December 24, 2024

Corona Vaccine: नए साल पर तोहफा, कोरोना की ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ के इमरजेंसी इस्तेमाल को मिली मंजूरी

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नई दिल्‍ली,01 जनवरी(इ खबरटुडे)। भारत में ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी मिल गई। यह तमाम देशवासियों के साथ सरकार के लिए भी राहत की खबर है, जो खासतौर पर इकॉनमी में आई गिरावट से परेशान है। वैक्सीन लगाने की शुरुआत के साथ ही हम नॉर्मल लाइफ की तरफ बढ़ने लगेंगे, लेकिन पूरे देश के टीकाकरण में कुछ साल का वक्त लग सकता है। इसके लिए इंतजाम करने में ही सरकार को कुछ महीने लग जाएंगे।

सूत्रों से पता चला है कि यह फैसला सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (एसईसी) ऑफ ड्रग्स कंट्रोलर ऑफ इंडिया ने एक मीटिंग में लिया। उसने इस वैक्सीन को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी है। कमेटी ने कहा कि वैक्सीन पर आखिरी फैसला ड्रग रेगुलेटर डीसीजीआई लेगा। इससे पहले 30 दिसंबर को ब्रिटेन में इस वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी मिली थी। ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन, फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना से काफी सस्ती है। इसे स्टोर करना भी आसान है। इसलिए कोरोना महामारी से जंग में यह गेम चेंजर साबित होगी।

भारत में यह पहली वैक्सीन है, जिसे मंजूरी मिली है। यहां की सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) इसे बना रही है, जो दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन मैन्युफैक्चरर है। कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर अडार पूनावाला ने इसी हफ्ते बताया था कि ब्रिटेन में अप्रूवल के बाद इसे भारत में भी मंजूरी मिल सकती है।

सीरम इंस्टिट्यूट इस वैक्सीन की पार्टनर है। वह कोविशील्ड नाम की इस वैक्सीन के 4-5 करोड़ डोज तैयार कर चुकी है और हर हफ्ते इसका उत्पादन बढ़ा रही है। इनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल भारत में होगा क्योंकि दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं, जिसमें वक्त लगता है। इस वैक्सीन के लिए पूनावाला तीसरी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट भी लगा रहे हैं, जिसके नए साल के मार्च महीने में शुरू होने की उम्मीद है। पूनावाला कई बार कह चुके हैं कि शुरू में कंपनी जो भी वैक्सीन बनाएगी, उसमें से ज्यादातर भारत को दिए जाएंगे।

ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को अमेरिका में अप्रूवल मिलने में वक्त लगेगा क्योंकि वहां अभी इसके फेज थ्री के ट्रायल चल रहे हैं। इसका नतीजा फरवरी तक आने की उम्मीद है। इस वैक्सीन की खास बात यह है कि यह बहुत सस्ती है। इसके एक डोज की लागत 3-4 डॉलर के करीब होगी, जो फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना की वैक्सीन की तुलना में काफी कम है। इसे नॉर्मल टेंपरेचर पर कहीं भी भेजा और 6 महीने तक स्टोर किया जा सकता है। यानी अगर कोई देश इस वैक्सीन को चुनता है तो उसे लॉजिस्टिक्स पर बहुत पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा।

वैसे इस वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल के रिजल्ट को लेकर विवाद भी हुआ था। जब लोगों को इसके दो डोज दिए गए तो यह 62 फ़ीसदी ही इफेक्टिव पाई गई, जबकि फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन करीब 95 फीसदी इफेक्टिव थी। वहीं, जिन लोगों को एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफर्ड की वैक्सीन का एक डोज दिया गया था, उनमें यह 90 फ़ीसदी तक कारगर पाई गई। इसके बाद कंपनी को नए सिरे से फेज थ्री ट्रायल का निर्देश मिला था। इस बीच कंपनी ने ब्रिटिश रेगुलेटर को ऐसा डेटा सौंपा था, जिससे पता चला कि वैक्सीन के एक और दूसरे डोज के बीच जिन मामलों में लंबा गैप रहा, वहां यह अधिक असरदार साबित हुई।

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