November 22, 2024

National Emblem : ऐकेश्वरवाद का जनक भारत का गौरवशाली अशोक चिन्ह

आज़ादी के अमृत महोत्सव पर विशेष

डॉ सीपी त्रिवेदी

भारत का गौरवशाली अतीत भारत का आधार है, हमारी विरासत का प्रतीक हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है। जिसे हमने सम्राट अशोक से विरासत में प्राप्त किया, यह चिन्ह मौर्य कालीन है, जब भारत पर मौर्य साम्राज्य का एक छत्र शासन था। इसे ही सम्राट अशोक ने सारनाथ, जहांॅ महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उद्बोधन दिया था, उस स्थान पर उनकी शिक्षा को स्थायी बनाने के लिए इस अद्भूत चिन्ह को स्थापित किया। जिसका मूल वेदो में है। इस चिन्ह में सम्पूर्ण सृष्टि का सार समाहित है, जो सम्राट अशोक के गौरवशाली साम्राज्य का आधार था, कि सृष्टि एक तंत्र के अंतर्गत क्रियाशील है, जिसमे प्रकृति से सामंजस्य और नैतिक कर्तव्यों का पालन मनुष्य का नैतिक कत्र्तव्य है।

स्तम्भ मौलिक ऊर्जा

जिसे अशोक स्तम्भ पर चिन्ह मे वैदिक वैज्ञानिक ज्ञान को उकेरा गया है। स्तम्भ यह अभिव्यक्त करता है कि हम उस अग्नि मौलिक ऊर्जा का आहृान करते है, जो इस सृष्टि यज्ञ का कर्ता धर्ता और रत्नो की खान है ऋग्वेद 1-1-1 जो सृष्टि को स्तम्भ के समान धारण करता है।
चिन्ह में चार शेर आगे पीछे-पीछे यह प्रदर्शित करते है कि मौलिक ऊर्जा चारो तरफ सर्वत्र व्याप्त और सर्वशक्मिान है, पुरुष सूक्त ऋग्वेद 10-90

सृष्टि का आधार परमाणु के चार घटक

चार शेर यह भी प्रदर्शित करते है कि सृष्टि का आधार परमाणु के चार घटक तीन सहआण्विक कण और चैथी ऊर्जा है, जिसे ऋग्वेद 4-58-1 मे यह कहकर अभिव्यक्त किया कि चार सिंग वाली भैंस अवतरित हुई, जो सृष्टि को दूध की सतत् घारा के समान पोषित करते है।
चार शेर यह प्रतिपादित करते है कि सृष्टि का आधार परमाणु के चार घटक, तीन सहआण्विक कण और ऊर्जा है। जिसे ऋग्वेद 4-58-1, 2 में यह कह कर अभिव्यक्त किया कि चार सिंग वाली भैंस अवतरित हूई, जो सृष्टि को निरंतर दूध की सतत् धारा के समान निरंतर पोषित करती है। तीन मूलभूत कण और ऊर्जा को हिग्स फिल्ड आकाश से भार प्राप्त हुआ और ये श्रंखला बद्ध रुप में सृष्टि को कमल के फुल के समान विस्तारित करते है।

सृष्टि का सार

ऋग्वेद 4-58 मे यह स्पष्ट किया गया है कि सृष्टि का मूल स्त्रोत आकाशिय समुद्र है। जिसे यह कह कर अभिव्यक्त किया गया है कि आकाशिय समुद्र से मधु युक्त बयार की वर्षा हो रही है। जो अमृत का स्रोत है। यह उस रहस्यमयी घी नाम है, परन्तु देवो की जिह्नाा सत्य ही अमृत का स्रोत है ऋग्वेद 3-58-1
सूर्य से क्षरित हो रहे सृष्टि के आधारभूत कणो को अमृत कहते हुए, इसे घी कहा गया है, कि जिस प्रकार दूध का सार घी है, उसी प्रकार सृष्टि का सार ये आधारभूत कण है। परन्तु देवो की जिह्ना सत्य ही अमृत का स्रोत है। इसके माध्यम से परमाणुओं मे उत्पन्न ऊर्जा की तरफ संकेत किया गया है। परमाणु मे प्रोटॉन और न्यूट्ान मिलकर केन्द्रक का निर्माण करते है, इनके मध्य सुक्ष्म आकाशिय स्थान होता है, जिसके कारण आधार भूत कणों को भार प्राप्त हुआ और सृष्टि अस्तित्व मे आई। इसलिए कहा गया कि देवो की जिह्नाा सत्य ही अमृत का स्रोत है। इसे अशोक चिन्ह मे शेरो की बाहर निकलती हुई देवो की जिह्नाा द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।

