December 23, 2024

जीवन तीन अविनाशी का संगम – भारतीय संस्कृति का आधार स्तम्भ

fig2

भारतीय संस्कृति अति प्रापीन पृथ्वी पर विकसित सभ्यता का वाहक है, जो आज विष्व के अज्ञान से अंधकारग्रस्त है, और अपनी संस्कृति को अंधविष्वास मानकर विदेषी अज्ञान की मरीचिका में धन.लाभ के लालच के चंगुल में फंसता जा रहा है, जहाॅ जनसंख्या अंधविष्वास का आधार है। विष्व संदियों से इस आग मे झुलस रहा है, विदेषी आक्रान्ता षासको ने इसे नेस्त-नाबुत करने के अयंख्य प्रयास किए महाकवि इकबाल के षब्दो का स्मरण होता है।
.बाकी मगर है अब तक नामो निषां हमारा,
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी
सदियों रहा है दुष्मन दौरे जमाॅ हमारा।

अक्षरा माॅ भगवती भिक्षान्देही ही इस अंधकार में ज्ञान की मषाल है। जिसके प्रकाष में सम्राट अषोक, और दिग्विजयी चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय ने भारतीय भू-भाग पर एक छत्र षासन किया और विष्व में भारत का परचम लहराया, जो आज महज किवदंती लगता है, लेकिन महान एलेक्जेंडर का विष्व-विजय के सपने को विराम भारत की असीम ज्ञान षक्ति ने, जिसका एहसासण् और ज्ञान आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य ने सिकंदर को करवाया कि वह अपना अभियान समाप्त कर वापस हो गया, मृत्यु के पष्चात उसके हाथ £ाली थे कि महान सिकंदर जब दुनिया से बिदा हुआ तो साथ कुछ भी नहीं गया। इसकी स्वीकार्यता,और पुष्टि ग्रीस के भारत में रालदूत हिलियोडोरस ने विदीषा मे हिलियोडोरस स्तम्भ 113 बी सी ई में स्थपित किया, जिसे आज भी £म्बा बाबा नाम से पुजा जाता है। स्तम्भ पर उकेरे गए ले£ कि जीवन तीन अविनाषी का संगम है, जिसे उसने जेरूसलेम में स्थापित किया, जो मंदिर के पीछे टूटी दिवार पर भारत का गुंणगान कर रहे है। प्रसिद्ध काबा सर भी इसका गुणगान हो रहा है। जिससे विष्व वंचित होकर अंधकारग्रस्त है।

प्रसिद्ध काबा मस्जिद, मक्का

नुक्कड प्रवचन। कि जीवन तीन अविनाषी का संगम है, जिसे आकाषिय स्थान ने धारण किया है, परमाणु के चार घटक तत्व सुटि का आधार है। कार्यषील ऊर्जा अपने द्विस्वभाव से सृष्टि संचालित करती है।
तम सोमा ज्योतिर्गमय । ऋग्वेद ऋक् अविनाशी आकाशिय स्थान का ज्ञान, जो समस्त चर-अचर के अस्तित्व का प्रमाण है। अंधेरे से प्रकाश की ओर।
अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् । होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥१॥
मै उस अग्नि मैलिक ऊर्जा का आहृान करता हूँए जो इस सृष्टि यज्ञ का कर्ताए धर्ता ओर रत्नो की खान है ;ऋब्वेद 1.1.1द्ध
मै उस कार्यषील ऊर्जा का आह्नान करता हूॅं, जो सृष्टि यज्ञ का कर्ता-धर्ता और पृथ्वी पर समस्त धन सम्पदा का स्रोत है।

