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Corona Pandemic Raag Ratlami -आपदा में अवसर का लाभ ले रहे हैैं कई सफेद कोट वाले,दवाई वाली मोहतरमा और दुकानदार भी पीछे नहीं

-तुषार कोठारी

रतलाम। कोरोना की आपदा हद से ज्यादा डरावनी हो गई है। जिस किसी को श्मशानों पर लगने वाली भीड की जानकारी मिलती है वही घबराने लगता है। हर ओर डर छाया है,मौत का डर। लेकिन इस घोर आपदा में भी कई सफेद कोट वाले अवसर तलाश चुके है। ये जबर्दस्त मौका है मोटी कमाई का।

ये बडी उलझी कहानी है। एक तरफ तो वही सफेद कोट वाले जीवनदाता बने हुए है। वायरस लगने के जबर्दस्त खतरे के बीच भी सफेद कोट वाले मरीजों के पास भी जा रहे है और इलाज करके जान भी बचा रहे है। लेकिन इसी में कुछ ऐसे भी है जो डर के माहौल को कमाई में बदलने का कोई मौका नहीं छोड रहे।

हमारे यहां इलाज भी भेडचाल की तरह होता है। पहले तो इलाज था नहीं फिर अचानक एक इंजेक्शन आया। बताया गया कि रेमेडीसिविर कोरोना के ही लिए है। जिसे देखों इसी इंजेक्शन के पीछे भागने लगा। जरुरत है या नही इससे किसी को कोई मतलब नहीं। बस जैसे ही कोरोना पाजिटिव की रिपोर्ट आई,इंजेक्शन की तलाश शुरु। या तो सफेद कोट वाला कह देगा,इंजेक्शन लेकर आओ,कोई ईमानदार सफेद कोट वाला अगर इंजेक्शन नहीं मंगाता,तो मरीज और उसके घर वाले सफेद कोट वाले को ही गलत बताने लग जाएंगे। कहा जाएगा डाक्टर बेकार है,इंजेक्शन लगाने को ही तैयार नहीं।

बस इंजेक्शन की इसी कहानी ने आपदा को अवसर में बदल दिया। दुकानों से इंजेक्शन गायब होने लगे। आपदा को अवसर में बदलने वालों ने दस गुना उंचे दामों में इंजेक्शन बेचना शुरु कर दिया। सफेद कोट वाले भी पीछे नहीं रहे। रतलाम के नाम वाले अस्पताल की कहानी देखिए। कोरोना जैसे लक्षण दिखने पर इस अस्पताल में पंहुची महिला मरीज को अस्पताल वालों ने दुनियाभर की जांचे करवाने के बाद भर्ती कर लिया। कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट जब तक आती,तब तक मरीज काफी कुछ ठीक हो चुकी थी। कोरोना के लक्षण थे,इसलिए मरीज को पहले से ही रेमेडीसिविर के इंजेक्शन चालू कर दिए गए थे। छ: में से पांच इंजेक्शन लग चुके थे। मरीज ठीक हो चुकी थी,कि अचानक कोरोना की पाजिटिव रिपोर्ट आ गई। जैसे ही रिपोर्ट आई,अस्पताल वालों ने फौरन महिला को डिस्चार्ज कर दिया। उसे लगने वाला छठा इंजेक्शन भी लगाने से साफ इंकार कर दिया गया। उसे कह दिया गया कि कोरोना पाजिटिव को मेडीकल कालेज में भर्ती कराओ,जो इलाज होगा वहीं होगा?
मरीज के रिश्तेदार बेचारे तय नहीं कर पा रहे है कि अब क्या करें? मरीज लगभग ठीक हो चुकी है,लेकिन एक इंजेक्शन लगना बाकी है। निजी अस्पताल वाले अधिकृत तौर पर यह कहने को भी राजी नहीं कि मरीज को रेमेडीसिविर इंजेक्शन लगाए गए थे। इस सारे किस्से में मरीज से हजारों रुपए की फीस तो वसूली ही गई,इंजेक्शन की कीमत भी चार गुना वसूली गई। बाद में मरीज को मेडीकल कालेज ले जाया गया। पता चला स्वास्थ्य ठीक हो चुका है। मरीज को रेमेडीसिविर की जरुरत ही नहीं थी, फिर भी चार गुना कीमत पर इंजेक्शन ठोक दिए गए।

यही है आपदा में अवसर। सफेद कोट वाले ही नहीं,और भी कई तरह के लोगों के लिए यह आपदा अवसर बनकर आई है। इधर इंतजामिया ने दस दिनों के लाक डाउन का एलान किया और उधर आपदा को अवसर में बदलने वाले तैयार हो गए। बाजारों में जैसे ही भीड उमडी,कई सारे दुकानदारों ने फौरन भाव बढाना शुरु कर दिए। सिगरेट पाउच वालों ने तो जमकर चांदी काट ली।

सरकारी लोग भी कहां पीछे रहने वाले है। दवाईयों की देखरेख करने वाली मोहतरमा वैसे तो किसी को नजर नहींआती,लेकिन जैसे ही इंजेक्शन की खींचतान मची,मोहतरमा सक्रिय नजर आने लगी। ये मोहतरमा दवाई दुकानों की मालकिन है,सालभर तो मजे में रहती ही है,लेकिन इस आपदा में इन्हे भी अच्छे खासे अवसर हासिल हो गए।

कुल मिलाकर आपदा मेंअवसर तलाशने वाले अब भी सक्रिय है। आपदा डरावनी होती जा रही है। पता नहीं आपदा में अवसर ढूंढ निकालने वालों को कभी इसकी चिन्ता होती भी है नहीं..?

बेकार हुए त्यौहार……

पिछले साल के तमाम त्यौहार कोरोना के वार से बेकार हो गए थे। वैक्सीन चालू हुई और कोरोना गायब होने लगा था,तो लगा था कि अब दुनिया फिर से पहले जैसी हो जाएगी। लेकिन कोरोना को किसी पर तरस नहीं आया। महीने दो महीने की राहत के बाद अब फिर से हर कोई लाक में डाउन है। नतीजा सामने है। होली और रंगपंचमी तो बिगडी ही थी,अब गुडी पडवा,नवरात्रि और रामनवमी जैसे त्यौहार भी बेकार होने वाले है…। पता नहीं धूम धाम से त्यौहार मनाने का मौका कब हाथ लगेगा…?

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