Indus Valley : सिंधु घाटी सभ्यता से मिली सीलो पर उत्कीर्ण आकृतियों की खोज का दावा,ये किसी भाषा की लिपि नहीं डीएनए थ्योरी है
वेद विज्ञान अध्येता डा. सीपी त्रिवेदी ने किया शोध,आईंस्टीन के एकीकृत बल को भी खोजा
रतलाम, 23 जुलाई (इ खबर टुडे)। विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता रही सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राप्त सीलो पर उत्कीर्ण आकृतियों को अब तक पढ़ा नहीं जा सका है। लेकिन अब वेद विज्ञान अध्येता डा. सीपी त्रिवेदी का दावा है कि सिंधु.घाटी से प्राप्त सीलो पर उकेरी गई इबारत किसी भाषा की लिपी नही है बल्कि ये कोषा विभाजन के सूक्ष्म प्रतिरूप सायटोलाजीकल माडॅल है। ज्ञातव्य है कि वेदो की भाषा और सीलो उकेरे गए पर सूक्ष्म चित्र संकेत, पुरातत्वविद्, इतिहासकार, भाषा शास्त्री तथा वैज्ञानिको के लिए अबूझ पहेली रहे है। जिसके वैज्ञानिक हल की भारत को लम्बे समय से प्रतीक्षा थी। यह किसी भाषा की लिपी नही है। वरन् ये कोषा विभाजन के सूक्ष्म प्रतिरुप है। कोषा विभाजन क्रोमोसोम से क्रोमोसोम तक होता है।
डॉ.सी.पी.त्रिवेदी नेे यह भी कहा कि सूक्ष्म कोषिकिय स्तर पर सभी जीव एक समान क्रियाओं का प्रदर्शन करते है। जिसमे वृद्धि , प्रजनन और ऊर्जा रुपान्तरण प्रमुख है। तद्नुसार जीव का विकास एक डीएनए और जिनोमिक क्रोमोसोम से होता है। कोषा विभाजन समसूत्रण मायटोसिस और अर्ध सूत्रण मियोसिस द्वारा होता है। इसे सीलो पर दर्शाया गया है। जो सभी जीवो मे समान है। गुणसूत्र क्रोमोसोम क्रासिंग ओवर के द्वारा गेमेट बनाते है जिसे इस मध्य डीएनए को रुपान्तरित किया जा सकता है। रायबोसोम डीएनए कोड को जीवन मे अनुवाद करता है। कोषा विभाजन गुणसूत्र क्रोमोसोम से प्रारम्भ होकर नवीन गुणसूत्र क्रोमोसोम के संष्लेषण तक होता है। इसे प्रारुप माडॅलके द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। इसलिए सीलो पर बहुत अधिक चिन्ह नही मिले है। ये कोषिकिय स्तर पर कोषा विभाजन द्वारा सुक्ष्म जैव विकास के प्रारुप हैै। इन सीलो का उपयोग शिक्षण संस्थाओ मे प्रारुप माडॅल प्रदर्शन और अध्यापन के लिए किया जाता था। जिन्हे छात्रों को मूद्रण द्वारा वितरित किया जा सकता है। शिन्दे और विलिस 2014 ने इस तरफ ध्यान आकर्षित किया है कि ताम्बे की टेबलेट्स का उपयोग छपाई के लिए हो सकता है। वेदो की सांकेतिक भाषा से इसका साम्य होने से इनके अर्थ संकेत वेदो मे खोजे जा सकते है।सीलो पर वैदिक रूपको को उत्कीर्ण किया गया है। अर्थात सीलो का सीधा सम्बंध वैदिक ज्ञान से है। जिसकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान के द्वारा होती है।
सिंधु-घाटी सभ्यता का अनुवांषिकी विज्ञान चरम उत्कर्ष पर था, इसके द्वारा प्रयोगशाला मे जीव विकसित किए जाते है, इसका प्रमाण भारत और अफ्रीका की विकसित जैव विविधता है। जीन तकनिकी मे उन्हे महारत हासिल थी, जो विनाश का कारण भी बना।
सीलो पर जैव अनुवांषिकी के सूक्ष्म चित्र आधुनिक जैव तकनिकी के साकेंतिक प्रतिरूप है। जिसके द्वारा प्रकृति मे जीव का विकास होता है,और प्रयोगशाला मे कृत्रिम जीवो का विकास किया जाता है। जैव तकनिकी मे सिंधु घाटी को महारत हासिल थी, जो उनका मुख्य व्यवसाय था, इसके प्रमाण सिलों पर अंकित है। और लिखित प्रमाण वेदो की सांकेतिक भाषा मे है। सिंधु-घाटी से वैदिक वैज्ञानिक समुद्र मार्ग से ग्राण्ड केन्योन पहुंचे यह प्राप्त चित्र से स्पष्ट होता है।
