April 20, 2024

Raag Ratlami Ladli Behna: लाडली बहनों ने मचाई धूम,फूल छाप वालों को चुनावी नैया पार होने की उम्मीद ; जिले भर में छाए हुए है बडे साहब

-तुषार कोठारी

रतलाम। लाडली बहना ने पूरे जिले भर में धूम मचा रखी है। पूरे सरकारी अमले को लाडली बहने ढूंढने में लगा देने के बावजूद कम्प्यूटर सेन्टरों पर भीड खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। कम्प्यूटर सेन्टर वाले भी काम कर करके हैरान हो रहे है। सूबे के मामा ने लाडली बहना का जो झुनझुना बजाया है,वह इतना जोर शोर से बज रहा है कि मामा को इसी के सहारे चुनावी नैया पार होती नजर आ रही है।

वैसे भी मामा जी ने चुनावी नैया पार कराने के चक्कर में ही लाडली बहनें ढूंढने और ढूंढ कर उनके बैैंक खातों में नगद रकम पंहुचाने की योजना बनाई थी। चुनाव के नजदीक आते आते पूरे सूबे की लाखों लाडली बहनों को मामाजी का तोफा मिल चुका होगा और इसके बदले में मामाजी ज्यादा कुछ नहीं चाहते,उन्हे वोट चाहिए। फूल छाप वालों को भी पूरी उम्मीद है कि लाडली बहनें उनका उद्धार करवा ही देंगी।

कहने को तो सरकार ने तमाम सीएससी वालों को सारे काम निशुल्क करने के निर्देश दिए हैैं। लेकिन कम्प्यूटर वालों को भी लाडली बहनों की आड में अच्छी खासी कमाई का मौका मिल गया है,इसलिए वो भी खुश है। लाडली बहनों की भीड ने सर्वर को भी हैरान कर दिया है। बार बार सर्वर डाउन हो रहा है।

सरकारी दफ्तरों के बाकी सारे काम काज इन दिनों ठप्प पडे है। जिसे देखिए लाडली बहनों की तलाश में जुटा हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में ये तय है कि चुनाव आते आते लाडली बहनों का असर दिखाई देने लगेगा और अगर पंजा पार्टी ने भरपूर ताकत ना लगाई तो फूल छाप वालों की बल्ले बल्ले होकर रहेगी।

छाए हुए है जिला इंतजामिया के बडे साहब

जिला इंतजामिया के बडे साहब इन दिनों छाए हुए है। जन सुनवाई में शिकायत मिलने पर बडे साहब खुद वहां जा पंहुचे जहां,एक सडक छाप गुण्डा लोगों को परेशान कर रहा था। वैसे तो ये काम वर्दी वालों का होता है,लेकिन दम दिखाया बडे साहब ने। उन्होने सडकछाप गुण्डे की जम कर क्लास लगाई। बडे साहब ने उसे शुद्ध हिन्दी में समझाया कि अगर उसका चाल चलन नहीं सुधरा तो उसे नेस्तनाबूद कर दिया जाएगा। बडे साहब का विडीयो जमकर वायरल हुआ और जिसने भी देखा उसे बडी खुशी मिली कि चलो गुण्डे बदमाशों का सही इलाज करने वाला कोई तो आया। कोई जमाना था,जब इस गुण्डे का आतंक था,जमीनों पर जबरन कब्जा,डरा धमका कर वसूली जैसी घटनाएं आम बात थी,लेकिन अब वक्त बदल गया है। लोगों को इंतजामिया पर भरोसा है,इसलिए वो बिना डरे शिकायत करने पंहुच जाते है और शिकायत होती है,तो इस तरह की असरदार कार्रवाई भी होती है। यही वजह है कि अब गुण्डो की गुण्डागिर्दी पर नकेल कसने लगी है।

बडे साहब ने जावरा में भी कमाल दिखाया। लम्बे समय से अटका हुआ ओïव्हर ब्रिज का काम अब चालू होने की उम्मीद बढ गई है। ओव्हर ब्रिज के निर्माण में कुछ रसूखदारों का अतिक्रमण रोडा बना हुआ था। बडे साहब को जैसे ही इसकी जानकारी मिली उन्होने सरकारी बुलडोजर का रुख फौरन उस तरफ करवा दिया। बुलडोजर ने कुछ ही मिनटों में ओव्हर ब्रिज की राह में रोडा बने अतिक्रमण को साफ कर दिया। लम्बे समय से ओव्हर ब्रिज की राह देख रहे जावरा वालों को ओव्हर ब्रिज की सौगात अब जल्दी ही मिल जाएगी।

वर्दी वाले कप्तान की रवानगी

हफ्ते के आखरी दिन सूबे के कई सारे वर्दी वाले अफसर इधर से उधर कर दिए गए। रतलाम के कप्तान की रवानगी का परवाना भी इसी के साथ आ गया। कप्तान को रतलाम में ज्यादा वक्त नहीं हुआ था। जितना वक्त उन्होने रतलाम में गुजारा उसमें उनकी किस्मत से कोई बडी चुनौती भी सामने नहीं आई। लूट डकैती हत्या जैसे संगीन जुर्म की वारदातें हुई,लेकिन गुनहगार जल्दी ही धर भी लिए गए। कुल मिलाकर कप्तान का कार्यकाल ठीक ठाक ही गुजरा। वर्दी वालों के लिए भी कप्तान का रवैया ठीक ठाक ही रहा। उन्होने ना तो किसी को कोई बडी सजा दी और ना किसी को ज्यादा टाइट किया। वर्दी वालों की वसूली में भी उन्होने कभी कोई रोडा नहीं अटकाया। बहरहाल अब वर्दी वाले ये पता करने में जुटे है कि नए वाले कप्तान किस मिजाज के है? नए कप्तान के आने से उनके तौर तरीको पर कितना असर पडेगा? हांलाकि इन सवालों के जवाब तो तभी मिलेंगे जब नए कप्तान आ जाएंगे।

मैडम के जाने से खुशी का माहौल

हफ्ते के आखरी दिन जहां वर्दी वालों के कप्तान की रवानगी हुई वहीं दो तहसीलों के साहब लोगों को भी दूसरी जगह भेजा गया। बडी बात ये कि तहसील वाले साहबों को अब प्रमोशन मिल गया है और अब वे डिप्टी कलेक्टर बन गए है। शहर तहसील वाली मैडम भी अब छोटी वाली कलेक्टर बन गई है। शहर तहसील के दफ्तर में इस खबर के आने के बाद खुशी का माहौल है। हांलाकि ये तय नहीं हो पा रहा है कि खुशी का ये माहौल मैडम की तरक्की की वजह से है या उनके जाने की वजह से। मैडम जी के क्रियाकलापों से लोग तो परेशान थे ही, दफ्तर के कारिन्दे भी बेहद परेशान थे। दफ्तर में नामान्तरण,नप्ती,बंटवारा जैसे कामों के लिए आने वाले लोगों को भारी भरकम कीमत चुकाना पडती था,वरना काम अटक जाते थे। उनके जाने से खुशी का माहौल है,तो सवाल तो उठेगा ही कि खुशी जाने की है या तरक्की की?

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