त्रयी विद्या-तीन अविनाषी का ज्ञान
असतो मा सद्गमय।
ब्रह्मणस्पती ने गहन अंधकार को लोहार की तरह तपाया, और जहांॅ कुछ भी नही था, उससे सत् मूल-भूत कणो की उत्पत्ति हुई,ऋग्वेद 10-72-2,
सृष्टि की प्राग्वस्था मे घने अंधकार मे किसी का अस्तित्व नही था, इस अंधकार मे विपरीत धर्मी अंधकार उत्पन्न हुआ, और घर्षण से उष्मा ताप उत्पन्न हुआ और असत् जहाॅ कुछ नही था, सत् षिघ्रगामी यजु सह आण्विक सूक्ष्म कण इलेक्ट्ान अस्तित्व मे आया, जो कार्यषील ऊर्जा की प्रथम अभिव्यक्ति है, जो सत्य है, सत् षिघ्रगामी यजु सह आण्विक सूक्ष्म कण इलेक्ट्ान, विस्थापन के द्वारा आक्सिकरण और अवकरण सृष्टि का आधार है। जो सर्वप्रथम सृष्टि के प्रादूर्भाव, सूक्ष्म मूल-भूत कण इलेक्ट्ान के विस्थपन के याथ प्रारम्भ हुई और लाभ संष्लेषण, और षुभ-विघटन के चक्र द्वारा निरन्तर सुष्टि को पोषित करती है। इसे स्वस्तिक के द्वारा अभिव्यक्त किया गया, रिद्धि-सिद्धि लाभ-षुभ का द्योतक है। यह सूक्ष्म कण इलेक्ट््ान समस्त चर-अचर घटको का स्वामी, गणो का गणराज कहा जाता है। जिसे हम गणपति-गणेष कहते है। जिसका सर्वप्रथम आह्नान किया जाता है।
मृत्र्योमाऽमृतंगमय। मृत्यु से अमृत्व की ओर, सनातन जीवन का द्योतक है। अविनाषी स्वर‘तरंग, सर्वप्रथम अंधकार में अंधकार की छवि के सदृष्य उत्पन्न हुई, जिसने सुषूप्त अंधकार को सक्रिय कार्यषील ऊर्जा में प्रेरित किया और सृष्टि अस्तित्व में आई, यह अविनाषी स्वर-तरंग सबका भरण-पोषणए और सबको धारण करती है, यह अविनाषी स्वर-तरंग पीढी दर पीढी नवीन जीवन के साथ स्वागत करती है, और जीव के अविनाषी घट-कुम्भ डीएनए के साथ जीव की व्यक्तिगत पहचान है। एतदर्थ समयबद्ध जुडवाॅं संतान के भाग्य और घट-कुम्भ डीएनए, और भाग्य अलग-अलग होते है। इसे त्रयी-विद्या ऋक्-यजु-साम कहा गया।

भारत-भारती, लव-कुष, के स्वर-तरंग सदियों से गूंज रहे है, जिसे महर्षि वाल्मिकी ने रसमायण अभिव्यक्त किया कि प्रकाष किरणे स्पंबन और ण्वनि के द्वारा गति करती है, जो समानुपाती होकर परस्पर समान अनुद्र्धेय तसंग द्वारा समब्ंधित है, ध्वनि की सुव्मतम ईकाई फोनाॅन सृष्टि की प्राग्वस्था मे सर्वप्रथम उत्पन्न हुई, जिसने अक्रियाषील मौलिक ऊर्जा को अपनी समानुपाती विपरीत अनुद्र्धेय तरंग द्वारा क्रियाष्ील किया, पराणो मे महादेव-सती, तथा रामायण मे राम-सीता की गहन अंधकार से प्रकाष की तरफ यात्रा को मानवीय आकार प्रदान किया, और महाविस्फोट बिग-बेंग से तीन अविनाषी के संगम के साथ सृष्टि निर्माण प्ररम्भ हुआ, जो सुष्टि का आधार है। इस संगम को राम-लक्षमण-सीता, तथा पुराण ब्र्रह्मा-विष्णु-महंेष के द्वारा अभिव्यक्त किया गया।
जीवन तीन अविनाषी का संगम। पुण्य भूमि रत्नललाम मेरी कर्म भूमि और रतलाम वासियों का अपार स्नेह कि मैं मौत के मुहॅ से वापस आया, सुष्टि के कार्य अलौकिक है, जिसे मैने दण्ड समझा वह अमृत बन कर मुझे भिण्ड में मिला और मुझे सिंधु-घाटी का रहस्य मिल गया, जिसकी खोज करते-करते निराष हो गया था कि जगत््-जननी, अविनाषी स्वर-तरंग सब का धासण-पोषण और नियंत्राण करती है। जिस जगतजननी का गुण-गान लव-कुष ने रामायण मे किया। वंदे मातरम्। ब्रह्म-आकाष अस्तित्व की पहचान। पर्ण-हरिम भोजन जीवन का आधार। जिसे अविनाषी स्वर-तरंग पीढी दर पीढी नऐ जन्म के साथ स्वागत करती है।

