Raag Ratlami- फूल छाप में बदलाव की बयार से बवाल,पंजा पार्टी को कार्यकर्ताओं की तलाश
-तुषार कोठारी
रतलाम। जब से सडक़ नाली वाली सरकार के चुनाव आगे बढे हैैं,दोनों पार्टियों के दावेदार कुछ ठण्डे से पड गए है। दूसरी तरफ दोनो पार्टियां किसी ना किसी तरीके से सक्रियता को बनाए रखने में जुटे हुए हैैं। फूल छाप पार्टी में इन दिनों बदलाव की बयार चल रही है। फूल छाप पार्टी ने पार्टी को युवा पार्टी में बदलने की ठान ली है। हर पद पर उम्र की सीमा तय कर दी गई है। अब इसी हिसाब से कार्यकारिणी बनाई जाना है। इसी चक्कर में लोकल नेता कार्यकारिणी ही नहीं बना पाए। प्रदेश वालों को समझ में आ गया कि जिले वाले नए तौर तरीके अपनाने में हिचकिचा रहे हैैं। उपर वालों ने शर्त ये रखी है कि कोई भी पदाधिकारी पचास से उपर का नहीं होगा। सब से सब नए चेहरे होना चाहिए। उपर वालों के इस फरमान को पूरा करने में जिले वालों को दिक्कत आ रही थी। जिले वालों ने मण्डलों की नियुक्तियां तो उसी हिसाब से की थी,जैसा उपर वाले चाहते थे,लेकिन जिले के पदाधिकारी चुनने में उम्र की सीमा उन्हे कष्ट दे रही थी। फूल छाप में बरसों से उम्मीदें लगाए बैठे और उम्मीदों के चक्कर में बुजुर्गियत तक जा पंहुचे नेता उपर वालों के फरमान से बेहद नाराज थे। वे बार बार रोडे अटका रहे थे। इस समस्या का हल उपर वालों ने ये निकाला कि उन्होने पदाधिकारियों के चयन के लिए रायशुमारी करने का फार्मूला निकाल लिया। फूल छाप पार्टी की अंदर तक की जानकारी रखने वालों का कहना है कि जिले का मुखिया तो काफी पहले तय हो गया था,लेकिन तब से टीम नहीं बन पा रही थी। ये ही हाल प्रदेश की पार्टी का भी चल रहा था। बडी मशक्कत के बाद फूल छाप पार्टी की प्रदेश की टीम बन गई। प्रदेश की टीम में भी तमाम नए चेहरे आ गए। बुजुर्ग और उम्रदराज तमाम नेता मन मसोसते रह गए। अब चूंकि प्रदेश की टीम बन गई है ,इसलिए अब जिलों का नम्बर है। जल्दी ही जिले की नई टीम भी सामने आ जाएगी. जानकार बता रहे है कि नई टीम वास्तव में नई होगी। इसमें अधिकांश नए चेहरे होंगे। अब तक जो नेता बडे बडे पदों पर कब्जा जमाए बैठे है उनकी छुïट्टी होना तय है। बदलाव की बयार से बवाल की यही वजह है। जिनकी छुïट्टी होना है वे बवाल कर रहे है,लेकिन फूल छाप पार्टी में अनुशासन का डण्डा तगडा है,इसलिए बवाल ज्यादा नहीं मच पाता।
पंजा पार्टी को कार्यकर्ताओं की तलाश
पंजा पार्टी के हाल बेहद खराब है। पंजा पार्टी में इन दिनों सिर्फ नेता ही नेता बचे है। कार्यकर्ता पूरी तरह नदारद है। पंजा पार्टी वालों की चार दिन की चांदनी अब अंधेरी रात में बदल चुकी है। थोडे से दिन सत्ता की मलाई चखने के बाद अब पंजा पार्टी फिर से संघर्षों के रास्ते पर धकेल दी गई है। विपक्ष में है इसलिए आन्दोलन करना जरुरी है। दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले बैठे पंजाबी किसानों के सहारे सरकार को हिलाने का सपना देख रही पंजा पार्टी ने अपनी जडों को मजबूत करने के लिए देश भर में किसान कानूनों का विरोध करने का फरमान जारी कर दिया। उपर वालों को तो सिर्फ फरमान जारी करना होता है। नीचे वाले किस मुसीबत से गुजर रहे है,उन्हे इससे कोई वास्ता नहीं होता। इधर रतलाम जैसे जिले में पंजा पार्टी वैसे ही कोमा जैसी हालत में जा चुकी है। ऐसे में उन कानूनों का विरोध करने का फरमान जारी हो गया,जिस पर किसी को कोई नाराजगी नहीं है। लेकिन पंजा पार्टी वाले भी क्या करे,उपर वालों का फरमान है तो निभाना तो पडेगा। जिले में दो जगहों पर सडक़े जाम करने की घोषणा की गई। छोटा सा काम था। महज डेढ घण्टे के लिए सडक़ें रोकना थी,लेकिन पंजा पार्टी में अब कार्यकर्ता तो है नहीं।सिर्फ नेता ही नेता बचे है। उंगलियों पर गिने जा सकने वाले तमाम नेता उपर वालों का फरमान पूरा करने सडक़ों पर पंहुचे। नारेबाजी भाषणबाजी सबकुछ हुआ। लेकिन देखने वाले यही देख देख कर मजे ले रहे थे कि पंजा पार्टी के नेताओं से ज्यादा तादाद तो वर्दी वालों की थी। जिन किसानों के लिए नारेबाजी हो रही थी,उनका कहीं अता पता तक नहीं था। ऐसे में जब एक नेता जी को भाषण देने का मौका नहीं मिला,तो पैट्रोल पंप चलाने वाले नेताजी अपने आपको किसान बताने लगे। उनका कहना था कि वे किसान है और इसके बावजूद उन्हे बोलने नहीं दिया जा रहा।
सफेद कोट वाले को झटका
जिले के सरकारी अस्पताल का मुखिया बनने की दौड इन दिनों जोरों पर है। खुद का अस्पताल चलाने के साथ साथ पैट्रोलपंप चला रहे सफेद कोट वाले एक महाशय जेबों में गड्डियां भर कर इस उम्मीद में थे कि मुखिया वही बनेंगे। लेकिन राजधानी में बैठे बडे साहब ने उन्हे ऐसा झटका दे दिया कि उनका दिमाग चकरा गया। बडे साहब का झटका इतना जोरदार था कि सफेद कोट वाले महाशय को अभी तो क्या आगे भी मुखिया बनने में पसीने छूट जाएंगे।