Raag Ratlami Navratri Fair- त्रिवेणी मेले जैसा हश्र ना हो जाए कालिका माता मेले का;माता की मेहरबानी ही थी कि ठीक से निपट गया नवरात्रि मेला
-तुषार कोठारी
रतलाम। नौ दिनों तक मां की आराधना और दसवें दिन दस सिर वाले का दहन करने के बाद अब दीपावली का इंतजार है। लेकिन पिछले दस दिनों में वही हुआ जिसका डर था। कभी शहर का शान और पहचान रहने वाला कालिका माता मेला कोई छाप नहीं छोड पाया। मंचीय कार्यक्रमों से लगाकर मेले की व्यवस्थाओं तक सबकुछ बेकार ही रहा।
उपर वाले की मेहरबानी थी कि पूरे दस दिनों तक मौसम बेहतरीन था और इसी वजह से मेले में जबर्दस्त भीड उमडती रही। लेकिन मेले का मजा लेने के लिए आने वाले तमाम लोग मेले से परेशानी ही लेकर लौटे। ले-देकर झूलों नें मेले की थोडी सी साख बचा ली,वरना व्यवस्थाएं इतनी खराब थी कि मेले में कुछ देर गुजारना भी कठिन था।
किसी जमाने में मेले के मंचीय कार्यक्रम बच्चों से लेकर बडों तक के स्वस्थ मनोरंजन का साधन हुआ करते थे,लेकिन बिना बैल की गाडी पर चढकर आए एक दादा ने मंचीय कार्यक्रमों को ठेके पर देने की शुरुआत की और तब से लगाकर इस साल तक ठेकेदारी ने तमाम कार्यक्रमों का कचरा कर दिया। ठेकेदारी में होने वाले कार्यक्रमों में कमाई बचाने के चक्कर में घटिया कार्यक्रम परोसने की परम्परा बन चुकी है। शहर के साहित्य प्रेमी और बुद्धिजीवियों को कवि सम्मेलन का इंतजार रहा करता था।
कहा जाता था कि जो कवि कालिका माता के कवि सम्मेलन में हिट हो जाता था,वह पूरे देश में छा जाता था। किसी जमाने में इतनी तारीफें बटोर चुके कवि सम्मेलन का इस बार पूरी तरह बंटाधार हो गया। कवि सम्मेलन में कवियों का स्तर तो जैसा भी था,साउण्ड सिस्टम इतना घटिया था कि श्रोता ठीक से कविताएं भी नहीं सुन पाए। कवि सम्मेलन सुनने के शौकीनों को इस बार जबर्दस्त निराशा हाथ लगी। मंच के अन्य कार्यक्रमों ने भी दर्शकों को सिर्फ निराश किया। पिछले सालों में मंच पर दो या तीन राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों के कार्यक्रम हुआ करते थे,लेकिन अब नामालूम से कलाकारों को पेश कर दिया जाता है और मंचीय कार्यक्रमों की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है।
मेले बच्चों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र होते है। बच्चों में मेले में घूमना,खाना पीना और झूले झुलना बेहद पसन्द होता है। मेला आयोजकों की नासमझी के कारण इस बार मेले की हालत बेहद खराब हो गई थी। मेले में लगने वाली दुकानों को आम्बेडकर ग्राउंड में शिफ्ट कर दिया गया था। झाली तालाब के चारो ओर लगने वाली सारी दुकानों को आम्बेडकर ग्र्राउण्ड की तरफ लगा दिया गया। मन्दिर के सामने की ओर तो उन्ही व्यवसाईयों का कब्जा बना रहा,जो साल भर वहीं रहते है,इसलिए इसमें कोई नयापन नहीं था। इसके अलावा मन्दिर और झाली तालाब का पूरा इलाका दुकानों से खाली था और ज्यादातर दुकानें आम्बेडकर ग्राउंड पर लगा दिए जाने से आम्बेडकर ग्राउंड में जगह बेहद कम पड रही थी।
मेले में आने वाली भीड और छोटे मैदान में दुकानें और झूले। ये तो कालिका माता की मेहरबानी ही थी कि भगदड जैसा कोई हादसा नहीं हुआ। आम्बेडकर ग्राउंड में चल पाना बडे लोगों के लिए ही मुश्किल था,ऐसे में नन्हे बच्चों को लेकर मेले में घूमना तो और भी ज्यादा कठिन था। लेकिन नन्हे बच्चों के अभिभावकों की भी मजबूरी थी कि बच्चों की इच्छा पूरी करने के लिए ऐसी संकरी जगह पर भीडभाड में बच्चों को घुमाना था।
कुल मिलाकर मेला निपट तो गया,लेकिन इस बात की पूरी आशंका बना गया कि आने वाले सालों में कालिका माता मेले का हश्र भी कहीं त्रिवेणी मेले जैसा ना हो जाए,जो केवल नाम का ही मेला है। शहर सरकार के मालिकों ने नवरात्रि मेले को लेकर अगर यही रवैया अपनाए रखा,तो कुछ ही सालों में नवरात्रि मेला त्रिवेणी जैसा हो जाएगा। ये तय है।
कहां पंहुची जांच
विघ्न विनाशक के जुलूस में विघ्न उत्पन्न करने के लिए हुए पथराव,फिर वर्दीवालों की क्रूरता,एक आदिवासी युवक की मौत,इन सारी घटनाओं को अब कई दिन गुजर गए हैैं। जिला इंतजामिया ने पूरे मामले की जांच एक महीने में पूरी करने का दावा भी किया था। जांच शुरु भी हुई थी,लेकिन जांच पंहुची कहां? इसकी जानकारी किसी को नहीं है। जांच आगे भी बढी या नहीं इसका भी किसी को पता नहीं है। घटना हुई थी,तब लोगों का गुस्सा जोरों पर था,लेकिन वक्त गुजरने के साथ अब शायद गुस्सा गायब हो गया है और शायद इसीलिए सब भूल गए है कि जांच एक महीने में पूरी होना थी।