चार सिंग वाली भैस परमाणु के चार घटक

अब हम उस रहस्यमयी घी का वर्णन करते है, जिसने इस सृष्टि यज्ञ को धारण कर रखा है। अतः है ब्राह्मण- विद्वान सुनो, हम जिसकी प्रशंसा कर रहे है, कि चार सिंग वाली भैस अवतरित हुई है। इससे तात्पर्य है परमाणु के चार घटक, तीन सहआण्विक कण और ऊर्जा, जिन्हे परमाणु के केन्द्र में उपस्थित केन्द्रक के प्रोटॉन और न्युट्ान के मध्य आकाशिय स्थान होता है, जो मूलभूत कणो को श्रंखला में बांधता है, और ग्रह-नक्षत्र बने, इसे मूलभूत कण देवो की जिह्ना कहा गया, जो सत्य ही अमृत का स्रोत है। इसे चार शेर और शेरो की बाहर निकलती जिद्दा जीभ के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।

चार सिंग- अश्विन-डी.एन.ए. के चार क्षार

उसके चार सिंग है, तीन पावॅं उसे धारण करते है, उसके दो सिर है तथा सात हाथ है। तीन बंधो से बंधा हुआ वृषभ हुंकार करते हुए कुलाचें भर रहा है, कि ‘शक्तिशाली महान देव मरण धर्मा जीवो मे प्रविष्ट हुआ है।3ऋग्वेद 4-58-3
जीव जगत मे डी.एन.ए. समान रूप से जीवन का आधार है। डी.एन.ए. मे चार क्षार होते है, जो जीव जगत का आधार है।
डी आक्सि रिबोस न्यूक्लिक एसिड का निर्माण होता है, जिसमे मुख्य चार क्षार होते है, एडेनीन, ग्वानीन, थायमीन और सायटोसीन डी. एन. ए. यह सृष्टि मे जीव जगत का आधार है। चार क्षार को चार सिंग के रूपक के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है तथा डी एन ए ट्ीपलेट कोड के द्वारा कार्य करता है, तीन क्षार के इस संकेत ट्ीपलेट कोड को तीन पावॅ, और डीएनए मे दो पट्टीयॉ होती है, इन्हे दो सिर, तथा दो ट्ीपलेट न्यूक्लियोटाइड जोडो के मघ्य उपस्थित सात हायड्ोजन बॉण्ड (2$2$3) को सात हाथ कहा गया है। डी एन ए की क्रिया विधि हायड्ोजन ट्ीपल बॉण्ड के द्वारा नियंत्रित होती है। इसे यह कह कर अभिव्यक्त किया गया है कि तीन बंधो से बंधा हुआ डी एन ए शक्तिशाली वृषभ के समान मरण धर्मा जीवो मे कुलाचे भर रहा है। अर्थात जीवो मे व्याप्त हो रहा है। इसे अशोक चिन्ह में वृषभ द्वारा दर्शाया गया है।

जीव जगत का आधार त्वष्टा-अश्विन-डीएनए के चार क्षार

इसी सूक्त मे यह भी कहा गया कि जीव जगत का आधार अश्विन-त्वष्टा डीएनए के चार क्षार है, जो सृष्टि को कमल के फुल के समान आकार प्रदान करते है।
इसे चिन्ह मे आधार पर खिलती हुई कमल की पंंखुडियों के द्वारा दर्शाया गया है।
यह अभिव्यक्त किया गया है कि डीएनए, गर्भ मे भ्रुण को आकार प्रदान करता है, औैर अविनाशी प्रजापति जीवन की धरा प्रदान करता है, जिसे विष्णु भोजन द्वारा गर्भ मे पोषित करता है। यह तीन भ्रुण को पैतृक रूप से प्राप्त होते है।तदनुसार सरस्वती – वाक्-विचार विभाजित हो रहे डीएनए के मन संकेत को उत्प्रेरित करती है।जो संयुक्त होकर भ्रुण को अंकुरित करते है। और अश्विन – डीएनए के न्यूक्लियोटाइड जोडे, जो एक दूसरे के पूरक है। ये पल्लवित होकर भ्रुण को कमल के समान प्रफुटित करते है ऋग्वेद 10-184-1,2,3 इसे अशोक चिन्ह मे आधार पर ख्ीिलते हुए कमल के फुल द्वारा दर्शाया गया है।
सृष्टि के आधार भूत तीन कण इलेक्ट्ान, प्रोटॉन, न्यूट्ान और परमाणु मे उत्पन्न ऊर्जा की तरफ संकेत करते है, जिनके द्वारा सृष्टि के पांॅच महाभूत तत्व उत्पन्न हुऐं। इसे शेर के चार पैर और खुरो पर गायत्री के तीन सहआण्विक कण, पंचमहाभूत और अश्विन त्वष्टा के दो क्षार को अभिव्यक्त किया गया है।
अविनाशी स्वर-शब्द तरंग ब्रह्याण्ड से अश्विन-डीएनए में जीवन संचार कर धारण करती है, और जीव ऊर्जा अश्व के समान गति करती है। इसे अशोक चिन्ह में आकाशिय तरंग द्वारा अभ्सिव्यक्त किया गया है, कि वृषभ, अश्विन-डीएनए जीवन का यंत्र-पात्र है और स्वर-शब्द तरंग उसे धारण करती है, और आकाश से मौलिक ऊर्जा अश्व के समान अवतरित होती है।