जीवन तीन अविनाषी का संगम है।
जिसे तीन अक्षर बोलिएं के द्वारा अभ्व्यिक्त किया गया है। अक्षर जो प्रकाष से पहले है। जो इस कोषा मे दूध के द्वारा अम्त उत्पन्न करता है। और षक्तिषाली व्षभ के समान मौलिक ऊर्जा,अवतरित होती है, जो जीव जगत का आधार है। डीएनए जीवन का यंत्र है, माॅ के गर्भ मे निषेचन के साथ तीन अविनाषी क्रियाषील हो जाते है और जीव को आकार प्रदान करते है, इसके साथ कोषा मे मौलिक ऊर्जा वृषभ के समान अवतरित होती है, और जीव विकास के पथ पर अग्रसर होता है। अर्थात डीएनए मौलिक ऊर्जा का वाहन है, और पृथ्वी मौलिक ऊर्जा का भ्रमण स्थान, जो जीवन के साथ अवतरित होती है, और मृत्यु के साथ विलुप्त हो जाती है।
1, अविनाषी आकाष जिसके-आधारिय आकाष से मूल भूत कणों कां भार प्राप्त हुआ, जो सबके अस्तित्व की पहचान है। जिसे आधुनिक विज्ञान मे हिग्स फिल्ड, इैष्वरीय कण कहा गया, और ग्रह-नवत्र बने।
2, अविनाषी अष्विन, डी.एन.ए. का न्युक्लियोटाईड जोडाॅ, अविनाषी सूक्ष्म ध्वनि तरंग के साथ सभी जीवों के जीवन का कारण है। जो सृटि की प्राग्वस्था मे क्षरित हुआ, यह अविनाषी डीएनए जीवन का यंत्र है, जिसे गीता मेंजीवात्मा कहा गया, जो बार-बार जन्म लेता है, और अविनाषी स्वर-तरंग उसका नए जन्म के साथ अनुसरण करती है।
प् ेंू तिवउ ंित ंूंल तिवउ जीम ेउवाम व िनिमस ूपजी ेचपतमे जींज तवेम वद ीपही जींज इमदमंजी पजण् ज्ीम डपहीजल उमद ींअम कतमेेमक जीम ेचवजजमक इनससवबाण् ज्ीमेम ूमतम जीम बनेजवउे पद जीम कंले ं वितमजपउम त्पहण्1.164.43ण्
अश्विन डीएनए की रचना सृष्टि की प्राग्वस्था मे मौलिक ऊर्जा से हुईए जिसे यह कह कर अभ्सिव्यक्त किया गया कि शक्तिशाली पुरूष ने रंग बिरंगी गाडी का निर्माण कि
याए ऋग्वेद 1.164.43 और यह सृष्टि निर्माण के साथ बंदुंक की गोली के समान क्षरित हुआए जीव जगत का विकास एक अश्विन डीएनए से हुआए पृथ्वी पर यह जीव का वाहन हैए इसके दो क्षार प्युरीन और पायरीमिडीन को सराण्यु और संजना नाम दिया गयाए इनमे सिर्फ नाईट्रोजन का अंतर होता है जो समानता का द्योतक है। साकेतिक भाषा मे इन्हे त्वष्टा की पुत्री कहा गयाएए ये हवा मे विभक्त होते है जैसे काँच मे छवि ।
सृष्टि का आधार अविनाशी सूक्ष्म ध्वनि तरंग हैए जो पृथ्वी पर अस्तित्व की पहचान हैएजो जीवन के साथ अवतरित होती हैए और जीव.अजीवए आकाश और पृथ्वी पर फैल रही है। वह चट्टानो को भी ध्वस्त कर देती हैए जब पंच महाभूत अग्नि के साथ क्रिया.प्रतिक्रिया करते है।
सूर्य के गर्भ से सीधे तेजी से बहने वाले सूक्ष्म फोटॉन कण तथा सूक्ष्म फानॉन विपरीत स्वभाव के समानान्तर बल हैए जो परस्पर टक्राते हुए गति करते है। विद्युत चुम्बकीय प्रकाश किरणे स्पंदन और ध्वनि के साथ गति करती हैए जो दो मॉ के समान सृष्टि को पोषित करती है ।
सृष्टि की उत्पत्ति
ब्रह्माण्ड और पृथ्वी की उत्पत्ति एक बार एक ही समय हुई और एक ही समय प्रिश्नि का दूध क्षरित हुआ इसके बाद कौई उत्नन्न नही हुआ। जिसे कहा गया कि सृटि निर्माण के समय अक्षय अमृत कुम्भ छलका। यह अक्षय अमृत त्वष्टा अविनाशी डीएनए तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ जीव जगत के रुप म फैल रहा है।
एक ही बार ब्रह्माण्ड की संरचना हुईए सिर्फ एक ही बार पृथ्वी अस्तित्व में आईए और एक ही बार प्रिश्नी का दूध क्षरित हुआए इसके बाद कभी नहीं ऋग्वेद 6.48.2 यह खगोलिय घटना कि तरफ संकेत है प्रिश्नि उस गाय का नाम हैए जो हर प्रकार का भोजन देती है। यह त्वष्टा अश्विन डीएनए का नाम हैए जो तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ जीव जगत का आधार और भोजन स्रोत है। सृष्टि मे जीव ही जीव का भोजन है। इसी से जीवो की भोजन श्रंखला और भोजन जाल का निर्माण हुआ है।
3, प्रकाष-संष्लेषण की अविनाषी रासायनिक ऊर्जा, जो सभी जीवों मे जीवन का आधार है। अविनाषी अष्विन डीएनए मे स्वतः संप्रेषण और अनुवाद समय के साथ यांत्रिक होता है। जो विचार और क्रिया के रुप मे परिलक्षित होता है

