November 9, 2024

रतलाम में बालिकाओं के अवैध मदरसे को लेकर बाल आयोग और जिला प्रशासन आमने सामने,आयोग सदस्य डा. निवेदिता शर्मा ने कहा बन्द किया जाए मदरसा,जिला प्रशासन को नही दिखी अनियमितता (देखिये निरीक्षण का लाइव विडियो)

रतलाम,3 जुलाई (इ खबरटुडे)। शहर के खाचरौद रोड पर अवैध रुप से संचालित किए जा रहे बालिकाओं के मदरसे को लेकर बाल आयोग सदस्य डा. निवेदिता शर्मा और जिला प्रशासन के परस्पर विरोधी रुख सामने आ रहे है। मदरसे का निरीक्षण कर भोपाल लौटी बाल आयोग सदस्य डा. निवेदिता शर्मा के मुताबिक इस मदरसे को तत्काल बन्द कर दिया जाना चाहिए। दूसरी ओर जिला प्रशासन के अनुसार,प्रथम दृष्टया ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले है,जिनसे यह प्रतीत होता हो कि बालिकाओं को अमानवीय स्थितियों में रखा जा रहा हो।

म.प्र बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डा. निवेदिता शर्मा ने इ खबरटुडे से विशेष चर्चा करते हुए बताया कि वे अपने निरीक्षण का विस्तृत प्रतिवेदन एक दो दिनों में बाल आयोग को सौंपेगी और इसके बाद आयोग की ओर से कलेक्टर रतलाम को इसके विरुद्ध कार्यवाही करने के निर्देश दिए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि डा. निवेदिता शर्मा ने गत दिनों रतलाम में संचालित किए जा रहे इस मदरसे का आकस्मिक निरीक्षण किया था और यहां कई अनियमितताएं पाई थी। डा. शर्मा के निरीक्षण के बाद मदरसे की अनियमतिताओं के लेकर राष्ट्रीय स्तर के साप्ताहिक पांचजन्य में विस्तृत समाचार प्रकाशित किया गया था। पांचजन्य का यह समाचार शनिवार को सोशल मीडीया के माध्यम से रतलाम में भी वायरल हो गया। इस खबर के साथ अपने पाठको की सुविधा के लिए हम पांचजन्य में प्रकाशित समाचार भी प्रस्तुत कर रहे है

इ खबरटुडे से चर्चा करते हुए डा. निवेदिता शर्मा ने बताया कि कुछ महीनों पहले रतलाम के पांच मदरसों की जांच की गई थी। इन सभी मदरसों में कई गडबडियां पाई गई थी और इन सभी मदरसों को बन्द करने की अनुशंसा की गई थी। इसके बावजूद रतलाम के जिला प्रशासन ने इस रिपोर्ट पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं की है। जिन पांच मदरसों की जांच की गई थी,उनमें बालिकाओं का यह मदरसा दारुल उलूम आएशा सिद्दिकी मेमोरियल मदरसा भी शामिल था। डा. निवेदिता शर्मा ने कहा कि जब उन्होने मदरसे का निरीक्षण किया तो पाया कि एक बालिका बुखार में तप रही थी,और फर्श पर पडी हुई थी। मदरसा संचालक उस पर ध्यान नहीं दे रहे थे।

डा. निवेदिता शर्मा ने कहा कि मदरसे में सौ बालिकाएं रहती है,लेकिन मदरसे के साथ संचालित हो रहे स्कूल में सिर्फ 40 बालिकाएं ही पढती है। यह सीधे सीधे शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। डा. शर्मा ने कहा कि किसी स्कूल में यदि कोई बच्चा लगातार एक महीने तक अनुपस्थित रहता है तो नियमानुसार स्कूल के प्राचार्य को इस बात की सूचना बाल श्रम रोकने के लिए जिम्मेदार श्रम विभाग को देना चाहिए। इस स्कूल की 60 बच्चियां लगातार स्कूल से अनुपस्थित है,लेकिन इसकी सूचना प्राचार्य ने आज तक अधिकारियों को क्यों नही दी?

डा. निवेदिता शर्मा का कहना है कि जिला प्रशासन के अधिकारी इस मामले में घोर लापरवाही बरत रहे है। इस मदरसे में दो बच्चियां अनाथ है। अनाथ बच्चियों को रखने के लिए बाल कल्याण समिति की अनुमति आवश्यक है,लेकिन मदरसा संचालकों ने ऐसी कोई अनुमति प्राप्त नहीं की है। बच्चियों को गन्दे सीलनभरे कमरों में रखा जा रहा है और उनके कमरों में सीसीटीवी कैमरे तक लगा दिए गए है। इससे बडी अमानवीयता क्या हो सकती है?

