Raag Ratlami: कोरोना का कहर,होली पर असर,सूदखोरों को पुलिसिया डण्डे का डर और सियासत बेअसर
-तुषार कोठारी
रतलाम। बीते हफ्ते को यदि एक लाइन में कहना हो तो बस शीर्षक पढ लीजिए। कोरोना का कहर हर ओर छाया हुआ है। इस कहर से होली भी नहीं बच पाई है। होली का उल्लास लाक डाउन हो गया है। सडक नाली वाले चुनाव आगे बढने से सियासत भी पूरी तरह बेअसर हो चुकी है। लेकिन सूदखोरों के चंगुल में फंसे शहर के हजारों लोग राहत महसूस कर रहे है। शहर के सूदखोरों पर इन दिनों पुलिसिया डण्डे का डर छाया हुआ है।
कोरोना का कहर…..
रतलामियों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि कोरोना की दूसरी लहर के मामले में रतलाम आगे रहने वाले शहरों में शुमार हो जाएगा। लेकिन सच्चाई यही है। कोरोना की चपेट में आने वालों की तादाद लगातार बढती जा रही है। जल्दी ही रोजाना का आंकडा सौ के पार हो जाने का खतरा मण्डरा रहा है। ये तो अच्छा है कि कोरोना काल के पहले शहर में मेडीकल कालेज शुरु हो चुका था। इसकी वजह से कोरोना का इलाज मिलने में आसानी हो गई। पहले दौर में मेडीकल कालेज में छिटपुट विवाद की घटनाएं सामने आई थी। लेकिन ुकुल मिलाकर बडी तादाद उन लोगों की थी जो कोरोना से युद्ध में विजेता बनकर मेडीकल कालेज से अपने घरों को सही सलामत लौटे थे। कोरोना की हालिया लहर में भी मेडीकल कालेज में विवाद की घटनाएं सामने आने लगी है। शनिवार को ही एक वृद्ध की मौत के मामले में मेडीकल कालेज स्टाफ पर मरीजों की अनदेखी के आरोप लगाए गए हैैं। ये बात पूरी तरह सही ना भी हो तो भी मेडीकल कालेज से लौटने वालों के अनुभव लापरवाही की कहानियां कहते है। वहां से लौट कर आने वालों में से कई वहां की व्यवस्थाओं से असंतुष्ट नजर आते है। सबसे बडी शिकायत स्टाफ के व्यवहार को लेकर सामने आती है। कोरोना के इस हालिया दौर में अगर दुव्र्यवहार वाली शिकायतों पर अंकुश लगा लिया गया तो निश्चित ही शहर के कोरोना वारियर्स को परम सम्मान प्राप्त हो सकता है।
होली पर असर………
सबसे बडा दुखडा यही है कि मस्ती धमाल वाले एकमात्र त्योहार होली को भी कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है। ऐसा लगातार दूसरी बार हो रहा है। पिछली होली भी कोरोना की भेंट चढ गई थी और इस बार वाली होली को भी कोरोना ने लील लिया है। आज रात होलिका दहन होना है। लेकिन ये कोरोना के डर के साये में किया जाएगा। ना तो होली के गीत बजेंगे ना धमाचौकडी होगी। धुलेण्डी पर भी रंगों की बौछारे नदारद ही रहने वाली है। जिस त्यौहार पर लोग सारे दुखडे भूल कर रंगों की मस्ती में खो जाते है,वही त्यौहार कोरोना के कारण अवसाद देता हुआ नजर आ रहा है। होली लाक डाउन में उलझ कर रह गई है।
सूदखोरों को पुलिसिया डण्डे का डर….
अपनी छोटी मोटी जरुरतों के लिए सूदखोरों से कर्ज लेकर सूद के जंजाल में उलझकर परेशानियां उठाने वाले शहर के हजारों लोग इन दिनों खुशी महसूस कर रहे है। वर्दी वालों ने शहर के एक बडे सूदखोर को धरदबोचा है। असल कहानी तो सुपारी देकर हत्या कराने के मामले से हुई थी,लेकिन वर्दीवालों ने जल्दी ही सूदखोर के असली गुनाह पर भी कार्रवाई शुरु कर दी। वर्दी वालों के इस तेवर से शहर के दूसरे सूदखोरों में भी डर का माहौल बना हुआ है। वर्दीवालों के कप्तान ने सूदखोरी के चुगुल में फंसे लोगों को आगे आकर शिकायत करने की सलाह दी थी। कई सारे लोग सामने भी आए। लेकिन ये सारे वे ही लोग थे,जो पुलिस की गिरफ्त में मौजूद सूदखोर से परेशान थे। दूसरे सूदखोरों के चंगुल में फंसे लोग अब भी सामने नहींआ रहे है। ये सही मौका है सूदखोरों के आतंक की समाप्ति का। दूसरे सूदखोरों के चंगुल में फंसे लोग अगर इस वक्त सामने आ गए तो उन्हे फंसाने वाले सूदखोरो का भी पूरा ईलाज अभी हो जाएगा।
सियासत बेअसर…..
सियासत पर वैसे तो कोरोना का कोई असर होता नहीं,क्योकि कोरोना के होते हुए भी देश में कई जगहों पर सियासत बदस्तूर जारी है। लेकिन लोकल लेवल की सियासत अदालत के चक्कर में बेअसर हो गई है। शहर के तमाम छोटे बडे नेता अपनी सियासत चमकाने के चक्कर में पडे थे। मौका सामने नजर आ रहा था। शहरों में सडक नाली वाली सरकार के चुनाव होना थे,तो गांवों में पंचायती चुनाव की तैयारियां चालू थी। सूबे की बडी अदालत ने पहले तो शहरों के चुनाव में फच्चर फंसा दिया। तब लगा था कि शहर के चुनाव अटक गए तो पंचायती चुनाव पहले हो जाएंगे। लेकिन अदालती अडंगा अब पंचायतों पर भी आ गया है। नतीजा ये है कि फिलहाल सियासत बेअसर है और नेतानगरी चुप है।