एक मौलिक ऊर्जा से सृष्टि का निर्माण हुआए जो अनने द्विस्वभाव प्रकाश फोटॅान एवं ध्वनि फोनॉन के द्वारा कार्य कर रही हैए ये दोनो बल सूक्ष्मतम प्रकाश के कण फोटॉन एवु ध्वनि की सूक्ष्मतम ईकाई फोनॉन ये दानो बल समस्त ब्रह्माण्ड में और सूक्ष्तम परमाणु में भी क्रियाशील हैए सृष्टि के सतस्त कार्य इन दोनो के द्वारा हो रहे हैए इसलिए कहा गया कि दोना पिता भी है और पुत्र भी है। इनमे से एक देव मन में प्रविष्ट हुआए अर्थात अविनाशी ध्वनि.स्वर जरंगए जो दिमाग में विचारो को उत्पन्न कर जीव को क्रिया हेतु प्रेरित करते हैए यह देव अविनाशी स्वर तरंग सुष्टि की प्राग्वस्था में सव्रप्रथत अवतरित हुईए जिसने सुशुप्त मैलिक ऊर्जा को क्रियाशील किया और यही गर्भ मे प्रविष्ट होकर जीव को धारण करती है। दो बल आण्विक स्तर पर एक तरंग के द्वारा जुडें हुए है। इसे परस्पर ओगं पीछे जुडे हुएशेरो के द्वारा दर्शाया गया है।
उ॒तैषां॑ पि॒तोत वा॑ पु॒त्र ए॑षामु॒तैषां॑ ज्ये॒ उ॒त वा॑ कनिः॒।
एको॑ ह दे॒वो मन॑सि॒ प्रवि॑ष्टः प्रथ॒मो जा॒तः स उ॒ गर्भेऽ अ॒न्तः॥
ठवजी जीमपत ंिजीमत पे ंसेव जीमपत ेवदय इवजी जीम बीपम िपे ंसेव जीम उमंदमेज ;ज्ञंदपेीजींद्ध व िजीमउय जीम वदम ळवकए ूीव ींे मदजमतमक पदजव जीम उपदकए इवतद जीम पितेजए ंदक ीम ूपजीपद जीम ूवउइ ;।जीण् 10.8.28द्धण्
मौलिक ऊर्जा अपने द्विस्वभाव फोटॅान और फोनॉन के द्वारा क्रियाशील है। वाक् शब्द मन मे विचारों का स्फुरण करते है। एक मौलिक ऊर्जा से सृष्टि का निर्माण हुआए जो अनने द्विस्वभाव प्रकाश फोटॅान एवं ध्वनि फोनॉन के द्वारा कार्य। कर रही हैए ये दोनो बल सूक्ष्मतम प्रकाश के कण फोटॉन एवु ध्वनि की सूक्ष्मतम ईकाई फोनॉन ये दानो बल समस्त ब्रह्माण्ड में और सूक्ष्तम परमाणु में भी क्रियाशील हैए सृष्टि के सतस्त कार्य इन दोनो के द्वारा हो रहे हैए इसलिए कहा गया कि दोना पिता भी है और पुत्र भी है। इनमे से एक देव मन में प्रविष्ट हुआए अर्थात अविनाशी ध्वनि.स्वर जरंगए जो दिमाग में विचारो को उत्पन्न कर जीव को क्रिया हेतु प्रेरित करते हैए यह देव अविनाशी स्वर तरंग सुष्टि की प्राग्वस्था में सव्रप्रथत अवतरित हुईए जिसने सुशुप्त मैलिक ऊर्जा को क्रियाशील किया और यही गर्भ मे प्रविष्ट होकर जीव को धारण करती है।
पर्वा॒प॒रं चरतो मा॒ययै॒तौ शिशू क्रोडन्तौ परि यातोऽर्ण॒वम्।
विश्वा॒न्यो भुवना वि॒चष्ट ऋतूँरन्यो वि॒दधज्जायसे॒ नवः ॥२३॥
ये दो समानुपीती बल परस्पर समीप अपनी शक्ति से ध्वनि.प्रतिध्वनि द्वारा एसे क्रिया करते हैए जैसे शिशु यज्ञवेदी के आसपास क्रिडा कर रहे हो। प्रकाश की विद्युत चुम्बकीय किसणे ध्वनि और स्पंदन के द्वारा गति करती है। इनमें से एक शक्ति बल समस्त घटको को धारण करती हैए और दूसरा बल मौसत के अनुसाार पुनः.पुनः जन्म लेता है। मौलक ऊर्जा अपने द्विस्वभाव प्रकाश की सूक्ष्मतम ईकाई फोटॉन एवं ध्वनि स्वर की सूक्ष्मतम ईकाई अविनाशी फोनॉन दो नदी की धारा के समान समानान्तर और एक दूसरे के पूरक हैए जो एक विपरीत अनुर्द्धेय तरंग द्वारा जुडे हुए है।

