अफीम के पौधों में आने लगे हैं डोडे, प्रदेश के 42 हजार पट्टाधारको में सीपीएस पद्धति के 12937 पट्टे
मंदसौर नीमच,08फरवरी(इ खबर टुडे /चंद्रमोहन भगत )। अफीम उत्पादन के लिए केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो मापदंड के आधार पर 10 आरी के पट्टे में अफीम खेती करने की स्वीकृति देता है। मध्य प्रदेश में सबसे अधिक अफीम उत्पादक किसान मंदसौर नीमच क्षेत्र में रहते हैं । विभागीय जानकारी अनुसार प्रदेश मे 41955 पट्टा धारक हैं इनमें से चीरा पद्धति वाले 29018 और सीपीएस पद्धति के 12937 पट्टे बांटे गए हैं। दोनों पद्धति में किसानों को अलग-अलग दर से विभाग भुगतान करता है। अफीम और अफीम से उत्पादित किसी भी पदार्थ का बाजार में क्रय-विक्रय करना यहां तक कि घर पर रखना भी नारकोटिक्स नियमों के तहत अपराध होता है । यही कारण है कि नशे की दुनिया में अफीम और अफीम से उत्पादित होने वाले पदार्थों की कीमतें अधिक होती है और इनकी तस्करी भी की जाती है ।
अफीम की तस्करी रोकने के लिए ही सरकार ने सीपीएस पद्धति लागू की है। जिसमें किसानों को अफीम के डोडे पक जाने के बाद तय माप अनुसार छेदकर पोस्ट जाना निकालना होगा और बाकी डोडा 6 इंच डंठल के साथ विभाग को सौपना होगा। इस प्रक्रिया वाले किसानों को 1 किलो डोडे के लिए नारकोटिक्स विभाग 200 रु देता है जबकि चीरा पद्धति के पट्टे धारक किसानों को डोडे पर चीरा लगाकर अफीम निकालकर सरकार को देना होता है । हालांकि इस तरह से उत्पादित अफीम की कीमत अफीम में पाए जाने वाले मार्फिन के प्रतिशत पर निर्भर रहती है । जिसकी लागत 450 से लेकर 2000 प्रति किलो तक होती है। नई अफीम नीति अनुसार जो किसान 3 किलो मार्फिन युक्त प्रति हेक्टेयर से अधिक उत्पादन देना होता है । मार्फिन प्रतिशत के आधार पर ही भविष्य में लाइसेंस मिलना निर्भर करता है । इसी के साथ चीरा लगाकर अफीम निकालने वाले किसानों को 10 आरी के पट्टे पर 7 किलो अफीम देना अनिवार्य होता है ।
यह सही है कि अफीम उत्पादन से किसान को अच्छा पैसा मिलता है पर इसकी खेती में किसान के पूरे परिवार को रिस्क भी बहुत उठाना पड़ती है। अफीम के पौधे में फूल आने के बाद से ही किसानों को फसल की सुरक्षा बढ़ाना पड़ती है। पहले आसपास आकाश में विचरण करने वाले परिंदों से जो डोडा आते ही उसे खाने लगते हैं इसके अलावा तस्कर भी लगातार सक्रिय रहते हैं । कई बार तो रातों-रात अफीम की खड़ी फसल काट ले जाते हैं इस दौरान किसान परिवारों को रात रात भर फसल की चौकीदारी भी करना पड़ती है और कई बार तो तस्करों से संघर्ष भी करना पड़ता है । यह रिस्क अफीम के डोडे आने के बाद से लेकर जब तक चीरा लगाकर अफीम निकाल कर विभाग को जमा नहीं कर देते तब तक रहती है । क्योंकि 150 दिन की फसल होने के कारण आखिरी 30 दिन पहले से चीरा लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है ।
यह उल्लेख भी आवश्यक है कि चीरा पद्धति वाले किसान को विभाग को अफीम देने के बाद डोडे और पोस्त दाना भी मिल जाता है। जबकि सीपीएस पद्धति वाले किसानों को सिर्फ पोस्तदाना मिलता है क्योंकि इसमें इसमे बिना चीरा लगाए पूरा डोडा ही विभाग को देना पड़ता है जिसमें किसान को 200 किलो की लागत से भुगतान किया जाता है । विभागीय सूत्रों की मानें तो भविष्य में सरकार सरकार नीति बनाने पर विचार कर रही है जिसमें अफीम की सारी खेती सीपीएस पद्धति अनुसार कराई जाए इसमें किसानों को सिर्फ पोस्तदाना मिलेगा डोडे सहित अफीम सरकार ले लेगी।