गायत्री के तीन बंध

गायत्री परमाण्ु के तीन बंध, इलेक्ट्ान, प्रोटॉन और प्युट्ान,अनवरत बहुतायत से सृष्टि को प्रकाशित कर रहे है, जिसका इन्द्र -विद्युत वत्स के समान अनुसरण करता है, और गायत्री के सहआण्विक कण को स्थायित्व मिलता है, जो सृष्टि को दूध की सतत् धारा के समान पोष्ति करता है। अथर्ववेद 9-10-3 और 8-10-5

मौलिक ऊर्जा का द्विस्वभाव

मौलिक ऊर्जा अपने द्विस्वभाव ध्वनि और प्रकाश के अंतर्गत क्रियाश्ील है, जो एक दूसरे के पूरक और आण्विक स्तर पर जुडे हुए है। इसे परस्पर जुडे हुए शेर द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।
ध्वनि के सात स्वर प्रकाश की सात दृश्य किरणो के समान विपरीत गुणो वाली अनुद्र्धेय तंरंगे है, जिसका स्पेक्ट्म प्रकाश के स्पेक्ट्म के समान ही परन्तु विपरीत गुण वाला है, जो एक दूसरे के पूरक है, यह शब्द, विचार और क्रिया के रुप मे विकसीत हुए है।

समने से द्दश्टव्य शेर के तीन चेहरे, सृष्टि का सार तीन रुपो मे

सृष्टि का सार घी तीन रूपो मे है, जो सृष्टि के परोक्ष मे है। देवो ने पणियों के द्वारा छिपाई हुई गाय को उसमे पाया। इन्द्र-विद्युत ने एक रूप को उत्पन्न किया, जो इसे विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के द्वारा नियंत्रित करता है। सूर्य ने इसका दूसरा रूप उत्पन्न किया, जो सुष्टि को मुलभूत कण और ऊर्जा द्वारा निरंतर पोषित करते है। और तीसरा उन्होने स्वयं की शक्ति वीणा से उत्पन्न किया। अविनाशी शब्द-स्वर स्पंदन और अविनाशी त्वष्टा-अश्विन-डीएनए जीव जगत का आधार है। और अविनाशी शब्द-स्वर स्पंदन, अविनाशी त्वष्टा-अश्विन-डीएनए का पीढी दर पीढी नए जन्म के साथ अनुसरण करते है, जिससे जीव जगत निरंतर फैल रहा है। 4अशोक चिन्ह मे इसे सामने से द्दश्टव्य शेर के तीन चेहरो द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।

उष्मा के ऊर्जा सम्बंधी सिद्धांत

शेरो के माध्यम से यह अभिव्यक्त किया गया है कि सृष्टि का विकास एक मौलिक ऊर्जा से हुआ, जो उष्मा के ऊर्जा सम्बंधी सिद्धांतो के अंतर्गत क्रियाशील है, जिसका उल्लेख पुरुष सूक्त ऋग्वेद 10-90-1 से 4 में अभिव्यक्त किया गया है, कि मौलिक ऊर्जा के हजारों सिर, हजारों आंखें, हजारो पावं है के द्वारा यह अभ्सिव्यक्त किया गया कि मौलिक ऊर्जा सर्वव्याप्त है, वह भूमि और ब्रह्याण्ड तें चारो तरफ आवृत कर मनुष्य शरीर के दस अंगुल वाले स्थान पेल्विक गर्डल के मध्य का खाली स्थान जो सर्पाकार कुण्डलिनी का स्थान है, जिसे जाग्रत करने के लिए योगी तपस्या करते है ऋग्वेद 10-90-1
यह पुरुष मौलिक ऊर्जा ही सब कुछ है, जो कुछ भी था है और भविष्य मे भी होगा वह मौनिक ऊर्जा ही है वह, सर्वव्यापी सनातन है, ऋग्वेद 10-90-2।
चार-शेर एक गोलाकार आधार पर इसप्रकार स्थापित किऐं गएंे है कि सामने से किसी भी तरफ से भी देखे शेर के तीन मुहंॅ ही दिखाई देते है और चार पैर। जिससे तात्पर्य है कि मौलिक ऊर्जा, जिसकी पुरुष-सूक्त ऋग्वेद 10-90-1 मे पुरुष-रुप मे कल्पना की गई है, वह, सर्वव्यापी सनातन है, उसका एक भाग ही पुनः पुनः ऊर्जा के रुपान्तरण द्वारा उत्पन्न होता है ऋग्वेद 10-90-3, उसके चार अंश, जिसे चार पैर के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है, इनमे से द्दश्य जगत उसका सिर्फ एक भाग है, जो ऊर्जा रुपान्तरण द्वारा जीव और अजीव के रुप मे फैल रहा है। शेष तीन चैथाई भाग अद्दश्य अनन्त ब्रह्याण्ड का लोक है पुरुष सूक्त ऋग्वेद 10-90-3,4