ध्वनि और प्रकाष का अनन्य सम्बंध है, प्रकाष की अनुद्र्धेय तंरंगे विधुत चुम्बकीय किरणे ध्वनि के साथ गति करती है, जैसे नृत्य करते हुए, इसी प्रकार जीव मे जीव द्रव कोषा मे ध्वनि के साथ गति करता है। यह जीवन का प्रतीक है, जीवन समाप्ति के साथ जीव-द्रव की गति बंद हो जाती है।
जीवन की उत्पत्ति के साथ आवाज जीवन की प्रथम अभिव्यक्ति है। यह अविनाषी आवाज ,षब्द अक्षर है, जो व्यक्ति की व्यकित्गत पहचान भी है, जिस प्रकार से डीएनए मे व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान होती है।
मंदिर-घण्टी का अनन्य सम्बंध है, जो सृष्टि के उदय का संकेत है, कि सृष्टि की प्राग्वस्था मे जब अंधकार के सिवाय कुछ नही था,एषान्त, स्थिर अंधकार मे अंधकार के यमान तरंग उत्पन्न हुई जैसे घण्टी मे स्थिर पेंडुलम, स्थ्रि तरंग के विपरीत स्वभाव से आकर्षण-विकर्षण से तरंग मे स्पंदन हुआ,और घण्टी बजाने पर ध्वनि होती है, वैसे ही अविनाषी स्वर-तरंग के स्पंदन संे उत्पन्न ध्वनि ने प्रतिध्वनि से समस्त निष्क्रिय अंधकार को आवृत कर लिया, दो विपरीत बलो के घर्षण, और ध्वनि से भयंकर ताप उत्पनन हुआ, और महाविस्फोट बिगक्-बेंग से समस्त ब्रद्याण्ड प्रकाष ज्योति से आलोकित हो गया, जिसे मंदिर मे दीप प्रज्वलित कर अभिव्यक्त किया जाता है। विस्फोट से प्रकाषित ज्योति की पुजा ज्योतिर्लिंग कार्यषील ऊर्जा की प्रथम अभिव्यक्ति है, जिससे ऊर्जा रुपांतरण द्वारा समस्त चर-अचर का निर्माण होता है, और समय के साथ उसी में विलीन हो जाते है।

