Raag Ratlami Land Mafia : देशी घी का लेबल लगाकर नकली घी बेचने जैसा कारनामा कर रहा था जमीन का दलाल,पोल खुली तो घबराया/त्यौहारी सीजन में चेकिंग या वसूली..?
-तुषार कोठारी
रतलाम। त्यौहारों के मौसम में इस तरह की धोखाधडी के किस्से अक्सर सामने आते है,जिनमें कोई व्यापारी देसी घी का लेबल लगाकर नकली घी बेच रहा होता है। लेकिन इस तरह की धोखाधडी अब जमीनों के मामले में भी होने लगी है। शहर का कुख्यात जमीन दलाल कुछ इसी तरह का कारनामा कर रहा था। लेकिन पोल खुल गई। पोल खुलने से फिलहाल जमीन दलाल घबराया हुआ है।
जमीनों की धन्धेबाजी में दुनियाभर की चोरी चकारी कर चुका जमीन का ये दलाल लम्बे वक्त से मुगालता पाले बैठा है कि वो चाहे जितनी गडबडियां और फर्जीवाडे करेगा आखिरकार उनके लफडे से बच ही निकलेगा। अपने आप को राजाओं का इन्द्र बताने वाला ये जमीन दलाल पहले कई सारी चोरी चकारी करके साफ बच निकलने में कामयाब भी रहा है। इसीलिए उसे ये मुगालता हो गया है। मजेदार बात ये है कि इस जमीन दलाल ने आज तक ऐसा एक भी काम नहीं किया जो बिना लफडे वाला हो। कालोनियों के बगीचें बेचने से लेकर एक एक प्लाट दो- दो या चार-चार लोगों को बेचना हो,या सरकारी जमीन को निजी बताकर उसके प्लाट बेचना हो तमाम तरह के रफडे इस जमीन दलाल के नाम पर है।
इस पर कई सारे मामले दर्ज हो चुके है। मामले दर्ज होते रहते है,लेकिन रिश्वतखोरी की बीमारी से पीडीत इंतजामिया में कोई ना कोई अफसर ऐसा निकल ही आता है,जो इस दलाल को बच निकलने का रास्ता दिखा देता है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बावजूद इस दलाल के कई लफडे ऐसे है,जिनमें से निकलने का रास्ता अब तक तैयार नहीं हुआ है। इसलिए ये जरुरी नहीं कि जमीन का ये दलाल हर बार बच ही जाएगा।
जमीन दलाल की ताजातरीन धोखाधडी की कहानी हाल ही में सामने आई है। असल में जमीन दलाल ने पुराने बायपास पर तीन प्रोजेक्ट डेवलप किए थे। शहर में आजकल जमीन दलाल की फितरत से हर कोई वाकिफ होने लगा है,इसलिए जब प्लाट बेचने की बारी आई तो ग्र्राहक खरीदने को तैयार नहीं थे। ग्र्राहकों को यह खुटका लगा रहता है कि लफडेबाज जमीन दलाल की जमीन में कोई ना कोई गडबड जरुर होगी और इसका खामियाजा खरीददार को भुगतना पड सकता है। जब ग्र्राहक नहीं मिले तो जमीन दलाल ने अपने फितरती दिमाग से धोखाधडी का एक नया खेल तैयार किया।
जमीन दलाल ने अपने प्रोजेक्ट पर बडे शहरों में कालोनियां बनाने वाली एक बडी कंपनी का नाम लगा दिया। अखबारों में बडे बडे विज्ञापन छपने लगे। इन विज्ञापनों को देखकर रतलामी बाशिन्दे बडे खुश हुए कि चलो बडे शहरों की बडी कंपनी अब हमारे शहर में भी प्रोजेक्ट बना रही है। लेकिन रतलामी बाशिन्दों की खुशी तब काफूर हो गई जब ये खुलासा सामने आया कि बडी कंपनी का सिर्फ नाम है,काम और माल तो लफडेबाज जमीन दलाल का ही है। जमीन दलाल ठीक उसी तरह की धोखाधडी कर रहा है जिसमें देशी घी का लेबल लगाकर नकली घी बेचा जाता है।
लेबल बदलने से दूसरी भी कई तरह की दिक्कतें खरीददारों को आ सकती है। जमीन दलाल के लफडों वाली जमीन पर घर बनाने का सपना देखने वाले इन लफडों में उलझ सकते है। फिर ये भी तय नहीं है कि जमीन बेचेगा कौन? खरीददार किससे अपना प्लाट खरीदेगा? क्योकि प्लाट की मालकियत तो लफडेबाज जमीन दलाल की है और नाम बडे शहरों की बडी कंपनी का। ऐसे में अगर खरीददार के साथ धोखाधडी होगी तो वह शिकायत किसकी करेगा?