आकाशिय स्थान हिग्स फिल्ड ईश्वरीय कण जिसे चक्र मे मध्य स्थान द्वारा अभिव्यक्त किया गया है कि आकाश से आकाश की उत्पत्ति हुई, जो सबका स्वामी हुआ और ग्रह नक्षत्र बने ऋग्वेद 10-90-5।

जिसे गोलाकार आधार पर प्रदर्शित चार चक्र और चार पशु द्वारा दर्शाया गया है, यह प्रदर्शित करते है कि यह द्दश्य जगत जो दिखाई दे रहा है, यह मौलिक ऊर्जा का सिर्फ एक अंश है, जिसे पुरुष सूक्त में यह कह कर अभिव्यक्त किया गया कि उसी से अश्व तथा उपर और नीचे दांत वाले पशु उत्पन्न हुए है.ऋग्वेद 10-90-10

शेरो के चार पैर और गोलाकार आधार पर चार पशु, शेर, हाथी, अश्व और वृषभ, उनके मध्य चार 24 आरे वाले चक्र है। जो यह प्रदर्शित करते है कि मौलिक ऊर्जा अपने द्विस्वभाव अविनाशी स्वर-शब्द फोनॉन और प्रकाश के सूक्ष्म कण फोटॉन के अंतर्गत क्रियाशील है, परमाणु के चार घटक और अश्विन-डीएनए के चार क्षार, चार पैर के समान उसका आधार है।

जीव का जीवन तीन अविताशी तत्वो के संंयोग का परिणाम है, जो जीव को अनुवांशिक रुप मे गर्भ मे प्राप्त होते है। हिग्स फिल्ड आकाश, जिससे मूल भूत कणो को भार प्राप्त हुआ, गर्भ मे प्राप्त निषेचित डीएनए जिसे फोनोन वेव उत्प्रेरित करती है तथा भोजन की चया-पचय ऊर्जा जो भ्रूण को पोषित करती है, तीनो अविनाशी है, जो गर्भ मे अनुवांशिक प्राप्त होते है।

जीव एक विपरीत स्वभाव वाली स्वर ध्वनि तरंग द्वारा ब्रह्माण्ड से जुडा हुआ है, यह तरंग अपने विपरीत अनुद्र्धेय तरंग द्वारा जीव को संचालित और नियंत्रित करती है, इसकी गति दिखाई देती है, रूप नही। यह अविनाशी स्वर-शब्द तरंग ब्रह्याण्ड से जीव को धारण कर पोषण करती है, इसे अशोक चिन्ह मे अश्व और वृषभ के उपर प्रकाश तरंग द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।

परमाणु मे केन्द्रक के मध्य आकाशिय स्थान मे उपस्थित मौलिक ऊर्जा सबको बिना किसी आधार के जोडती है, यह जीव को विकास के पथ पर अग्रसर करती है। इसकी गति दिखाई देती है रूप नही ऋग्वेद 1-164-44

गोलाकार आधार पर शेर और हाथी

शेर मौलिक ऊर्जा का द्योतक है, जो सर्वत्र व्याप्त और सर्वशक्तिशाली है। इसकी छवि अविनाशी शब्द-स्वर तरंग स्थिर है, जो सबको धारण करती है। इसे इसे स्थिर बल, हाथी के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।
सृष्टि का विकास एक मौलिक ऊर्जा से हुआ है, जो हाथी के समान स्थिर है। मै उस अग्नि मैलिक ऊर्जा का आहृान करता हूंॅ, जो इस सृष्टि यज्ञ का कर्ता, धर्ता ओर रत्नो की खान है ऋब्वेद 1-1-1।

सृष्टि का आधार अविनाशी सूक्ष्म ध्वनि तरंग है, जो पृथ्वी पर अस्तित्व की पहचान है,जो जीवन के साथ अवतरित होती है, और जीव-अजीव, आकाश और पृथ्वी पर फैल रही है। वह चट्टानो को भी ध्वस्त कर देती है, जब पंच महाभूत अग्नि के साथ क्रिया-प्रतिक्रिया करते है।

सूर्य के गर्भ से सीधे तेजी से बहने वाले सूक्ष्म फोटॉन कण तथा सूक्ष्म फानॉन विपरीत स्वभाव के समानान्तर बल है, जो परस्पर टक्राते हुए गति करते है। विद्युत चुम्बकीय प्रकाश किरणे स्पंदन और ध्वनि के साथ गति करती है, जो दो मॉ के समान सृष्टि को पोषित करती है जैसे बछडे,।

सृष्टि की उत्पत्ति

ब्रह्माण्ड और पृथ्वी की उत्पत्ति एक बार एक ही समय हुई और एक ही समय प्रिश्नि का दूध क्षरित हुआ इसके बाद कौई उत्नन्न नही हुआ। जिसे कहा गया कि सृटि निर्माण के समय अक्षय अमृत कुम्भ छलका। यह अक्षय अमृत त्वष्टा अविनाशी डीएनए तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ जीव जगत के रुप म फैल रहा है।

