December 24, 2024

बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाए

babool ka ped

-डॉ देवकीनंदन पचौरी

यह कैसी विडंबना है कि एक ही जाति धर्म के लोग उसी धर्म के दूसरे लोगों की हत्या कर रहे हैं। इसी वर्ष 31 जनवरी को पेशावर की एक मस्जिद में मानव बम से विस्फोट किया गया जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए और 225 घायल हुए। विस्फोट इतना तेज था कि मस्जिद की छत उड़ गई और इमाम भी मारे गए। यह मानव के द्वारा लाई गई त्रासदी थी। एक प्राकृतिक त्रासदी होती है जिस के कारण हजारों लोगों की जान जाती है जैसे अभी टर्की में भूकंप आया जिससे लगभग 4000 लोग मारे गए और सैकड़ों घर टूट गए। पाकिस्तान में लगभग प्रत्येक दिन कहीं ना कहीं विस्फोट होता ही है। पिछले 22 वर्षों में छोटे-बड़े 16000 विस्फोट हुए जिसमें 29000 पाकिस्तानी मारे गए। अर्थात लगभग चार पाकिस्तानी रोज के हिसाब से मारे गए सन 22 में ही 365 हमले हुए जिसमें 600 लोगों की मौत हुई।

पेशावर में मस्जिद पुलिस कॉलोनी में थी अतः मरने वालों में अधिकतर पुलिस के जवान और उनके परिवार वाले थे। यही कारण है कि दूसरे दिन पुलिस वालों ने सेना के खिलाफ मोर्चा निकाला जबकि विस्फोट की जिम्मेदारी तालिबान ने ली थी और इमरान खान जब प्रधानमंत्री थे तो बाजवा की सेना ने तालिबानी लोगों का समर्थन किया था। इसीलिए पुलिस वालों ने सेना के खिलाफ मोर्चे में नारे भी लगाए और उन्होंने आईएसआई को भी जिम्मेदार ठहराया और बताया कि आई एस आई कसाई है। उन्हें यह बात अब समझ में आई है। भारत तो कब से आईएसआई को दहशतगर्दी के लिए जिम्मेदार मानता आया है। आतंकवादियों ने खुदा के घर को भी नहीं छोड़ा क्योंकि किसी मस्जिद में नहीं दो-तीन दिन बाद कराची के एक मस्जिद में विस्फोट हुआ यद्यपि उसमें थोड़े से लोग ही मारे गए।

लोगों में यह कट्टरता आती कहां से है? इसके कई कारण है एक प्रमुख कारण धार्मिक पुस्तक जिसमें ऐसी बातें लिखी गई है जो कट्टरता फैलाती है। कुरान मजीद के सूरा 9 आयत 5 मैं साफ लिखा है कि जो तुम्हारे इस्लाम धर्म को ना माने वह काफिर है और काफ़िर का कत्ल करो इसमें कोई पाप नहीं लगता है। दूसरा कारण है इनकी कुर्बानी वाला त्यौहार अर्थात बकरीद। इस त्यौहार पर बकरे हलाल किए जाते हैं जिसमें पहले आदि का दर्द एक ओर से फिर दूसरी ओर से काटी जाती है और फिर उसे तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता है जिस से खून बहता रहता है और जानवर तड़प तड़प कर मर जाता है। यह मंजर इनके घर में बच्चा जब से होश संभालता है तभी से देखता है और साल दर साल यही देखते देखते उसमें क्रूरता कठोरता निर्दयता निडरता के भाव आ जाते हैं। फिर खानपान आचार विचार घर के संस्कार इनका भी प्रभाव पड़ता है। मांसाहारी भोजन तामसी भोजन कहलाता है इससे क्रोध कामवासना आदि के भाव तेजी से पनपते हैं। हिंदू धर्म मुख्यतः जैन धर्म सनातन धर्म आदि में तो प्याज और लहसुन खाना भी वर्जित है क्योंकि यह भी तामसी भोजन में गिने जाते हैं।

हिंदू धर्म में बचपन से ही बच्चों में दया प्रेम सभी धर्मों का आदर करना सबसे मिल जुल कर रहना सिखाया जाता है। हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखते हैं जीव हत्या से तो इतनी दूर रहते हैं चीटियां तक को मारना भी पाप समझते हैं। हमारे यहां रही सही कसर अहिंसा परमो धर्मा मैं पूरी कर दी है यह अच्छी बात है किंतु इसे आधा ही बोला जाता है पूरा इस प्रकार है-

“अहिंसा परमो धर्मा धर्म हिंसा तथैव च”

