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चेक बाउंस: चेक बाउंस होता है तो इतना भरना होगा जुर्माना,हाई कोर्ट ने किया साफ

trial magistrate

Check Bounce: If a check bounces, a fine will have to be paid, the High Court has made it clear.

check bounce:हाईकोर्ट ने अहम आदेश जारी करते हुए कहा है कि चेक बाउंस मामलों में जुर्माना लगाने में एकरूपता बनाए रखने के लिए जुर्माना चेक की राशि के बराबर होगा। साथ ही चेक जारी होने की तिथि से लेकर सजा के फैसले की तिथि तक कम से कम 6% वार्षिक ब्याज भी देना होगा।

बठिंडा के निवासी जुगजीत कौर ने चेक बाउंस के मामले में दो साल की अवधि के लिए कठोर कारावास और 10 हजार रुपये के जुर्माने के आदेश को चुनौती दी थी। आरोप के अनुसार शिकायतकर्ता को याची ने 2015 में 19 लाख रुपये देने थे, जो नहीं दिए। हाईकोर्ट(High court) ने कहा कि ट्रायल कोर्ट वर्तमान मामले के विशिष्ट तथ्यों को ध्यान में रखने में बुरी तरह से विफल रहा है और केवल 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।

जुर्माना न चुकाने पर आरोपी को दो महीने की अवधि के लिए कठोर कारावास काटने का निर्देश दिया गया था और कोई मुआवजा राशि भी नहीं दी गई थी। हाईकोर्ट(High court) ने कहा कि एकरूपता बनाए रखने के लिए हमेशा चेक की राशि के बराबर जुर्माना लगाना उचित होता है। कोर्ट ने कहा कि साधारण कारावास की सजा के साथ जुर्माना लगाया जा सकता है या नहीं भी। यह पूरी तरह से ट्रायल मजिस्ट्रेट(trial magistrate) के विवेक पर निर्भर करता है।

परंतु कानून के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, यह उचित होगा कि कारावास की सजा को न्यूनतम रखा जाए। हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को अधिकार क्षेत्र के अधीन सभी न्यायिक अधिकारियों को निर्णय प्रसारित करने का निर्देश दिया, ताकि जुर्माना लगाने के मामलों में एकरूपता सुनिश्चित हो सके।

हाईकोर्ट ने कहा कि सजा सुनाते समय न्यायालय को जुर्माना लगाने में अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए। विधानमंडल ने मजिस्ट्रेट को जुर्माना लगाने का विवेकाधिकार दिया है, जो चेक की राशि से दोगुना हो सकता है। अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने पर न्यायालय की ओर से लगाया गया जुर्माना, शिकायतकर्ता की क्षतिपूर्ति के लिए पर्याप्त होना चाहिए। हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया और मामले को नए सिरे से सुनने के लिए ट्रायल कोर्ट भेज दिया।

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