एक ही बार ब्रह्माण्ड की संरचना हुई, सिर्फ एक ही बार पृथ्वी अस्तित्व में आई, और एक ही बार प्रिश्नी का दूध क्षरित हुआ, इसके बाद कभी नहीं ऋग्वेद 6-48-2 यह खगोलिय घटना कि तरफ संकेत है प्रिश्नि उस गाय का नाम है, जो हर प्रकार का भोजन देती है। यह त्वष्टा अश्विन डीएनए का नाम है, जो तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ जीव जगत का आधार और भोजन स्रोत है। सृष्टि मे जीव ही जीव का भोजन है। इसी से जीवो की भोजन श्रंखला और भोजन जाल का निर्माण हुआ है।

वैदिक काल अश्विन डीएनए के स्रोत और क्रिया विधि की विस्तृत खोज हुई, कि अश्विन डीएनए सृष्टि की प्राग्वस्था मे मौलिक ऊर्जा का अंश त्वष्टा दंेवता अस्तित्व मे आए और अश्विन डीएनए का न्युक्लियोटाईड क्षार जोडा, जिसे प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार कहा जाता है, इन्हे वैदिक मनीषियों ने सराण्यु और संजना नाम दिए दोनो एक समान है, सिर्फ इनमे नायट्ोजन का अंतर होता है। ये हवा मे विभक्त होते है, जैसे कांच मे छवि, ये खगोलिय घटना के साथ बंदुक की गोली के समान सूर्य नेबुला से क्षरित हुए और पृथ्वी पर अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण के साथ लसलसे जीवद्रव मे प्रथम जीव की उत्पत्ति हुई। अश्विन डीएनए अविनाशी है, इसे अविनाशी ध्वनि तरंग की सूक्षतम ईकाई फोनॉन, जिसने सृष्टि की प्राग्वस्था मे सुशुप्त मौलक ऊर्जा को क्रियाशील किया, उसी ने जीव द्रव के स्पंदन के साथ सूक्ष्म ध्वनि तरंग ने अश्विन डीएनए क्षार को क्रिया हेतु प्रेरित किया और प्रथम अमिनो एसिड बना 4ं.6 बिलियन वर्ष पूर्व और प्रथम जीव अस्तित्व मे आया।

मौलिक ऊर्जा का अंश त्वष्टा दंेवता अश्विन डीएनए-न्युक्लियोटाईड क्षार जोडा जिसे प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार कहा जाता है, अविनाशी है, यह तीन अविनाशी का संगम है, जिसमे जीवन की तीन अवस्थाए समाहित है। इसमे यांत्रिक स्वतः प्रेरित क्रियाओं का सम्प्रेषण और अनुवाद होता है, जिसे जीव शब्द और विचार के द्वारा समय के साथ अभिव्यक्त करता है।

त्वष्टा अविनाशी डीएनए के चार क्षार आधुनिक संदर्भ मे एडेनीन, ग्वानीन, थायमीन और सायटोसीन जीव जगत का आधार है ऋग्वेद 4-58-3, पृथ्वी पर जीवन संसार रुपी वृक्ष पर एक घोंसलें के समान है। अर्थात ज्वष्टा अविनाशी डीएनए जीवन का यंत्र है। ऋग्वेद 10-127-4 इसे गोलाकार आधार पर पशु वृषभ और अश्व के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।

अविनाशी अश्विन डीएनए का न्युक्लियोटाईड जोडा प्यूरीन और पायरीमिडीन क्षार तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ हवा मे विभाजित होते है, जैसे आईने मे छवि इनमे सिर्फ नायट्ोजन का अंतर होता है। सृष्टि निर्माण की खगोलिय घटना के साथ ये सूर्य से क्षरित हूए। इनमे स्वतः सम्प्रेषण और अनुवाद समय के साथ यांत्रिक होता है। जो विचार और क्रिया के रुप मे परिलक्षित होता है।

जीवन तीन अविनाशी का संगम है। जिसे तीन अक्षर बोलिएं के द्वारा अभ्व्यिक्त किया गया है। अक्षर जो प्रकाश से पहले है। जो इस कोशा मे दूध के द्वारा अम्त उत्पन्न करता है। और शक्तिशाली व्षभ के समान मौलिक ऊर्जा,अवतरित होती है, जो जीव जगत का आधार है।