डा. निवेदिता ने बताया कि रतलाम के पांच मदरसों को तत्काल बन्द करने की अनुशंसा पूर्व में हुई जांच के आधार पर की गई थी,लेकिन जिला प्रशासन ने अब तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की। उन्होने कहा कि बालिकाओं के मदरसे में कानूनो का खुले आम उल्लंघन किया जा रहा है। बिना रजिस्ट्रेशन के अवैध रुप से मदरसा चलाया जा रहा है,इसके बाद भी जिला प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही ना किया जाना समझ से परे है। डा. निवेदिता शर्मा ने बताया कि वे एक दो दिन में अपना विस्तृत निरीक्षण प्रतिवेदन आयोग को सौंपेगी और इसके बाद आयोग की ओर से कलेक्टर रतलाम को कार्यवाही करने के निर्देश जारी किए जाएंगे।

रतलाम में अवैध मदरसे की खबर वायरल होने के बाद शनिवार को जिला प्रशासन की ओर से एडीएम डा. शालिनी श्रीवास्तव महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों के साथ मदरसे के निरीक्षण के लिए पंहुची। एडीएम डा. श्रीवास्तव ने मदरसा संचालकों के मदरसे के दस्तावेज प्रस्तुत करने के निर्देश दिए है। मदरसे के निरीक्षण के बाद इ खबरटुडे से चर्चा करते हुए एडीएम डा. श्रीवास्तव ने कहा कि मदरसे में बच्चियों को अमानवीय स्थितियों में रखे जाने के आरोप लगाए जा रहे थे। निरीक्षण के दौरान प्रथम दृष्टया ऐसे कोई तथ्य सामने नहीं आए,जिनसे यह लगता हो कि बच्चियों को अमानवीय स्थितियों में रखा जा रहा हो। मदरसे की मान्यता आदि के सम्बन्ध में संचालकों से दस्तावेज मांगे गए है। एडीएम डा.श्रीवास्तव ने कहा कि वे अपना विस्तृत जांच प्रतिवेदन कलेक्टर को प्रस्तुत करेगी। इसके बाद जिला प्रशासन इस पर निर्णय लेगा।

मध्य प्रदेश के रतलाम में SCPCR की छापेमारी, अवैध मदरसे में बुरी हालत में मिलीं सैकड़ों लड़कियां…

एक कमरा… नीचे दरी बिछी हुई है और कहीं-कहीं पर वह भी नहीं, सफेद संगमरमर का फर्श,उस खुले पत्थर पर सो रही हैं 30 से 35 तक छोटी-छोटी बच्चियां ! ये कमरा किसी दरबे से कम नजर नहीं आ रहा है। दूर से देखने और पास जाने पर जो अनुभव हो रहा है, वह यही है कि किसी ने इंसानों के बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह एक कमरे में कठोरता के साथ ठूंस दिया है… माना कि जानवर तो बोल नहीं सकते लेकिन यहां तो इंसान का बच्चा भी चुप है और वह सह रहा है मजहब की तालीम के नाम पर मानसिक और शारीरिक जुल्म…!

दरअसल, यह दृश्य किसी पटकथा या उपन्यास का नहीं, मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में संचालित उस मदरसे का है, जहां इस्लामी नियम से दीन की तालीम के नाम पर पांच साल से लेकर 15 साल तक की बच्चियों को अलग-अलग कमरों में ठूंस ठूंस कर रखा गया है। इनमें से एक बच्ची जिसे तेज बुखार है, वह भी नीचे बिना चटाई के फर्श पर दर्द से कराहती पाई गई। मध्य प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) जब अचानक यहां पहुंचा तो स्थितियां देखकर दंग रह गया। एससीपीसीआर की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा जैसे ही बालिकाओं से मिलने मदरसा ‘दारुल उलूम आयशा सिद्दीका लिलबिनात’ के अंदर कक्ष में गईं तो बच्चियों की हालत देखकर एक तरफ उन्हें जिम्मेदार लोगों पर भयंकर गुस्सा आ रहा था तो दूसरी तरफ स्वयं को वे भावुक होने से नहीं रोक पाईं। उन्होंने मदरसा संचालकों से पूछा- मेरे मप्र की बेटियों को भेड़-बकरियों की तरह कैसे रखा ?, जिसका कि जिम्मेदारों के पास कोई जवाब नहीं था ।

