May 3, 2024

Raag Ratlami Corporation Election : चुनावी चकल्लस चालू,टिकट हासिल करने की अठारह दिनों की महाभारत में उतरे चुनावी योध्दा

-तुषार कोठारी

रतलाम। आज से ठीक 38 दिन बाद शहर के लोग अपने प्रथम नागरिक को चुनने के लिए वोट डालेंगे। इसके दो दिन बाद ही पता चल जाएगा कि नगर पिता की हैसियत किसे मिलने वाली है। शहर में ढेरों ऐसे पिछडे हुए पुरुष है जो खुद को शहर का प्रथम नागरिक बनते हुए देखना चाहते है और इसलिए इस तरह के सारे पिछडे नेता टिकट पाने के लिए दौड लगा रहे है और पिछडा हुआ होने के बावजूद किसी भी कीमत पर यह दौड जीतना चाहते है।

कहने को तो मतदान के लिए 38 दिन बाकी है,लेकिन अगर चुनावी कार्यक्रम को देखा जाए,तो चुनाव के असल प्रत्याशियों का फैसला 22 जून को नामवापसी के समय पर होगा। सियासी पार्टियों में टिकट का मारामारी के चलते उम्मीदवार का फैसला बिलुकल आखरी वक्त पर हो पाता है। इस लिहाज से देखा जाए,तो जिसे टिकट मिलेगा उसे मैदान जीतने के लिए महज 21 दिन मिलेंगे। इक्कीस दिन की मेहनत में प्रथम नागरिक को पूरे पांच साल के लिए बादशाहत मिल जाएगी।

तो कुल मिलाकर प्रथम नागरिक बनने के इच्छुक नेताओं के पास टिकट की जंग जीतने के लिए अब केवल सत्रह दिन बचे है। आज का दिन भी जोड लिया जाए तो कुल अठारह दिन का वक्त टिकट की जंग जीतने के लिए है। महाभारत का युद्ध भी अठारह दिन चला था और रतलामी महापौर बनने के लिए टिकट हासिल करने की जंग भी अठारह दिनों की ही होगी।

टिकट के इस महाभारत में कई सारे योद्धा उतरे हुए है। पुरानी महाभारत में तो एक पक्ष दूसरे पक्ष के योद्धाओं से लड रहा था,लेकिन टिकट की महाभारत में तो योद्धाओं को अपने ही पक्ष वाले महारथियों से लडना है। दूसरे पक्ष के महारथी से लडने का मौका तो अठारह दिन के युद्ध की समाप्ति के बाद आएगा।

टिकट पाने की महाभारत दोनो ही पार्टियों में चलने वाली है। पंजा पार्टी पहले से कमजोर है,इसलिए उसके टिकट की महाभारत कुछ कमजोर हो सकती है। लेकिन फिर भी पंजा पार्टी के कई पिछडे नेता अपने आपको रोजाना आईने में देखकर खुद को महापौर समझ रहे है। पंजा पार्टी में पहले पद के दावेदारों के ज्यादा नाम अभी सामने नहीं आए है। लेकिन किसी समय जिला पंचायत की गद्दी सम्भाल चुके नेताजी इस दौड में उतरे हुए है। इसी तरह कुछ सालों पहले जवान पंजा पार्टी के मुखिया रह चुके कबाडे वाले नेताजी भी खुद को दावेदार घोषित कर चुके है। ये नेताजी जालीदार गोल टोपी वाले वर्ग से आते है इसलिए इन्हे लगता है कि इनके चांस ज्यादा ब्राईट है।

दूसरी तरफ फूल छाप में दावेदारों की भरमार नजर आ रही है। पिछली शहर सरकार के अध्यक्ष रहे नेताजी तो अभी कुछ वक्त पहले तक खुद को प्रथम नागरिक मानने ही लग गए थे,लेकिन इन दिनों उनका दावा पहले की तुलना में बेहद कमजोर माना जा रहा है। इसी तरह इससे भी पहले वाली शहर सरकार में अध्यक्ष रह चुके नेताजी भी टिकट की दौड में है। खदान से जुडे इन नेताजी पर हाल ही में हमला हुआ है और दो तीन दिन इन्हे अस्पताल में रहना पडा है।