अर्थात किसी को कष्ट नहीं देना अत्याचार नहीं करना यही परम धर्म है किंतु यदि तुम्हारे धर्म पर आंच आती है तो प्रतिकार करो फिर सामने वाले से युद्ध करना उस पर वार करना और उसे मार डालने तक में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। यही परम धर्म है। आगे से किसी को छेड़ो मत और यदि तुम्हें कोई छेड़े तो उसे छोड़ो मत।

हम किसी दूसरे धर्म का निरादर नहीं कर रहे हैं जबकि वह हमें काफिर समझते हैं। हमारे उनके रहन-सहन आचार विचार संस्कृति संस्कार एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत है। हम दोनों धर्म के लोगों का साथ साथ रहना रहीम दास जी के दोहे से समझा जा सकता है

कहो रहीम कैसे निभे केर बेर को संग।
वह झूमें रस आपने उनके फाटत अंग।।

इसका अर्थ यह है कि बेरी का पेड़ कांटेदार होता है इसकी कटीली झाड़ियां होती हैं जबकि केले के पत्ते मुलायम चिकने और सुडौल होते हैं जब हवा चलती है और दोनों के पेड़ पास पास में हो तो बेरी के पेड़ की कटीली झाड़ियां जब केले के पत्तों से टकराती हैं तो इनके कांटे पत्तों को फाड़ देते हैं इसलिए रहीम दास जी कहते हैं इन दोनों पेड़ों का साथ साथ रहना उचित नहीं है।

आज पाकिस्तान की जो हालत है उसके लिए पाकिस्तान खुद जिम्मेदार है। जमीन की अर्थव्यवस्था अच्छी थी तब इन्होंने कोई उद्योग धंधा विकसित नहीं किया और ज्यादातर पैसा अमेरिका से हथियार खरीदने और फौजियों की साज सज्जा मैं खर्च कर दिया। यदि एक सुई की भी जरूरत पड़ती थी तो उसे अमेरिका से ही मंगाया जाता था और इनका उद्देश्य दहशतगर्दी को बढ़ावा देना और भारत ही नहीं अन्य देशों जैसे फ्रांस जर्मनी आदि मैं भी इन्होंने आतंकी घटनाएं करवाई। आज कोई भी देश उनकी सहायता करने को तैयार नहीं है एक तो वहां पानी का सैलाब अर्थात/ बाढ़ ने पाकिस्तान की हालत खराब कर दी और फिर अर्थव्यवस्था इतनी खराब हो गई है कि महंगाई आसमान छू रही है। पाकिस्तानी एक-एक दाने को तरस रहे हैं। ना आटा है ना साग सब्जियां न मांस ना अंडे, और है भी तो इतने महंगे कि आम पाकिस्तानी की पहुंच से दूर हैं। गैस नहीं पेट्रोल नहीं डीजल नहीं बिजली नहीं। हालत अत्यंत चिंताजनक है और पाकिस्तान दिनोंदिन कंगाली के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। यही कारण है कि आज

भूख से बिलखते पाकिस्तानी बोल रहे हैं रोते-रोते।
काश हिंदुस्तान के टुकड़े ना हुए होते।

उन्होंने हिंदुओं पर इतने अत्याचार किए हैं के आम हिंदुस्तानी हिंदू के दिल में इनके प्रति नफरत भरी हुई है क्योंकि पाकिस्तान की नींव ही नफरत पर बनी है पर इनकी हालत दया भी आती है। हम 90% हिंदुओं के दिल दया करुणा प्रेम से भरे हुए होते हैं जबकि 10% कुटिल कठोर शुरू हो सकते हैं इनका हमसे उल्टा है 10% या उससे भी कम दया या करुणा वाले लोग होते हैं। इसीलिए वहां की सियासत हिंदुस्तान को को गालियां देने और दिल्ली पर पाकिस्तान का झंडा फहराने के सपने दिखाने रहने पर आधारित है वहां किसी को अपनी पार्टी को जीत दिलाना है और लंबे समय तक सियासत में बने रहना है तो हिंदुस्तानियों को कोसते रहो । हिंदुस्तान में जहां तक गंगा जमुनी तहजीब की बात है तो गंगा जमुना भी प्रयागराज में संगम पर जाकर मिलकर एक हो जाती हैं किंतु परस्पर विपरीत आचार विचार वाले 2 धर्म के लोग कभी नहीं मिलेंगे।

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी है हम वतन हैं हिंदुस्ता हमारा मोहम्मद इकबाल का यह गीत स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर गाए जाने के लिए ही है अन्यथा दिल को बहलाने के लिए ग़ालिब ख्याल अच्छा है।

आमीन

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