Raag Ratlami Loud Speaker : सीएम के निर्देश के बावजूद सुबह सवेरे चीखते है लाउड स्पीकर-इन्हे रोक नहीं पाते डरे हुए अफसर
-तुषार कोठारी
रतलाम। अगर आप रतलाम शहर के रहवासी है और अगर आप सुबह सवेरे जल्दी जाग जाते है,तो निश्चित रुप से आप दुर्भाग्यशाली हैैं। क्योंकि सुबह जल्दी जागने पर आप लाउड स्पीकर की कानफोडू चीख पुकार सुनने के लिए अभिशप्त है। चाहे प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पद सम्हालते ही पहला आदेश ही लाउड स्पीकर पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था,लेकिन डरे हुए अफसरों का डर अब तक दूर नहीं हो पाया है और इसी का नतीजा है कि पूरा एक साल गुजर जाने के बावजूद लाउड स्पीकरों की चीख पुकार बदस्तूर जारी है।
इसमें सबसे दुखद पहलू ये है कि लाउड स्पीकरों की चीख पुकार से शहर में सबसे ज्यादा अगर कोई परेशान है,तो वे जिला इंतजामिया के अफसर और अदलिया के जज साहबान ही है। इसकी वजह ये है कि अफसरों की कालोनी,उसी इलाके के सबसे नजदीक है,जहां सबसे ज्यादा लाउड स्पीकर एक बार नहीं बल्कि दिन में पांच पांच बार चीखते हैैं। जिन अफसरों पर इस चीख पुकार को रोकने की जिम्मेदारी है,वे ही इस कानफोडू शोर को सबसे ज्यादा सुनने के लिए मजबूर है। इसके बावजूद भी अपने डर के चलते वे अपने कानों में रुई डालकर इस कानफोडू शोर से बचने का जतन करते है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री ने साल भर पहले अपना पद सम्हालते ही पहला आदेश यही जारी किया था,कि बिना अनुमति के जितने भी लाउड स्पीकर बजाए जा रहे हैैं उन्हे फौरन जब्त कर लिया जाए। अनुमति लेकर बजाए जा रहे लाउड स्पीकरों की आवाज भी धीमी की जाए ताकि ये किसी को परेशान ना कर सके। अगर सीएम के निर्देशों का इमानदारी से पालन होता तो दिन में पांच पांच बार चीखने वाला एक भी लाउड स्पीकर मीनारों पर लगा हुआ नहीं रह सकता था,क्योकि ये सारे के सारे बिना अनुमति के ही चलाए जा रहे हैैं।
लेकिन जिला इंतजामिया के अफसरों ने अनुमति वाली बात को तो जानबूझ कर अनदेखा कर दिया और लाउड स्पीकरों की आवाज कम करने के लिए कोशिशें शुरु कर दी। उन्होने नीचे कुर्ते,ऊंचे पाजामे और जालीदार टोपी वाले दाढी वालों को बुलाया और उन्हे समझाया कि लाउड स्पीकरों की आवाज कम कर दी जाए। दाढी वालों ने दो चार दिन तो अपने लाउड स्पीकरों की आवाज कम कर दी,लेकिन इसके बाद फिर से लाउड स्पीकरों की आवाज बढा दी गई।
पूरा साल भर गुजर गया। लाउड स्पीकरों की आवाज तेज ही बनी रही। शहर का कोई हिस्सा कोई कोना ऐसा नहीं है,जब सुबह सवेरे के वक्त आपके कानों में कानफोडू चीख पुकार सुनाई ना देती हो। अपने निर्देशों को साल भर पूरा होने पर सीएम ने फिर से इसकी समीक्षा की,लेकिन कागजी खानापूर्ति करने में माहिर अफसरों ने इस समीक्षा पर भी लीपापोती कर डाली।
सीएम ने तो प्रत्येक थाना स्तर पर टीम बनाकर लाउड स्पीकरों पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे। लेकिन थाना स्तर की बात छोडिए,जिले के मुख्यालय पर,जहां जिला इंतजामिया के बडे बडे साहब लोग रहते है,वहां भी मानिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं की गई।
अब सवाल ये है कि अफसर डरते क्यों है और किससे डरते है? इसका जबाव ये है कि सीएम और पूरी सरकार के तौर तरीके बदलजाने के बावजूद अफसरों की मानसिकता में बदलाव नहीं आया है। जालीदार गोलटोपी वालों से डरने की उनकी पुरानी आदतें छूटने का नाम नहीं ले रही। अफसरों का डर बरकरार है इसलिए शहर के लोग कानफोडू शोर सुनने के लिए मजबूर है। अब सीएम को खुद ही देखना होगा कि अफसरों का डर कैसे दूर किया जाए।
जमीन दलालों के बुरे दिन
अभी कुछ दिनों पहले तक त्रिवेणी में यज्ञ हवन और मेला हो रहा था। आयोजन के मुखिया बडे जोर शोर से इसमें जुटे हुए थे। उनका सारा उत्साह इन्दौर की बडी अदलिया से मिली एक अंतरिम राहत पर टिका था। असल में उनके खिलाफ जमीनों की हेराफेरी के एक मामले में जालसाजी और धोखाधडी का केस दर्ज हुआ था। लेकिन जैसा कि होता है,जमीनों के बडे दलालों के पास धन दौलत का बडा रसूख होता है और वर्दी वाले इस चमक दमक के नीचे दब ही जाते है। वर्दी वालों को थोडे वक्त के लिए दबा कर उन्होने इन्दौर वाली बडी अदलिया से कुछ वक्त के लिए जमानत का इंतजाम कर ही लिया।
इसी राहत का नतीजा था,कि त्रिवेणी के सारे आयोजन में वे पूरे उत्साह से शामिल हो रहे थे। लेकिन अचानक से वक्त बदला और बडी अदलिया ने उन्हे जो राहत दी थी,उसे वापस ले लिया। अब उनकी हालत फरार जैसी हो गई है। पहले वर्दी वाले दबे हुए थे,अभी भी कुछ वक्त के बाद दब सकते है,लेकिन इस बीच में एक बार तो वर्दी वाले उनकी तलाश में उनके घर जा पंहुचे। ये अलग बात है कि उन्हे घर पर नहीं मिलना था और वे नहीं मिले। लेकिन किसी बडे रसूख वाले की तलाश में वर्दी वालों का उनके घर जाना भी कोई छोटी बात नहीं होती।
कुल मिलाकर आजकल शहर के जमीन दलालों के बुरे दिन चल रहे हैैं। एक और बदनाम जमीन दलाल ने पुराने बायपास पर शुभम पार्क के नाम से कालोनी बनाई,लेकिन जब इसके प्लाट बेचने का मौका आया तो उसे लगा कि उसकी बदनामी माल बेचने के आडे आ सकती है। लिहाजा शुभम वाले दलाल ने बडे शहर की एक बडी कम्पनी ओमेक्स के नाम पर प्लाट बेचना शुरु कर दिया। यानी देसी घी का लेबल लगाकर वनस्पति घी बेचने की कोशिश शुरु कर दी। जब ये घोटाला उजागर हो गया तो अब इस पर एक और नया लेबल चिपका दिया गया है। आने वाले कुछ दिनों में इसके नए घोटाले भी सामने आ सकते है।