अश्विन-डीएनए जीवन का यंत्र है, मॉ के गर्भ मे निषेचन के साथ तीन अविनाशी क्रियाशील हो जाते है और जीव को आकार प्रदान करते है, इसके साथ कोशा मे मौलिक ऊर्जा वृषभ के समान अवतरित होती है, और जीव विकास के पथ पर अग्रसर होता है। अर्थात डीएनए मौलिक ऊर्जा का वाहन है, और पृथ्वी मौलिक ऊर्जा का भ्रमण स्थान, जो जीवन के साथ अवतरित होती है, और अविनाशी अश्विन -डीएनए मे जीवन के साथ अवतरित होती है और अश्वमेघ यज्ञ के अश्व के समान जीवन यात्रा पर सृष्टि यज्ञ मे आहुति देने के लिए ताव्र गति से अग्रसर होता है, यह मृत्यु के साथ विलुप्त हो जाती है। मौलिक ऊर्जा को बलशाली अश्व और जीवन के यंत्र पात्र अश्विन-डीएनए को शक्तिशाली वृषभ के द्वारा गोलाकार आधार पर चित्रित किया गया है। एक डीएनए ही सर्वत्र फैल रहा है, इसे सिलो पर शक्तिशाली वृषभ के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है ।

वृषभ

शक्तिशाली कभी न रूकने वाला वृषभ हम्प के साथ अवतरित हुआ है। जो जीव कोशा मे दी गई आहुति को देव समूह पंच महाभूत तक पहुंचाता है और वह मुखिया होकर भ्रमण स्थान पर भ्रमण करता है।

जीव कोशा मे जीवद्रव की गति के साथ मौलिक ऊर्जा अवतरित होती है, और जीव अपने गंतव्य की तरफ तीव्र गति से अग्रसर होता है, जिसकी गति हवा के समान है, वह वृषभ के सिंग के समान चारो तरफ जीवन के साथ फैला है ऋग्वेद 1-163-11, अर्थात डीएनए से निर्मित जीव कोशा मौलिक ऊर्जा का वाहन और जीव कोशा का आधार है, परमाणु के केन्द्र मे न्युट्ान और प्रोटॉन के मध्य स्थान होता है, जिसमे मौलिक ऊर्जा सबको बांधती है और जीव कोशा कि अधिष्ठात्री होकर भ्रमण करती है। इसलिए कहा गया कि देव समूह मे वह मुखियॉं की तरह घुमता है¬ऋग्वेद 10-8-2। जीवन ऊर्जा ब्रह्याण्ड से वृषभ के समान अवतरित होती है, और जीव कोशा अश्वमेघ सज्ञ के अश्व के समान तीव्रगति से सृष्टि यज्ञ मे आहुति देने के लिए दौडती है।

गोलाकार आधार पर प्रदर्शित चार चक्र और चार पशु

सृष्टि तंत्र एक चक्र के रुप मे क्रियाशील है, मौलिक ऊर्जा से सृष्टि के घटको का निर्माण होता है, और समय के साथ विघटित होकर उसमे लय हो जाते है।
जीव का जीवन तीन अविताशी तत्वो के संंयोग का परिणाम है, जो जीव को अनुवांशिक रुप मे गर्भ मे प्राप्त होते है। हिग्स फिल्ड आकाश, जिससे मूल भूत कणो को भार प्राप्त हुआ, गर्भ मे प्राप्त निषेचित डीएनए जिसे फोनोन तरंग उत्प्रेरित करती है तथा भोजन की चया-पचय ऊर्जा जो भ्रूण को पोषित करती है, तीनो अविनाशी है, जो गर्भ मे अनुवांशिक प्राप्त होते है।

सृष्टि की उत्पत्ति

ब्रह्माण्ड और पृथ्वी की उत्पत्ति एक बार एक ही समय हुई और एक ही समय प्रिश्नि का दूध क्षरित हुआ इसके बाद कौई उत्नन्न नही हुआ। जिसे कहा गया कि सृटि निर्माण के समय अक्षय अमृत कुम्भ छलका। यह अक्षय अमृत त्वष्टा अविनाशी डीएनए तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ जीव जगत के रुप म फैल रहा है।

एक ही बार ब्रह्माण्ड की संरचना हुई, सिर्फ एक ही बार पृथ्वी अस्तित्व में आई, और एक ही बार प्रिश्नी का दूध क्षरित हुआ, इसके बाद कभी नहीं ऋग्वेद 6-48-2 यह खगोलिय घटना कि तरफ संकेत है प्रिश्नि उस गाय का नाम है, जो हर प्रकार का भोजन देती है। यह त्वष्टा अश्विन डीएनए का नाम है, जो तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ जीव जगत का आधार और भोजन स्रोत है। सृष्टि मे जीव ही जीव का भोजन है। इसी से जीवो की भोजन श्रंखला और भोजन जाल का निर्माण हुआ है।

