April 27, 2024

महाशिवरात्रि विशेष : “दिल से बोले बम बम भोले”

-डॉ. डीएन पचौरी

कल हमारे पड़ोसी के सुपुत्र मुन्ने का जन्मदिन मनाया जा रहा था। बड़ी धूमधाम थी एक बड़े से केक पर 10 जलती हुई मोमबत्तियां लगाई गई थी जिन्हे पूरे फेफड़े का जोर लगाकरमुन्ना बुझाने की कोशिश कर रहा था। मुंह से फूंक कम थूक ज्यादा निकल रहा था। जैसे ही मोमबत्तियां बुजी हैप्पी बर्थडे टू यू का भयानक शोर उठा। मुन्नी ने केक काटा और थूक से आच्छादित केक को लोगों ने बड़े मजे ले ले कर खाया। नए पुराने गाने बज रहे थे जिनमें तुम जियो हजारों साल साल के दिन हो पचास हजार भी बज रहा था समझ में नहीं आया यह दुआ है या बद्दुआ क्योंकि हजारों साल तो अतृप्त आत्मा जो पुनर्जन्म नहीं ले पाती है और ब्रह्मांड में विचरण करती रहती है भूत प्रेत बन जाती है उन्हें बनाने की दुआ क्यों देना? इतना ही नहीं साल के दिन हो पचास हजार अर्थात 1 साल 140 वर्ष के लगभग । अरे भाई साधारण भाषा में यह भी तो बोल सकते हैं.

तुम् जिओ साल एक सौ आठ
साल के दिन हो तीन सो साठ

क्या ऐसा नहीं हो सकता बच्चे का जन्मदिन भारतीय परंपरा के अनुसार मनाएं। बच्चे को प्रातः काल मंदिर ले जाए भगवान के दर्शन करने के पश्चात घर लाकर इष्ट देव की उससे पूजा करना सिखाए अगरबत्ती जलवा ए आरती करना बताएं आदि। दिन में उसकी पसंद का भोजन बनवाएं उससे बाजार से उसकी पसंद का कोई उपहार लाकर दे और शाम को उसके मित्रों को बुलाकर मित्रों के साथ ताली बजाकर इष्ट देव के सामने कीर्तन करवाएं क्योंकि ताली बजाने से कई शारीरिक रोग ठीक हो जाते हैं। फिर मित्रों को स्वल्पाहार या पूर्ण आहार जैसी श्रद्धा करवा कर उनके घर भेज दे। किंतु ऐसा किया तो आपको पुरातन प्रेमी पाखंडी गवार जैसे विशेषण से विभूषित किया जाएगा।

चलो छोड़ो यह तो आजकल की पीढ़ी का जन्मदिन है हमारी पीढ़ी के जन्मदिन का क्या? हमारे जमाने में तो हर एक के दो जन्मदिन हुआ करते थे एक वास्तविक जन्मदिन जो वास्तविक होते हुए भी बिल्कुल सही मालूम नहीं होता था जैसे हमारा जन्मदिन पूछने के लिए जब माता जी से पूछा कि हम कब पैदा हुए? तो माताजी ने कहा यही होली के आसपास मैंने कहा मतलब? उन्होंने कहा होली के एक हफ्ता पहले या 1 हफ्ते पश्चात। वैसे भी हमारे जमाने में आजकल जैसा होता है कि किसी के यहां एक या ज्यादा से ज्यादा 2 बच्चे होते हैं उस समय छह सात बच्चे होना मामूली बात थी और ज्यादातर लोगों के यहां क्रिकेट टीम विद एक्स्ट्रा प्लेयर हुआ करते थे इसलिए किस-किस का जन्मदिन याद रखें और वैसे भी शिक्षा का प्रसार उस समय इतना नहीं था अधिकतर के मां-बाप अशिक्षित ही हुआ करते थे । जहां तक जन्मकुंडली की बात है तो उसे बनाने के लिए चाहे जो भी हो या कंप्यूटर बिल्कुल सही समय की जानकारी आवश्यक है यहां तक की कितने बजे कर कितने मिनट। किंतु जब हमने मां श्री से समय का पूछा उन्होंने कहा कि सुबह का समय था सूरज आसमान में काफी ऊपर तक चला आया था काफी धूप फैल गई थी लोग अपने काम पर जाने लगे थे अब बताइए सही समय का अंदाजा कैसा लगाएंगे? यह तो भला हो हमारे पढ़े-लिखे मामा जी का जिन्होंने शहीद दिनांक और समय एक डायरी में नोट कर रखा था।

