May 10, 2024

Raag Ratlami Medical Collage : डाक्टर बनाने वाले गुरुजन ही बन रहे है अस्पताल की राह का रोडा,बागियों से परेशान पार्टियां

-तुषार कोठारी

रतलाम। कई बरसों दशकों की मांग के बाद जब शहर में डाक्टर बनाने वाला कालेज यानी मेडीकल कालेज शुरु हुआ था,तो ना सिर्फ पूरे शहर ने बल्कि आस पास के इलाकों ने भी जमकर खुशियां मनाई थी,कि अब उंचे इलाज के लिए दूर के शहरों की दौड नहीं लगानी पडेगी। लेकिन ये सपने अब तक पूरे नहीं हो पा रहे है। जिन सफेद कोट वालों के भरोसे लोग ये सपने देख रहे थे,वो ही इन सपनों को हकीकत में बदलने की राह के सबसे बडे रोडे साबित हो रहे है।

कहने को तो कोरोना के दौर में मेडीकल कालेज की वजह से शहर और आसपास के लोगों को काफी सुविधाएं मिली थी,लेकिन एक हकीकत ये भी है कि उस डरावने दौर में जब मेडीकल कालेज में कोरोना मरीजों को भर्ती किया जा रहा था,डाक्टर मरीजों के पास तक जाने को तैयार नहीं थे। सफेद कोट वाले,मरीजों को दूर से देखा करते थे और इलाज की जिम्मेदारी नीचे का स्टाफ निभा रहा था।

वो दौर अब गुजर चुका है। तमाम घोषणाओं के बावजूद अब तक मेडीकल कालेज का अस्पताल शुरु नहीं हो सका है। मशीनें डिब्बों में बन्द है। जिन्हे डाक्टर बनना है,उन्हे सिर्फ किताबी शिक्षा मिल रही है। डाक्टरी की प्रायोगिक शिक्षा से ये कोसों दूर है। ना तो इन्हे चिकित्सा की और ना ही सर्जरी की प्रायोगिक शिक्षा दी जा रही है। ऐसी स्थिति में ये नए बनने वाले डाक्टर कितने उपयोगी बनेंगे कोई नहीं जानता।

इसके पीछे की कहानी डरावनी है। ऐसे तमाम स्पेशलिस्ट,जिनके लिए पहले रतलाम के लोगों को इन्दौर या बडौदा जाना पडता था,शहर में आ चुके है।
इनकी तादाद सौ से भी ज्यादा है। इनमें सभी तरह के स्पेशलिस्ट है। ये नए स्पेशलिस्ट सफेद कोट वाले अपने कालेज में कम और शहर के अलग अलग इलाकों में ज्यादा दिखाई देने लगे है। शहर के हर हिस्से में इन सफेद कोट वाले गुरुजनों के निजी अस्पताल चालू हो चुके है और कई स्पेशलिस्ट निजी अस्पतालों से कमाई करने में जुटे हुए है।

जिन पर नए डाक्टर तैयार करने की जिम्मेदारी है,उनमें से ज्यादातर की दिलचस्पी नए डाक्टर तैयार करने में कम और अपनी कमाई बढाने में ज्यादा है। सरकार ने कई सारे नियम बना रखे है। सबसे बडा नियम यह है कि नए डाक्टर तैयार करने वाले तमाम गुरुजन निजी तौर पर मरीजों का इलाज सिर्फ शाम के वक्त और सिर्फ अपने निवास पर कर सकते है। सरकार ने इन सभी गुरुजनों को कालेज परिसर में ही निवास मुहैया करवाए है। लेकिन तमाम गुरुजन अपने निवास पर मरीजों का इलाज करने की बजाय दूसरे स्थानों या दूसरे निजी अस्पतालों में मरीजों से मोटी फीस वसूल कर उनका इलाज कर रहे है।

यही वजह है कि डाक्टर तैयार करने वाले कालेज में अस्पताल शुरु करने और नई मशीनों को चालू करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। वे जानते है कि अगर अस्पताल शुरु हो गया तो उनका ज्यादा वक्त अस्पताल में गुजरने लगेगा और उनकी उपरी कमाई पर इसका बुरा असर पडेगा। जानकार लोगों का कहना है कि यही वो खास वजह है जिसकी वजह से तमाम कोशिशों के बावजूद अस्पताल पूरी तरह से शुरु नहीं हो पा रहा है।

कालेज में करोडों की लागत से बने आपरेशन थियेटर बन्द पडे है। जांचों के लिए आई लाखों की लागत से मंगवाई गई मशीनें अपने डिब्बों में बन्द पडी धूल खा रही है। जिन गुरुजनों को इनका उपयोग करना है उनकी इस बात में कोई रुचि नहीं है कि धूल खाते उपकरणों को बाहर निकाला जाए।

कुछ ही दिन पहले जिला इंतजामिया के अफसरों ने एक लैब को सील करके ताले जड दिए थे। इसकी खिलाफत में शहर भर के सफेद कोट वाले इकट्ठा हो गए। लैब की कागजी कार्यवाही मुकम्मल थी। आखिरकार दूसरे दिन लैब के ताले खोल दिए गए। लेकिन दूसरी हकीकत ये थी कि लैब चलाने वाले दम्पत्ति का वास्तविक काम कालेज में पढाने का था। अब सवाल ये पूछा जा रहा है कि जो कालेज में पढाने के लिए इस शहर में आया,वो अपनी निजी लैब क्यो चला रहा है? यह सवाल डाक्टर बनाने वाले तमाम गुरुजनों से पूछा जाना चाहिए। जिला इंतजामिया अगर इन तमाम गुरुजनों से ये सवाल पूछ ले तो ये तय है कि कालेज वाला अस्पताल जल्दी ही पूरी तरह से शुरु हो जाएगा।

बागियों से परेशान पार्टियां

करीब दस दिनों के बाद आदिवासी अंचल सैलाना की शहर सरकार का चुनाव होने वाला है। पंजा पार्टी और फूल छाप दोनो ही पार्टियां डरी हुई है। सूबे के चुनाव में भी अब खाली साल भर का वक्त बचा है। पिछले दिनों में जिले की तमाम पंचायतों और शहर सरकारों के चुनाव हुए है। वहां के नतीजे भी दोनो पार्टियों के लिए आमतौर पर डरावने ही रहे है। जिले में इकलौते रतलाम शहर को छोडकर फूल छाप ने ज्यादातार जगहों पर चोट ही खाई है। नवाबी शहर की सरकार पर फूल छाप को हार मिली और पंजा पार्टी ने कब्जा जमा लिया। इधर पंचायती चुनावों में भी दोनो पार्टियों को सैलाना के नए लडकों ने जोर के झटके दे दिए। अब सैलाना की शहर सरकार का मामला फंसा हुआ है। पंजा पार्टी और फूल छाप दोनों के बागी मैदान में खम ठोक रहे है। कोई भी अंदाजा नहीं लगा पा रहा है कि ये बागी किस पार्टी को कितना नुकसान पंहुचाएंगे। कहने को तो दोनो पार्टियां जीत के दावे कर रही है लेकिन हकीकतन किसी को भी पता नहीं है कि उंट किस करवट बैठेगा। लेकिन ये जरुर तय है कि इस चुनाव के नतीजे सूबे के आम चुनाव पर बडा असर डालेंगे।

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