वैदिक काल अश्विन डीएनए के स्रोत और क्रिया विधि की विस्तृत खोज हुई, कि अश्विन डीएनए सृष्टि की प्राग्वस्था मे मौलिक ऊर्जा का अंश त्वष्टा दंेवता अस्तित्व मे आए और अश्विन डीएनए का न्युक्लियोटाईड क्षार जोडा, जिसे प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार कहा जाता है, इन्हे वैदिक मनीषियों ने सराण्यु और संजना नाम दिए दोनो एक समान है, सिर्फ इनमे नायट्ोजन का अंतर होता है। ये हवा मे विभक्त होते है, जैसे कांच मे छवि, ये खगोलिय घटना के साथ बंदुक की गोली के समान सूर्य नेबुला से क्षरित हुए और पृथ्वी पर अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण के साथ लसलसे जीवद्रव मे प्रथम जीव की उत्पत्ति हुई। अश्विन डीएनए अविनाशी है, इसे अविनाशी ध्वनि तरंग की सूक्षतम ईकाई फोनॉन, जिसने सृष्टि की प्राग्वस्था मे सुशुप्त मौलक ऊर्जा को क्रियाशील किया, उसी ने जीव द्रव के स्पंदन के साथ सूक्ष्म ध्वनि तरंग ने अश्विन डीएनए क्षार को क्रिया हेतु प्रेरित किया और प्रथम अमिनो एसिड बना 4ं.6 बिलियन वर्ष पूर्व और प्रथम जीव अस्तित्व मे आया।

मौलिक ऊर्जा का अंश त्वष्टा दंेवता अश्विन डीएनए-न्युक्लियोटाईड क्षार जोडा जिसे प्युरीन और पायरीमिडीन क्षार कहा जाता है, अविनाशी है, यह तीन अविनाशी का संगम है, जिसमे जीवन की तीन अवस्थाए समाहित है। इसमे यांत्रिक स्वतः प्रेरित क्रियाओं का सम्प्रेषण और अनुवाद होता है, जिसे जीव शब्द और विचार के द्वारा समय के साथ अभिव्यक्त करता है।

त्वष्टा अविनाशी डीएनए के चार क्षार आधुनिक संदर्भ मे एडेनीन, ग्वानीन, थायमीन और सायटोसीन जीव जगत का आधार है ऋग्वेद 4-58-3, पृथ्वी पर जीवन संसार रुपी वृक्ष पर एक घोंसलें के समान है। अर्थात ज्वष्टा अविनाशी डीएनए जीवन का यंत्र है। ऋग्वेद 10-127-4 इसे गोलाकार आधार पर पशु वृषभ और अश्व के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।

अविनाशी अश्विन डीएनए का न्युक्लियोटाईड जोडा प्यूरीन और पायरीमिडीन क्षार तीन अविनाशी और जीवन की तीन अवस्था के साथ हवा मे विभाजित होते है, जैसे आईने मे छवि इनमे सिर्फ नायट्ोजन का अंतर होता है। सृष्टि निर्माण की खगोलिय घटना के साथ ये सूर्य नेंबुला से बंदुक की गोली के समान क्षरित हूए, इसे अशोक चिन्ह मे शेर के पैरो पर धारियों के द्वारा दर्शाया गया है। इनमे स्वतः सम्प्रेषण और अनुवाद समय के साथ यांत्रिक होता है। जो विचार और क्रिया के रुप मे परिलक्षित होता है।

जीवन तीन अविनाशी का संगम है। जिसे तीन अक्षर बोलिएं के द्वारा अभ्व्यिक्त किया गया है। अक्षर जो प्रकाश से पहले है। जो इस कोशा मे दूध के द्वारा अम्त उत्पन्न करता है। और शक्तिशाली व्षभ के समान मौलिक ऊर्जा,अवतरित होती है, जो जीव जगत का आधार है ऋग्वेद 7.101.1
। अविनाशी स्वर-शब्द तरंग की गति प्रकाश से पहले है, और सरस्वती स्वर-शब्द जीव को चया-पचय ऊर्जा के साथ सुनने की क्षमता प्रदान करती है ऋग्वेद 10-65-14

जीव एक विपरीत स्वभाव वाली स्वर ध्वनि तरंग द्वारा ब्रह्माण्ड से जुडा हुआ है, यह तरंग अपने विपरीत अनुद्र्धेय तरंग द्वारा जीव को संचालित और नियंत्रित करती है, इसकी गति दिखाई देती है, रूप नही। यह अविनाशी स्वर-शब्द तरंग ब्रह्याण्ड से जीव को धारण कर पोषण करती है, इसे अशोक चिन्ह मे अश्व और वृषभ के उपर प्रकाश तरंग द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।

काल चक्र

स सूर्यः पर्युरु वरांस्येन्द्रो ववृत्याद्रथ्येव चक्रा।
शब्द संकेत चक्र के द्वारा यह अभिव्यक्त किया गया कि वह मौलिक ऊर्जा सूर्य आदि को रथ के चक्र के समान चलाता और घुमाता है, इन्द्र विद्युत उसे गति प्रदान करता है। बारह आदित्य आकार है, परन्तु चक्र एक है, तीन केन्द्र आाकाश, अंंतरीक्ष, और पृथ्वी, जिसमे तीन सौ साठ आरे है, जो कभी जीर्ण नही होते। इस बारह माह और 360 दिनो के चक्र के अंतर्गत सृष्टि कार्य कर रही है, जो कभी जीर्ण नही होता। वर्ष मे 465 दिन होते है, जिसे एक अतिरिक्त माह के रूप मे जाना जाता है। इसे चक्र में 24 आरो, 24 पक्ष के द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।
पुरूष सूक्त मे मौलिक ऊर्जा से सृष्टि निर्माण का वर्णन करते हुए अंत मे सृष्टि यज्ञ तंत्र के सिद्धान्त बताए गए है।