अवैध रूप से संचालित किया जा रहा मदरसा

मध्य प्रदेश के कई जिलों समेत राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र से यहां अच्छी शिक्षा, भोजन और आवास के नाम पर गरीब मुस्लिम परिवारों से सौ से अधिक बच्चियों को यहां लाकर रखा गया है। इनमें से बड़ी संख्या ऐसी बच्चियों की मिली है जो स्कूल ही नहीं जातीं और इनका अधुनिक शिक्षा से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है, सिर्फ दीन की तालीम के नाम पर यहां रह रही हैं। इस मदरसे के अनुबंध और मान्यता को लेकर जब मप्र बाल संरक्षण आयोग ने कागजात मांगे तो मदरसा संचालक वे भी नहीं दिखा पाए। काफी दबाव बनाने के बाद आखिर वे बोल गए कि हमने मप्र में इस मदरसे को संचालित करने के लिए शासन से कोई मान्यता नहीं ली है, इसलिए हमारा ये मुस्लिम बच्चियों के लिए संचालित मदरसा शासन से मान्यता प्राप्त नहीं है।

महाराष्ट्र की ‘जामिया इस्लामिया इशाअतुल उलूम अक्कलकुआ’ संस्था से जुड़कर हो रहा मदरसा संचालित

इसके बाद जब आयोग ने इसकी और गहराई से जांच की तो सामने आया कि यह मदरसा महाराष्ट्र के नन्दुरबार जिले के जामिया इस्लामिया इशाअतुल उलूम अक्कलकुआ नाम की संस्था से जुड़कर संचालित हो रहा है। इसके साथ ही बाल आयोग ने इसकी फंडिंग स्रोत जानना चाहे तो बहुत कहने के बाद भी मदरसा संचालक यह कहते रहे कि अभी हमारे पास सही जानकारी उपलब्ध नहीं है और उन्होंने इस मदरसा को संचालित करने के लिए प्राप्त होनेवाली कोई आय के बारे में बहुत पूछे जाने के बावजूद कुछ नहीं बताया। ऐसे में आयोग को अंदेशा है कि लोकल के अलावा फॉरेन फडिंग भी इसे जरूर कहीं न कहीं मिल रही होगी, इसलिए ये मदरसा संचालक सही जानकारी सामने रखना नहीं चाहते होंगे।

कई सालों से हो रहा ये अवैध मदारसा संचालित, स्कूल भी चल रहा

मदरसा संचालक मौलाना मौसीन से जब पूछा गया कि कब से आप इस मदरसे को संचालित कर रहे हैं, तो उसने बताया कि कई सालों से इसे हम संचालित कर रहे हैं। सही वक्त तो मुझे भी याद नहीं। इस मदरसा से जुड़ा एक सच यह भी सामने आया कि मदसे का अपना एक विद्यालय इसी से लगे परिसर में कक्षा 10वीं तक संचालित किया जा रहा है, जिसमें बाहर से भी बच्चे पढ़ने आते हैं। इस स्कूल को संचालित करने के लिए सोसायटी का 2012 में पंजीयन कराया गया था और स्कूल खोल दिया गया, लेकिन साल 2019 में इस स्कूल की मान्यता मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल से ली गई। यानी कि यह भी सामने आया कि वर्ष 2012 के बाद प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल से ली गई। यानी कि यह भी सामने आया कि वर्ष 2012 के बाद से 2018 तक इस स्कूल को संचालित करने की कोई मान्यता नहीं रही है। ऐसे में जिसकी संभावना अत्यधिक है, इसे बिना मान्यता के ही चलाया जा रहा था।

मदरसा की व्यवस्थाएं देखने से शरिया कानून और तालिबान सीरिया शासन आता है याद

सबसे हैरानी करने वाली बात यह है कि कक्षा 10वीं तक का संचालित स्कूल होने के बाद भी यह बच्चियों को अपने विद्यालय से आधुनिक शिक्षा नहीं दे रहे हैं। जब मदरसा संचालकों से इस बारे में जवाब-तलब किया गया तो वे कोई उत्तर ना दे सके। दूसरी ओर यहां बहुत छोटी और अबोध बालिकाओं को जहां रखा जा रहा है वह इस्लामी देशों में अफगानिस्तान, सीरिया की तालीबानी और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठनों के शासन और उनके लागू शरिया कानून की याद दिला देता है।

आप जब मदरसा के भीतर प्रवेश करते हैं, तो अंदर का माहौल कुछ ऐसा ही है। आंखों के अलावा शरीर का कोई हिस्सा नहीं दिखे इसके लिए बच्चियों पर भारी सख्ती की जाती है। उन्हें अभी से मानसिक रूप से ट्रेंड किया जा रहा है। ताकि भविष्य में वे इसी तरह से अपने जीवन को वे जिएं।