अक्षरा माॅ भगवती भिक्षान्देही ।
एक अल्लाह, एक ब्रह्म, एक प्रकृति
जर्रे-जर्रे मे जिसका नूूर समाया ।
उसमे भेद करे वो काफिर, उसमे भेद करे वो काफिर।।
कु्रफ्र्र्र से डर ए बंदे ।
जीवन यात्रा में, सभी यात्री एक नावंॅ के।
सभी यात्री एक नावंॅ के।
इस गुल चमन मे बसती सोने की चिडियाॅ,
जिसका नाम सहिष्णुता-सहअस्तित्व।
मन-मन्दिर, मन-मस्जिद, जिसका कोई नाम नही।
स्वयं को ध्यावो, स्वयं को पाओ, स्वयं को वोट दो।
एक अल्लाह, एक ब्रह्म, एक प्रकृति,
जर्रे-जर्रे मे जिसका नूर समाया।
उसमें भेद करे वो काफिर, उसमें भेद करे वो करफिर।।
कुफ्र्र्र से डर ए बंदे, जिंदगी के सफर मे ।
जीवन समुद्र में सभी यात्री एक नावं के।।
जन्म से पहले अनजान थे,मृत्यु के बाद पुनः अनजान।
यही सनातन सत्य जीवन यात्रा का।।
वंदे मातरम्-वंदे मातरम्।
उपसंहार

, त्वष्टा अविनाषी डीएनए के चार क्षार आधुनिक संदर्भ मे एडेनीन, ग्वानीन, थायमीन और सायटोसीन जीव जगत का आधार है ऋग्वेद 4-58-3, पृथ्वी पर जीवन संसार रुपी वृक्ष पर एक घोंसलें के समान है। अर्थात ज्वष्टा अविनाषी डीएनए जीवन का यंत्र है। ऋग्वेद 10-127-4
जीवन तीन अवस्थओं और तीन अविनाषी का संगम है, जो जन्म के साथ माॅं के गर्भ में अवतरित होते और मृत्यु के साथ विलीन हो जाते है। अविनाषी वाक् स्वर पुनःनवीन जीवन के साथ स्वागत करते है। अविनाषी अष्विन जिसे महान सत्य ने सराण्यु और संजना के साथ सृष्टि की प्राग्वस्था मे श्रंगारित किया, ये दोनों आईने मे छवि के समान है, जिन्हे आधुनिक भाषा मे अष्विन-डीएनए का न्युक्लियोटाईड जोडा प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार कहा जाता है, जीवन की उत्पत्ति के साथ सराण्यु गंुणसूत्र क्रोमोसोम यम-यमी की जननी है और इसे ही नवीन डीएनए विवस्वत की पत्नि कहा गया है। जो पीढी दर पीढी गर्भ में अविनाषी स्वर के साथ जीव को पोषित करती है। अष्विन-डीएनए का न्युक्लियोटाईड जोडा प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार कहा जाता है से नर और मादा गुणसूत्र यम-यमी बनते है, गर्भ में निषेचन के समय नर और मादा डीएनए के सम्पर्क स्थान पर हवा में मन का संकेत उभरता है,जिसे अविनाषी स्वर-षब्द तरंग सरस्वती अपनी विपरीत अनुद्र्धेय तरंग द्वारा इलेक्ट््ान विस्थापन और अर्धघुमाव द्वारा अष्विन-डीएनए संकेत को उत्प्रेरित करती है। यह अष्विन डीएनए मन संकेत और विपरीत स्वर-षब्द तरंग सरस्वती जीव की विषिष्ठ पहचान होती है।

