। फिर तो इंतजामिया का दफ्तर ही नई ईमारत में चला गया। पूरा इंतजामिया नई ईमारत से चलने लगा,इसलिए गुलाब चक्कर को हर कोई भूल गया। गुलाब चक्कर के बन्द किए हुए रास्ते को भी हर कोई भूल गया। पहले जब रास्ता खुला हुआ था,तब भक्त सीधे कालिका माता के दरबार में पंहुच जाया करते थे,लेकिन गुलाब चक्कर को मुक्ताकाश बनाने के चक्कर में भक्तों को गुलाब चक्कर का पूरा चक्कर लगाकर मन्दिर जाने को विवश कर दिया गया था।

अब ना तो किसी को गुलाब चक्कर वाला मुक्ताकाश याद है ना ही जिला इंतजामिया के दफ्तर यहां है। लेकिन गुलाब चक्कर वाला रास्ता तब से बन्द है,तो आज तक बन्द है। हजारों लोग रोजाना कालिका माता के दर्शन करने जाते है। कोर्ट की तरफ से जाने वाले हर व्यक्ति को गुलाब चक्कर का चक्कर लगाना पडता है। इतने साल गुजर गए,लेकिन कोई बोलने वाला नहीं है। आमतौर पर किसी आम रास्ते को बाधित करना आपराधिक कृत्य माना जाता है,लेकिन बरसों से ये आम रास्ता बाधित है। इंतजामिया के अफसरों को तो कुछ दिनों या सालों बाद नए शहर में चले जाना है,लेकिन यहां के बाशिन्दों को यही रहना है और हर दिन ये मुसीबत भी झेलना है। जनता इतनी भली है कि उसने गुलाब चक्कर का चक्कर लगाने को अपनी नियती मान लिया है। फूल छाप और पंजा पार्टी के किसी नेता ने आज तक इंतजामिया से ये नहीं पूछा है कि ये रास्ता अब भी क्यों बन्द किया हुआ है? ना ही कोई ये पूछ पाया है कि एक ऐतिहासिक धरोहर का स्वरुप बिगाडने के बाद इसे अपने वास्तविक स्वरुप में क्यो नहीं लाया जा रहा है?

ये तो महज एक छोटी सी मिसाल है। ऐसे तमाम मसले है,जिन पर कोई बोलने को ही राजी नहींं। शहर में रोजाना जल प्रदाय करने के वादे तो पता नहीं कहां गए,एक दिन छोडकर होने वाले जल प्रदाय में गडबडी होना आम बात है। सरकारी अस्पताल बदहाली से जूझ रहे है। कोरोना का डर दिखाकर बेवजह चलाए जा रहे रात्रि कफ्र्यू पर आज तक कोई सवाल नहीं उठाया गया है। देर रात को किसी ट्रेन से रतलाम पंहुचे आदमी को पीने का पानी तक मिलना दूभर है। सीवरेज की खुदाई और सडक़ों की दिक्कतें अब भी शहर में कई जगह मौजूद है। आए दिन किसी भी इलाके की बिजली मेन्टनेंस के नाम पर गुल हो जाती है।

तमाम दिक्कते है,लेकिन इंतजामिया से सवाल पूछने वाला कोई नहीं है। पहली जिम्मेदारी पंजा पार्टी की है,लेकिन पंजा पार्टी के नेताओं को चुनाव का इंतजार है। फूल छाप वाले तो बेचारे बिना इजाजत कुछ भी कर पाने में असमर्थ है।

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