मौलिक ऊर्जा से सृष्टि का निर्माण किस प्रकार होता है, इसे यहॉ संकेतो के द्वारा स्पष्ट किया गया है कि जब देवो- सृष्टि के आधारभूत कणो ने पुरूष रूप मौलिक ऊर्जा को बांध लिया, अर्थात जब सृष्टि के आधारभूत कण इलेक्ट्ान, प्रोटॅान एवं न्यूट्ान की परस्पर क्रिया के द्वारा परमाणु मे चुम्बकीय ऊर्जा उत्पन्न हुई, और सृष्टि का निर्माण प्रारम्भ हुआ,परमाणु मे केन्द्रक के मध्य आकाशिय स्थान मे उपस्थित मौलिक ऊर्जा सबको बिना किसी आधार के जोडती है, यह जीव को विकास के पथ पर अग्रसर करती है। इसकी गति दिखाई देती है रुप नही ऋग्वेद 1-164-44

इस सृष्टि निर्माण मे सात ग्रह, इक्कीस प्रकार की समिधा (बारह महिने, छः ऋतुए, तीन मौसम सर्दी,गर्मी और बरसात) तथा तीन स्तर आकाश, अंतरिक्ष, और पृथ्वी भाग लेते है। अर्थात सृष्टि का आधार परमाणु, समय तथा मौसम परिवर्तन है।

यज्ञ से यज्ञ की उत्पत्ति होती है, इससे तात्पर्य है कि क्रिया प्रति क्रिया से क्रिया प्रकि क्रिया उत्पन्न होती है, इस सृष्टि यज्ञ तंत्र मे देव- आधारभूत कण (इलेक्ट्ान, प्रोटॅान एवं न्यूट्ान ) प्रथम है। ये अपनी महिमा से सृष्टि के साध्य पदार्थो मे परिवर्तित होते है, और पुनः अपनी पूर्व की अवस्था मे पहुचॅते है। अर्थात सृष्टि यज्ञ तंत्र का विकास आधारभूत कणो की क्रिया प्रति क्रिया से प्रारम्भ हुआ, जिसमे देव- आधारभूत कण (इलेक्ट्ान, प्रोटॅान एवं न्यूट्ान ) पदार्थो का निर्माण करते है और विघटन के द्वारा पुनः अपनी पूर्व अवस्था मे पहुचॅते है। अर्थात जैव- भू गर्भ चक्र के अंतर्गत सृष्टि के कार्य सम्पन्न होते है। इसकी तरफ संकेत है। इसे चित्र मे चक्र के माध्यम से दर्शाया गया है।

सृष्टि के कार्य चक्रिय अभिक्रियाओं के द्वारा सम्पन्न होते है। इसे पुरूष सूक्त मे अभिव्यक्त किया गया है।
यज्ञ से यज्ञ की उत्पत्ति होती है, क्रिया प्रतिक्रिया के इस सृष्टि यज्ञ तंत्र मे देव आधारभूत कण प्रथम स्थान ग्रहण करते है, ये आधारभूत कण देव ही अपनी महिमा से अणु, परमाणु और पदार्थ मे परिवर्तित होते है और फिर अपनी पूर्व अवस्था मे पहुचते है। अर्थात भू जैव चक्र के अंतर्गत सृष्टि के कार्य सम्पन्न होते है।

स्तम्भ मौलिक ऊर्जा, एकेश्वरवाद की जनक

जिसे अशोक स्तम्भ पर चिन्ह मे वैदिक वैज्ञानिक ज्ञान को उकेरा गया है। स्तम्भ यह अभिव्यक्त करता है कि हम उस अग्नि मौलिक ऊर्जा का आहृान करते है, जो इस सृष्टि यज्ञ का कर्ता धर्ता और रत्नो की खान है ऋग्वेद 1-1-1 जो सृष्टि को स्तम्भ के समान धारण करता है। चिन्ह में चार शेर आगे पीछे-पीछे यह प्रदर्शित करते है कि मौलिक ऊर्जा चारो तरफ सर्वत्र व्याप्त और सर्वशक्मिान है, पुरुष सूक्त ऋग्वेद 10-90 इसे विश्व मे एकेश्वरवाद के रुप मे ग्रहण किया गया।
इसे उपनिषदो में ब्रह्म , बाईबल में गाडॅ परमेश्वर,कुरआन मे अल्लाह तथा जेंदा अवेस्ता मे अहुरमज्द कहा गया है।

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