एक संत की होली
एक वह भी होली थी एक यह भी होली है।
अरबों खरबों के संत के पास एक जेल की खोली है।।
एक होली पर शहर में संत ने ऐसा उत्पात मचाया।
होली खेलने के बहाने हजारों लीटर पानी व्यर्थ बहाया ।।
पानी की किल्लत के चलते जब लोगों ने एतराज उठाया।
अपनी दबंगई से संत ने लोगों को धमकाया।।
ऊपर वाले अजब है तेरी लीला गजब है तेरी माया।
सुना है इस होली पर जेल में संत दो दिन से नहीं नहाया।।
भोग को तपस्या समझ बैठे अफीम बूटी तक खाई।
तृष्णा का कोई अंत नहीं यह बात समझ नहीं आई।।
लाखों लोगों के इष्ट देव करनी का फल पाओगे।
इस लोक में तुमको चैन नहीं उस लोक में पछताओगे ।।
हरि ओम जपते जपते क्या कर बैठे अज्ञानl
जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान।।
यह है गीता का ज्ञान यह है गीता का ज्ञान
इन संतों की काली करतूतों को समझो चतुर सुजान।
भोग विलास में लिप्त संत क्या करेंगे तुम्हारा कल्या न ।।
कुछ समझे श्रीमान?
–डा डीएन पचौरी