बच्चियों के प्राइवेट कक्ष में लगे हैं केमरे, पुरुष करते हैं निगरानी

अपनी जांच और की गई कार्रवाई को लेकर डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि बच्चियों के कोमल चेहरों से मुस्कान गायब थी। बहुत दबी-दबी, कुछ भी बोलने से बचती हुई चुप-चुप बच्चियों से जब उनके हाल-चाल जानना चाहे तो वह कुछ बोलने को तैयार नहीं दिखीं। मदरसा संचालक अपने संचालित हो रहे बच्चियों के इस संस्थान की कोई वैध जानकारी सामने नहीं रख पाए । उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि हमारे यहां प्रत्येक बालिका को तीन सालों के लिए रखा जाता है, उसके बाद उन्हें दीनी तालीम देकर उनके घर वापिस भेज दिया जाता है। यहां मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों से आईं कई बच्चियां तो थीं हीं साथ में दूसरे राज्यों से भी बच्चियों को यहां रखा गया है।

उन्होंने कहा, “सबसे दुखद पक्ष और आपत्ति जनक मुझे यह लगा कि बच्चियों की कोई प्राइवेट जिंदगी नहीं है, हर जगह कैमरे लगा कर उन पर चौबीसों घण्टे नजर रखी जा रही है और नजर रखनेवाले सभी पुरुष वहां मिले।” डॉ. निवेदिता यहां प्रश्न खड़ा करते हुए कहती हैं, “क्या कोई अपने बेडरूम में या निजि कक्ष में कैमरे लगवाता है? यदि नहीं तो जहां बच्चियां सो रही हैं, स्वभाविक है कि वह अपनी अन्य दैनिक गतिविधियां भी करती ही होंगी, तब इन बच्चियों के प्राइवेट कक्षों में वहां कैमरे क्या काम कर रहे हैं? और ये मदरसा संचालक उन पर किस चीज की निगरानी रख रहे हैं?”

यहां रह रहीं कई बच्चियों के बारे में यह भी सामने आया है कि कई बेटियां दूसरे जिलों के शासकीय/निजी विद्यालयों में रजिस्टर्ड हैं, लेकिन वे नियमित तौर पर रहती इस मदरसा में हैं। यहां शाला में पंजीकृत है, वहां पढ़ने ही नहीं जातीं। वहीं, डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि जांच के दौरान उन्हें इस मदरसा में दो बच्चे सीएनसीपी (ऑरफन), जिनके माता-पिता नहीं हैं और कहीं भी ये बच्चे बाल आर्शीवाद योजना में रजिस्टर्ड नहीं हैं, पाए गए। दोनों बच्चे राज्य के जिला धार के रहनेवाले हैं। इसको शासन की योजना का लाभ मिले और यह आगे आधुनिक शिक्षा ले पाएं इसके लिए जिले के अधिकारियों को बता दिया गया है।

‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ का उल्लंघन

उन्होंने बताया कि “कई बच्चियां आधुनिक शिक्षा से पूरी तरह दूर पाई गईं, यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) का सीधा उल्लंघन है। इसमें देश के प्रत्येक 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है। यहां इन बच्चियों को इस्लामिक शिक्षा देने के नाम पर आधुनिक शिक्षा से पूरी तरह से दूर रखा जाता हुआ पाया गया। इन बच्चियों को भी आधुनिक शिक्षा लेने का देश के अन्य बच्चों की तरह ही अधिकार है, जब यह अपना निजि स्कूल कक्षा 10वीं तक संचालित कर रहे हैं तब मदरसा संचालकों को अपने स्कूल में या बाहर जहां भी ठीक लगता है, इन सभी बच्चियों का विधिवत दाखिला करवाना चाहिए था, जोकि यहां अभी सभी का नहीं पाया गया। कुल 100 बच्चियों में से सिर्फ 40 बच्चियां ही पढ़ाई कर रही हैं”

उन्होंने कहा कि मप्र बाल संरक्षण आयोग ने बहुत ही गंभीरता से इस मदरसा के विषय को लिया है, शासन को लिखेंगे और इन बच्चियों के सुखद भविष्य के लिए क्या हो सकता है, इसकी चिंता करेंगे। इस बीच जब जिला शिक्षा अधिकारी रतलाम कृष्ण चंद्र शर्मा और जिला मदरसा संचालक प्रमुख इनामुर शैख से संपर्क किया गया तो दोनों के ही मोबाइल बंद थे।

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds

Patel Motors

Demo Description


Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds