जिनपिंग झुके, भारत ने मनवाई बात; एलएसी पर पीछे हटेंगी दोनों देशो की सेनाएं,2020 से पहले की स्थिति कायम होगी, समझौते में रूस का अहम रोल
नई दिल्ली,22 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। भारत और चीन के बीच पिछले चार सालो से जारी तनाव को ख़त्म करने की दिशा में दोनों देश सहमत हो गए है। एलए सी पर दोनों देश अपनी सेनाओ को वर्ष 2020 से पहले की स्थिति में ले जाने को तैयार हो गए है। इस समझौते को पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित मुलाकात से पहले पूर्वी लद्दाख में जारी सैन्य गतिरोध के समाधान की दिशा में एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है। समझौते की जानकारी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खुद दी। उन्होंने कहा कि भारत और चीन LAC पर पैट्रोलिंग के मामले में वापस 2020 से पहले वाली स्थिति पर पहुंच जाएंगे। इस समझौते से दोनों देशों के बीच बीते 4 साल से जो तनाव जारी था वो कहीं ना कहीं कम हो जाएगा।
जानकार मानते हैं दोनों देशों के बीच समझौता कराने में रूस का अहम रोल रहा है। इसे ऐसे समझते हैं। मौजूदा स्थिति देखिए. कनाडा और भारत के बीच तनाव अपने चरम पर है। कनाडा के चार दोस्त अमेरिका, न्यूजीलैंड, यूके और ऑस्ट्रेलिया उसके साथ खड़े हैं। ये सभी देश Five Eyes के सदस्य हैं। दूसरी ओर दूसरा समूह है ब्रिक्स। कजान में इसके समिट से पुतिन अमेरिका और दुनिया को मैसेज देना चाहते हैं। पुतिन दुनिया को ये बताना चाहते हैं अमेरिका ने कनाडा का साथ देकर ये बता दिया कि वो किसके ज्यादा करीब है। दूसरी ओर रूस है जो हर मुश्किल में भारत के साथ खड़ा है। वो नहीं चाहता था कि उसके दो दोस्त आपस में लड़ें।
रूस ने भारत-चीन को एक टेबल पर लाया?
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के मुताबिक, हाल में भारत और चीन के मंत्रियों के बीच कई दौर की बैठक हुई। मिस्री ने कहा, भारत और चीन के राजनयिक एवं सैन्य वार्ताकार पिछले कई हफ्तों से विभिन्न मंचों पर एक-दूसरे के करीबी संपर्क में रहे हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल सितंबर में रूस गए थे। उस वक्त चीन के NSA और विदेश मंत्री भी वहां पर थे। अजित डोभाल की चीनी विदेश मंत्री वांग से मुलाकात भी हुई थी। डोभाल और वांग यी ने रूसी शहर सेंट पीटर्सबर्ग में विवाद का जल्द समाधान तलाशने पर ध्यान केंद्रित करते हुए बातचीत की थी। दोनों पक्ष पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले बिंदुओं से पूर्ण सैन्य वापसी के लिए तत्काल प्रयास करने पर सहमत हुए थे।
बैठक में डोभाल ने वांग से कहा था कि द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति एवं स्थिरता और एलएसी का सम्मान आवश्यक है। तब रूस की मीडिया में इसपर खूब चर्चा हुई थी कि रूस ने भारत और चीन को एक टेबल पर लाने की कोशिश की।
रूस का स्वार्थ
रूस का ऐसा करने के पीछे उसका बहुत बड़ा स्वार्थ भी है। पुतिन नहीं चाहते हैं कि भारत और चीन आपस में लड़ें। दोनों के बीच अगर तनाव कायम रहता है तो इससे ब्रिक्स कमजोर होगा। भारत और चीन के बीच तनाव से रूस को ये नुकसान होगा कि भारत की पश्चिमी देशों से करीबी और बढ़ेगी। रूस के लिए ये बहुत जरूरी था कि ब्रिक्स समिट में पीएम मोदी, जिनपिंग और दोनों के साथ व्लादिमीर पुतिन फोटो खिंचवाएं. दुनिया की मीडिया इसी तस्वीर का इंतजार कर रही होगी।
लेकिन जंग की बातें क्यों कर रहा चीन?
LAC पर एक ओर शांति की बात हो रही है वहीं, दूसरी ओर शी जिनपिंग जंग की बातें क्यों कर रहे हैं। हाल ही में उनका एक वीडियो सामने आया था जिसमें वो अपने सैनिकों से कह रहे हैं कि जंग के लिए तैयार हो जाओ। जिनपिंग ऐसा बयान पिछले 3 साल से दे रहे हैं। दरअसल, आने वाले सालों में चीन के लिए सबसे बड़ा फोकस ताइवान रहने वाला है। अमेरिका का ध्यान रूस यूक्रेन जंग और इजराइल-ईरान के तनाव पर है। अगर ऐसे में चीन और ताइवान के बीच जंग हो जाती है तो दिक्कतें अमेरिका के लिए बढ़ जाएंगी। इसे देखते हुए चीन भी जानता है कि भारत के साथ समझौता करना अच्छा फैसला है। इससे रूस भी खुश हो जाएगा।