फूल छाप की युवा ईकाई की बागडोर सम्हाल चुके एक पहलवान नेताजी को काली टोपी वालों से अपने सम्बन्धों का भरोसा है। पहलवान नेता खेलों से भी जुडे हुए है। इन दिनों वे फूल छाप के जिला संगठन में एक बडा पद पकडे हुए है और उन्हे पूरी उम्मीद है कि टिकट की महाभारत में वे ही विजयी होंगे।

मैरिज गार्डन और वाटर पार्क के धन्धे से जुडे एक नेताजी अभी पिछली शहर सरकार में एक वार्ड का प्रतिनिधित्व कर चुके है। उनके होटल में फूल छाप के बडे बडे नेता कभी ना कभी रुक चुके है और फूल छाप की बैठके भी वे अपने होटल में करवा चुके है। नेताजी के भरोसा है कि उनके होटल में रुक चुके फूल छाप के बडे नेता उनकी दावेदारी को अपना समर्थन दे देंगे। साथ ही उन्हे अपनी स्मार्टनेस पर भी काफी भरोसा है।

शहर के दूसरे छोर पर एक बडा मैरिज गार्डन चलाने वाले नेताजी को अपने गुरु जी पर काफी भरोसा है। बांसवाडा में आश्रम चलाने वाले उनके गुरुजी हाल ही में जूना अखाडा के महन्त बने है और फूल छाप पार्टी में उनके गुरु जी की जबर्दस्त पकड बताई जाती है।

तो इस तरह फूल छाप पार्टी में दावेदारों की तादाद ज्यादा है। दावेदारों को टिकट मिलने की उम्मीदें शेयर मार्केट की तरह घटती बढती रहती है। किसी दिन किसी की दावेदारी मजबूत हो जाती है तो अगले ही दिन कमजोर भी नजर आने लगती है। फूल छाप पार्टी के मामले में ये भी कहा जाता है कि इसका कोई भरोसा नहीं,आखिर में कोई ऐसा नाम भी सामने आ सकता है,जो पहले कभी सुना ही ना गया हो। कुल मिलाकर आने वाले अठारह दिनों तक दावेदारों की आपसी जंग जारी रहेगी। पहले पद के साथ साथ शहर के 49 और पदों की खींचतान भी इसी दौरान देखने को मिलेगी। इन 49 वार्डो में भी अनारक्षित वार्डों की टिकट की जंग बेहद रोचक रहने वाली है। सियासत की समझ रखने वाले ही नहीं बल्कि सियासत को नहीं समझने वालों के लिए भी आने वाले चालीस दिन मजेदार साबित होने वाले है।

गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा……

झाबुआ वाले पुराने नेताजी किसी जमाने में रतलाम की पंजा पार्टी के माई बाप हुआ करते थे। नेताजी झाबुआ से बिन्दास जीतकर आते थे और पंजा पार्टी के रतलामी नेता उनकी जी हुजूरी करते थे। रतलामी नेताओं को पता था कि उनकी किस्मत झाबुआ वाले साहब के ही हाथों में है। लेकिन अब वो जमाना गुजर गया। पहले वे लगातार कई सालों तक रतलाम झाबुआ के मालिक हुआ करते थे,लेकिन अब वे झाबुआ जिले की एक सीट के माननीय बनकर रह गए है। नतीजा ये है कि रतलामी पंजा पार्टी वालों ने भी उन्हे भाव देना कम कर दिया है। ये अलग बात है कि साहब के सुपुत्र इन दिनों युवा पंजा पार्टी की कमान सम्हाले हुए है।

झाबुआ वाले साहब की इतनी सारी बातें क्यों? क्योंकि झाबुआ वाले साहब पिछले दिनों रतलाम आए। पंजा पार्टी के नेता कह रहे है कि अब इनका रतलाम से क्या लेना देना? अब ये ना तो रतलाम झाबुआ वाली सीट के मालिक है और ना ही पंजा पार्टी ने इन्हे रतलाम की कोई जिम्मेदारी दी है। इन्हे अपना जिला देखना चाहिए। लेकिन बरसों का आदत जल्दी छूटती नहीं। झाबुआ वाले साहब को रतलाम वालों से चापलूसी कराने का चस्का बरसों पुराना है। इसी उम्मीद में वे यहां आए थे,लेकिन रतलामी अब बदल गए है। साहब की उम्मीदें धरी रह गई और किसी ने भी उन्हे भाव नहीं दिया। इसीलिए कहते है गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा…

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