दूसरे जन्मदिन हमारे प्राथमिक विद्यालय में पंडित जी मुंशी जी वर्मा जी शर्मा जी जो भी है आदरणीय गुरुजी हुआ करते थे उनका दिया हुआ होता था। उस जमाने में आज की तरह एडमिशन फॉर्म नहीं भरे जाते थे। आजकल तो माताजी पिताजी और बच्चे का इंटरव्यू होता है बड़े अंग्रेजी स्कूलों में तो मां-बाप का अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा होना जरूरी है क्योंकि वहां से मिलने वाले भारी-भरकम होमवर्क को मां बाप कोई पूरा करना होता है। उस समय तो नाम पिता जी का नाम पूछा बस बैठ जाओ कक्षा में। पहले 6 महीने कच्ची पहली और अगले 6 महीने तक की पहली 1 साल में पहली पास 5 साल में पांचवी पास। नर्सरी एलकेजी यूकेजी आदि का झंझट ही नहीं था। गुरुजी को शायद स्कॉलर रजिस्टर तैयार करना पड़ता था जिसमें जन्म तारीख आवश्यक है अतः हुए अपने मन से कोई भी तारीख दे देते थे। बच्चे की कद काठी देखकर जन्म दिनांक निकाली जाती थी जैसे लंबा और बड़ी उम्र का दिखा तो उसको ऐसी जन्म तारीख देते थे तो बड़ा दिखाएं और छोटों को छोटी उम्र का। जन्म तारीख भी नेताओं की जन्म तारीख को तिथि जैसे नेहरू जी गांधीजी राजेंद्र प्रसाद पंडित मदन मोहन मालवीय नेताजी सुभाष लाला लाजपत राय लाल बहादुर शास्त्री सरदार पटेल आदि। हमें सरदार पटेल की जन्म तारीख और हमारे बड़े भाई को पंडित मदन मोहन मालवीय की जन्म तारीख दे दी गई। इस प्रकार हमारी दो जन्म तारीख हो गई एक होली के आसपास और दूसरी दिवाली के आसपास। इस दूसरी और नकली जन्म तारीख के आधार पर ही विद्यालय स्थानांतरण प्रमाण पत्र चरित्र प्रमाण पत्र शिक्षा के प्रमाण पत्र नौकरी लगना रिटायरमेंट बैंक एलआईसी पासपोर्ट से लगाकर जीवन के हर क्षेत्र में जहां भी जन्म तारीख की जरूरत पड़ती थी यह नकली जन्म तारीख ही काम में आती है। अब बताइए कौन से जन्मदिन को मनाया जाए?

हमारी पुरानी पीढ़ी और इस नई पीढ़ी में एक सबसे बड़ा अंतर और है वह शारीरिक दंड विधान का। हमारे जमाने में यह फंडा चलता था की छड़ी बाजे छम-छम छम तो विद्या आवे धम धम। और आजकल तो बच्चे को छू भी नहीं सकते बेंच पर भी खड़े नहीं कर सकते उनमें किसी प्रकार का भय है ही नहीं जो के भय बिन प्रीत न होय गुसाईं और भ य बिना विद्या भी आवत नाही। न तो पुराने जमाने का और नहीं नए जमाने का दोनों ही फंदे ठीक नहीं है संतुलन आवश्यक है । लेखक का उद्देश्य बच्चों को शारीरिक दंड देना बिल्कुल नहीं है कदापि नहीं परंतु सामान्य दंड जिससे बच्चे के अंदर थोड़ा सा गुरुजी का भय बना रहे आवश्यक है उदाहरण के लिए हल्के से कान मरोड़ ना क्योंकि नाक कान गला विशेषज्ञों से पता चल सकता है कान को हल्का सा खींचने यादव आने से गले के टॉन्सिल ठीक हो जाते हैं इसी प्रकार हाथों में तर्जनी उंगली के नीचे ब्लड प्रेशर मध्यमा के नीचे डायबिटीज अनामिका के नीचे पैंक्रियास और कनिष्ठ का की जड़ में किडनी के पॉइंट होते हैं एक्यूप्रेशर के अनुसार इन्हें दबाने से यह सभी रोग ठीक हो जाते हैं इसलिए किसी छड़ी अथवा स्केल से इन्हें दबाया जाता था तो शारीरिक रोगों में फायदा पहुंचता था। यह सलाह उन शिक्षकों के लिए कदापि नहीं है जो गृह क्लेश का क्रोध कक्षा में आकर बच्चों पर निकालते हैं।

शिवरात्रि के अवसर पर सबको छोड़ आज विश्व की बात करते हैं आज ज्यादातर राष्ट्र एटॉमिक एनर्जी से लेस है रूस और यूक्रेन में साल भर से युद्ध चल रहा है चीन ताइवान पर नजर गड़ाए बैठा है अमेरिका और चीन की सांप और नेवले जैसी दुश्मनी दुनिया भर में प्रसिद्ध है नाटो और वार्ड देशों की गणित अलग चल रही है हमारा पड़ोसी देश एक हाथ में कटोरा तो दूसरे में एटम बम लेकर इतरा रहा है और सबसे बड़ा डर यह है कि यह तालिबान ने पाकिस्तान को हथिया लिया तो फिर यह बिना पढ़े लिखे गवार तालिबानी बम लेकर कैसा खेल करेंगे अंदाजा लगा लीजिए। आज हमारे त्योहार पर बम बम भोले बोलते ही एटम बम की याद आती है भगवान भोले तो वैसे भी विश्व संहारक माने जाते हैं।

कहीं उनका तीसरा नेत्र खुल गया विश्व का क्या होगा सोचने की बात है। भगवान से प्रार्थना कीजिए कि विश्व में कहीं भी एटम बम का प्रयोग ना हो अन्यथा विश्व शांति तो अलग विश्व ही नहीं रहेगा अब तो सच्चे मन से शिवरात्रि मनाइए और दिल से गाते रहिए बम बम भोले बम बम भोले।

(लेखक वरिष्ठ शिक्षाविद है और रूपायन स्टोर्स के निकट दो बत्ती रतलाम पर निवास करते है)

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