कुल मिलाकर जमीन दलाल ने रतलामी बाशिन्दों को ठगने का नया तरीका निकाल लिया है। गनीमत ये है कि इसका खुलासा भी हो गया है। अब रतलाम के बाशिन्दों को इस धोखाधडी से बचाने की जिम्मेदारी जिला इंतजामिया के अफसरों की है। जिला इंतजामिया के बडे साहब को फौरन इस मामले में संज्ञान लेकर मामले की जांच करवाना चाहिए जिससे कि रतलाम के लोग इस धोखाधडी से बच सके।
त्यौहारी सीजन में चेकिंग या वसूली..?
जब भी कोई त्यौहार पास में आता है खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के लिए बनाए गए अमले के अफसर मिठाई,नमकीन और अन्य खाद्य पदार्थों की चैकिंग पर निकल पडते है। दुकानों से नमूने इकट्ठा करते है और इसकी खबरें छपवाते हैैं कि उन्होने इतनी जगहों पर चैकिंग की। मजेदार बात ये है कि इस चैकिंग का नतीजा क्या आया ये किसी को पता नहीं लगता। ये तय है कि शहर में मिलावटी का माहौल गर्म है। मिठाई से लेकर नमकीन तक कोई भी चीज मिलावट से अछूती नहीं है,लेकिन इसका खुलासा कभी नहीं होता।
खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के लिए तैनात इंस्पेक्टर साहब ठीक त्यौहारों के मौके पर चैकिंग के लिए निकलते है। उन्हे पता है कि उनकी हैसियत सिर्फ नमूने लेने की है। नमूनों की जांच की शहर में कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए जो भी नमूने इकट्ठे होते है,उन्हे सूबे की राजधानी को भेजा जाता है,ताकि जांच हो जाए। वहां राजधानी में पूरे सूबे से हजारों नमूने आते है,इसलिए वहां जांच होने में महीनों बरसों लग जाते है। मिलावटखोरों को भी पता है कि नमूनों का कुछ होना जाना नहीं है। मगर नमूने लेने से अमले की सक्रियता नजर आ जाती है।
आज जब अमले के अफसर नमूने लेने जाते है,तो ऐसे ही नहीं जाते। उनके जाने पर मिलावटखोर उनकी पूरी आवभगत करते है,ताकि साहब लोगों का त्यौहार ठीक से मन जाए। साहब लोगों के नमूने लेने को वे बिलकुल गलत नहीं मानते। उन्हे पता है कि इन नमूनों का कुछ होना जाना नहीं है। त्यौहार के मौके पर हर कोई जमकर धन्धा करता है। मिलावट खोर भी इनमें शामिल है। त्यौहार की कमाई निपट गई फिर अगर नमूना फेल भी हो गया तो क्या? कमाई तो त्यौहार पर हो ही चुकी है। कमाई हो गई है तो नमूना फेल होने की भी मैनेज कर लेंगे। बस इसीलिए त्यौहार पर नमूने लेने का खेल जारी है।