पृथ्वी पर जीवन वायुमण्डल में उपस्थित ओजोन पर्त के कारण है, जो सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणो को अवषोषित कर द्दष्य सफेद प्रकाष को मार्ग देती है। सफेद प्रकाष की सात विद्युत चुम्बकीय किरणे स्पंदन और ध्वनि के द्वारा गति करती है। अविनाषी षब्द-स्वर फोनाॅन और प्रकाष के सूक्ष्मतम कण फोटाॅन परस्पर ध्वनि-प्रतिध्वनि के द्वारा आण्विक स्तर पर क्रिया करते है। ये सात किरणे पृथ्वी पर पंच महाभूत के साथ जीवन की कारक है, जो जीवन के साथ अक्षरा वाक् सरस्वती असंख्य धाराओं मे बह रही है।
ैमअमद ेपेजमते ेचतनदह तिवउ जीतममविसक ेवनतबमए ;ंइपकपदह पद जीम जीतमम ूवतसके जींज ंतमए ीमंअमद मंतजी ंदक ंपतद्ध जीम थ्पअम ज्तपइमे चतवेचमतए ेीम उनेज इम प्दअवामक पद मअमतल कममक व िउपहीज ;ÿह.टमकं 6.61.12द्ध
सात बहने सफेद प्रकाष की सात किरणे तथा ध्वनि के सात स्वर सृष्टि का आधार है। प्रकाष और ध्वनि एक दूसरे के पूरक है। सफेद प्रकाष की किरणे स्पंदन और ध्वनि के साथ गति करती है, प्रकाष की अनुद्र्धेय तंरंग और स्पंदन ध्वनि प्रवाह प्रकाष की अनुद्र्धेय तंरंग से जुडे हुए है।
ध्वनि के सात स्वर प्रकाष की सात दृष्य किरणो के समान विपरीत गुणो वाली अनुद्र्धेय तंरंगे है, जिसका स्पेक्ट्म प्रकाष के स्पेक्ट्म के समान ही परन्तु विपरीत गुण वाला है, जो एक दूसरे के पूरक है, यह ष्षब्द, विचार और क्रिया के रुप मे विकसित हुए है। समस्त जीव जगत के प्राणि सूक्ष्म स्तर पर एक समान क्रियाओं का प्रदर्षन करते है, मनुष्य विकसित प्राणि है। जीव एक विपरीत अनुद्र्धेय तंरंग द्वारा ब्रह्माण्ड से जुडा हुआ है, जो उसे नियंत्रित और संचालित करती है, और मनुष्य सम्प्रेषित विचार के अनरूप षब्द और विचार द्वारा क्रियाओं का प्रदर्षन करते है।