अपनी पुस्तक के द्वितीय भाग मे डॉ.सी.पी.त्रिवेदी ने ग्राण्ड केन्योन और ईजिप्ट के पिरामिड के शैल चित्रो को, वेदो के संकेत चिन्हो के द्वारा अनावृत किया है। जो यह प्रदर्षित करते है कि वैदिक सभ्यता वैश्विक सभ्यता थी और ग्राण्ड केन्योन के भूमिगत शहर का निर्माण वैदिक वैज्ञानिको द्वारा किया गया। ग्राण्ड केन्योन के भूमिगत शहर का निर्माण पृथ्वी के गर्भ मे भूचुम्बकीय बेल्ट मे चेतन ऊर्जा की खोज हेतु किया गया। यह एक प्रकार की प्रयोगशाला थी, इसकी तुलना जेनेवा मे निर्मित लार्ज हेड्ान कोलाइडर से की जा सकती है। जहॉ गाडॅ पार्टीकल की खोज हुई। यहां ईजिप्ट और ग्राण्ड केन्योन मे अनुवांषिक विज्ञान चरमोत्कर्ष था, उन्होने डीएनए से मानव प्रतिकृति विकसित की और 8 से 22 फ़ीट तक के दानव बनाऐं जिसके अवषेष अमेरिका के अजायबघर मे है। इनका उपयोग भूमिगत शहर बसाने के लिए किया गया, पहाडों को काटने की कला उनके पास थी, सम्भवतः यह फोनॉन तक्निकी हो सकती है। वेदो मे इसका वर्णन है कि वाक् ऊर्जा चट्टानो और पहाडों को काट सकती है।
आईंस्टीन के एकीकृत बल की खोज भारतीय वैज्ञानिक द्वारा
चेतन अविनाशी वाक् एकीकृत महाबल है, जो सर्व प्रथम सृष्टि की उत्पत्ति के समय उत्पन्न हुआ, ध्वनि तरंगो के डार्क मैटर पर प्रति दबाव से महा विस्फौट हुआ। जिसने विस्फोट के साथ ध्वनि प्रति ध्वनि के द्वारा डार्क मैटर ऊर्जा को क्रियाशील किया, जिससे हायड्रोजन और हिलियम उत्पन्न हुए। जीवन की उत्पत्ति के साथ आवाज जीवन का प्रथम चिन्ह है। सफेद प्रकाश की सात किरणे तथा ध्वनि के सात स्वर सृष्टि का आधार है। प्रकाश और ध्वनि एक दूसरे के पूरक है।
यह वाक् शब्द दबाव विधुत चुम्बकीय ऊर्जा बल है, जो हर जगह क्रियाशील है। अक्षर शब्द की तंरंगे अपनी गति और आवृत्ति के अनुसार जब विपरीत गुणो वाली तरंग से टकराती है तो तुरन्त पलटती है, परन्तु अपना चिन्ह अंिकत कर देती है, जो प्रकाश की अनुर्द्धेय तंरंगो मे परिवर्तन उत्पन्न कर देती है, जो विद्यृत स्पंदन के द्वारा तुरन्त अंत तक पहुचं जाती है। जैसा कि ध्वनि तरंगो के कान से टकराने पर होता है, और दिमाग उसे तुरन्त कार्य रुप मे परिणित कर देता है।
परमाणु जगत का आधार है तथा ध्वनि उसका पूरक है, इसी के द्वारा यह ज्ञात होता है कि हिग्स फिल्ड 2012 जिसके अनुसार आकाश के एक भाग से मूल भूत कणो को भार प्राप्त हुआ।
इसके आगे जाते हुएं उन्होने आज के आधुनिक विज्ञान के अनबुझ समस्याओं के समाधान भी दियें है कि सृष्टि की प्राग्वस्था मे सर्वप्रथम सूक्ष्म ध्वनि तरंग उत्पन्न हुई, जिसने डार्क मैटर को उत्प्रेरित किया, डीएनए जीवन का यंत्र है और वाक् ऊर्जा सूक्ष्म ध्वनि तरंग डीएनए को क्रिया हेतु प्रेरित करती है, जो जीवन का आधार है।
गर्भ मे निषेचित डीएनए को दो मॉं का पुत्र कहा गया है। गर्भ में नवजात जीवन को प्राप्त करता है। डीएनए के दो प्रकार होते है ए और बी जिन्हे नर और मादा कहा जाता है। इनके सम्पर्क बिन्दू पर मन संकेत उत्पन्न होता है जिसे सूक्ष्म वाक् ऊर्जा उत्प्रेरित करती है और पलट जाती है। इसे चित्र मे दर्शाया गया है।