मै उस अग्नि मैलिक सक्रिय ऊर्जा का आहृान करता हूँए जो इस सृष्टि यज्ञ का कर्ताए धर्ता ओर रत्नो की खान है ;ऋब्वेद 1.1.1द्ध
मै उस अग्नि मैलिक ऊर्जा का आहृान करता हूँए जो इस सृष्टि यज्ञ का कर्ताए धर्ता ओर रत्नो की खान है ;ऋग्वेद 1ण्1ण्1द्ध
भारत का गौरवशाली अतीत भारत का आधार हैए हमारी विरासत का प्रतीक हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है। जिसे हमने सम्राट अशोक से विरासत में प्राप्त कियाए यह चिन्ह मौर्य कालीन हैए जब भारत पर मौर्य साम्राज्य का एक छत्र शासन था। इसे ही सम्राट अशोक ने सारनाथए जहाँ महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उद्बोधन दिया थाए उस स्थान पर उनकी शिक्षा को स्थायी बनाने के लिए इस अद्भूत चिन्ह को स्थापित किया। जिसका मूल वेदो में है। इस चिन्ह में सम्पूर्ण सृष्टि का सार समाहित है जो सम्राट अशोक के गौरवशाली साम्राज्य का आधार थाए कि
सृष्टि एक तंत्र के अंतर्गत क्रियाशील है जिसमे प्रकृति से सामंजस्य और नैतिक कर्तव्यों का पालन मनुष्य का नैतिक कत्र्तव्य है। समुद्रगुप्त और चन्द्रहुप्त द्वितीय के काल मे जब भारतीय उपमहाद्विप चरम उत्कर्ष पर थाए धरों और दुकानो पर ताले नहीं लगते थैए लोग स्वतः अपना कार्य इमानदारी और कर्त्तव्य का पालन करते थेए कि जीवन निरन्तर चलने वाला हैए जन्म मृत्यु चक्र में अपने कर्मो को स्वयं ही भुगतना है। यह शाश्वत सत्य जीवन का आधार और सृत्त्टि चक्र के अंतर्गत अपने सवयं के मानसिक उत्थान का कारक था। इसके मूल में तत्कालीन समय में अविनाशी त्वष्टा और अविनाशी स्वर तरंग की खोज महत्वपूर्ण हैए जो पृथ्वी पर जीवन की उज्पत्ति के साथ परस्पर एक दूसरे का नए जीवन के साथ अनुसरण करते हैए और जीव जगत अस्तित्व में आयाए इसे अशोक चिन्ह एवं उदयगिरी गुफाओं मे चट्टानो पर तथा सोने के सिक्को पर उकेरा गयाए एक सिक्का लंदन के संग्रहालय मे और एक बेंगलुरु के प्राचान सिक्के व्यवसायी के पास हैए इसके साथ ही अविनाशी स्वर तरंग की खोज की प्रतीक धारए भोजशाला की वाग्देवी प्रतीमाए लंदन संग्रहालय में हैए जिसका विस्तृत वर्णन वेदो में है। यह भारत की तत्कालीन वैज्ञानिक उपलब्धि के प्रमाण है। यह प्रजा के सामान्य जीवन का अंग थाए और भारत का स्वर्णिम काल।
अश्विन न्युक्लियोटाइड क्षार जोडाए जिसे प्युरीन और पायरीमिडीन कहते हैए जिनमे सिर्फ नाईट्रोजन का अंतर होता है। अश्विन डीएनए की रचना सृष्टि की प्राग्वस्था मे मौलिक ऊर्जा से हुईए जिसे यह कह कर अभिव्यक्त किया गया कि मौलिक ऊर्जाए शक्तिशाली पुरूष ने रंग बिरंगी गाडी का निर्माण कियाए और यह सृष्टि निर्माण के साथ बंदंुक की गोली के समान क्षरित हुआ।
जीव जगत अश्विन डीएनए के दो न्युक्लियोटाईड क्षार प्युरीन और पायरीमिडीन को सराण्यु और संजना नाम दिया गयाए ये सक्रिय होकर अपने ही समान प्रतिकृति निर्मित करते हैए जिनसे ऐक्स.ऐक्स मादा और ऐक्स.वॉय नर गुण.सूत्र बनते हैए जिसे कहा गया कि सराण्यु ने दो जुडॅवां को जन्म दिया।
सराण्यु मादा गुंण.सूत्र हैए जो गर्भ मे जीव को पोषित करती हैए और जगत.जननी अविनाशी शब्द.स्वर तरंग बीज धारण करती हैए और जीव इसे वाणि द्वारा अभिव्यक्त करता है कि मै मॉ के अंतनिर्हित बल और कृपालु पिता के मन से बोलता हूँ जगत के दो अभिभावक हैए जिन्होने जीव जगत का निर्माण अविनाशी सनातन जीवन के साथ किया। ;ÿहण्10.184.1ए 2ए 3द्ध
यह अभिव्यक्त किया गया है कि डीण्एनण्एण् गर्भ में भ्रूण को आकार प्रदान करता है औैर प्रजापति जीवन को धारा प्रदान करता हैए जिसे विष्णु भोजन द्वारा गर्भ में पोषित करता है। यह तीन भ्रूण को पैतृकरूप से प्राप्त होते हैं।
तदनुसार सरस्वती . वाक्.विचार विभाजित हो रहे डीएनए के मन संकेत को उत्प्रेरित करती हैए जो संयुक्त होकर भ्रूण के भाग्य को अंकुरित करते हैं। तद्नुसार अश्विन. डीएनए के न्यूक्लियोटाइड जोड़ें जो एक दूसरे के पूरक हैंए ये पल्लवित होकर भ्रूण को कमल के समान प्रस्पफुटित करते हैं।
इसे अश्विन के दो क्षार स्वर्ण के समान शोधित कर पूर्ण आकार प्रदान करतम है। उत्तम संतान के लिएए दस माह में अंकुरित इस बीज का यहाँ आह्नान किया गया है।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds