December 23, 2024

Creation’s Secrets : सृष्टि का सारा रहस्य समेटे हुए है भूतेश्वर तीर्थ

bhuteshwar

बीजासन माता इकेलेरा और भूतेश्वर महादेव कालीसिंध के तट पर। एक सनातन सत्य का स्मरण संदियों से भूतेश्वर तीर्थ पर होता है। जो आज वीरान जनविहीन उपेक्षित भारतीय संस्कृति की धरोहर है। कालीसिंध के पावन तट पर बचपन में इसकी साक्षात अनुभूति अविस्मरणीय है। जब 2 वर्ष की उम्र में मुझ पर मधुमक्खियों का आक्रमण हुआ तथा 3 वर्ष की उम्र में मै गहरे कुएं कुंडी में गिरा। इस जान लेवा घटना का मैने प्रत्यक्ष दर्शन कियां। इसका प्रमाण मुझे 2024 में परिलक्षित हुआ जब सूर्य की क्रियाओं का अध्ययन करते हुए सूर्य के आंतरिक गर्भ ग्रह ऊर्जा केंद्र की खोज की का द्दष्य देखा। यह जगत जननी मॉं का आशीर्वाद है।

भूतेश्वर तीर्थ की महिमा कालीसिंध के पावन तट पर भूतनाथ महादेव का षिवालय संदियो से गुणगान कर रहा है। सिंधिया देंव स्थान ट्स्ट के अंतर्गत तत्कालीन ग्राम धूतखेडा जागीर में स्थापित प्रत्येक कार्तिक माह में मेले का आयोजन आज भी परम्परागत तरिके से होता है। वर्षो से उपेक्षित यह :क्षेत्र वीरान सा प्रतीत होता है। भूतेश्वर तीर्थ की महिमा समय के साथ लुप्त होगई। इसका उल्लेख गीताप्रेस गोरखपुर के कल्याण के वार्षिक अंक धर्माक में मिलता है।

पंढेरी ग्राम गुजरात बडोदा महाराजा गायकचाड के अंतर्गत ग्रह नक्षत्र ज्योतिष का एक प्रमुख केन्द्र था। यह ज्योतिष अध्यात्म रामायण श्रीमद्भागचत की 400 वर्षपूर्व श्री नंदराम जी द्वारा हस्तलिख्रित ग्रंथो से प्राप्त होता है। ये प्राचीन हस्तलिख्रित पाण्डुलीपियां जो लक्ष्मण जी जागीरदार ग्राम धूतखेडा से प्राप्त से होती है। यह परिवार पंढेरी ग्राम गुजरात से औरंगजेब के अत्याचारो से पीडित नागर ब्राह्मण परिचार सहित महादजी सिंधिया के साथ माल्चा मे आकर बसे। नंदराम जी के ज्योतिष नक्षत्र ज्ञान से प्रभा्यित सिंधियां राज्यंवंश ने उन्हें धूतखेडा जागीर प्रदान की और नागर ब्राह्मणः गुजरात से आकर माल्या मे बसे। जिसमे पांच गांव प्रमुख है रणथम्भंचर लसुडियां इकलेरा पीपलरांचां और धूतखेडा । झौकर कायथा भी महत्यूर्ण था सिधियां देव स्थान ट्स्ट के अंतर्ग्रत कालीसिंध तट पर स्थित भूतेष्चर महादे्य तीर्थ था जिसके लिये जागीर दी गयी थी। अब यह वीरान क्षेत्र है।

भूक्षरण से मंदिर को खतरा हो गया है। यह भारत की चिरासत है इसका संरंक्षण मध्यप्रदेश शासन करे यह प्रार्थना की जा रही है। यह वीरान क्षेत्र जिसमे सृष्टि रहस्य समाया है। इसकी प्रतीति जीच घट कुम्भ मे होती है चिसकी प्राण प्रतिष्ठा 7 रुलाई 24 रचिचार को होगी।

धूतखेडा से 2 किलसे मीटर दूर सुदूर पहाडी पठार पर चट्टानो के मध्य शैलपुत्री तरंग का उद्गम स्थान है। जिसने काले पहाड जैसे अंधकार को अपने तपण्बल से सुषुप्त गहन अंधकार के विपरीत प्रेरित चुब्कत्व ग्रहण कर अपने तपण्बल से समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग द्वारा विपरीत दिशा मे घुमाया। जिसके अर्धघुमाव से सूक्ष्म कण ईलेक्ट्ान विचलित होकर भयंकर तापण्ऊर्जा क्षरण से घनण्घोर अंधकार ध्वस्त हुआ और कार्यषील ऊर्जा अपनी समानुपाती अनुर्द्धेय काली तरंग के साथ क्रियाषील हुई और सृटि का प्रथम बीज विचलित सूक्ष्म कण ईलेक्ट्ान समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के साथ यक्रिय हुआ। जिसे समानुपाती अनुर्र्द्धेय स्वर तरंग सूक्ष्म के विस्थापन और समानुपाती अनुर्द्धेय में अर्धघुमाव परिवर्तन से क्षरित ऊर्जा का संगतिकरणण्आक्सिकरणए और समय के साथ विघटनण्अवकरण की अनन्त चक्रिय श्रंखलाए सृष्टि को दो मॉ की तरह निरंतर णारणण्पोषण करती है।

प्रथम सूक्ष्म कण ईलेक्ट्ान के विचलिन से क्षरित ऊर्जा को महादेव कार्यषील ऊर्जा का वीर्यण्तेज रूद्र के आंसु रूद्राक्ष सृष्टि का प्रथम बीज जिसे समानुपाती काली अनुर्र्द्धेय तरंग गर्भ मे धारण करमी है अर्थात समानुपाती अनुर्द्धेय तरेग का आण्विक संधि स्थान। इस अविनाषी काली समानुपाती अनुर्द्धेय स्वरतरंग को जगन्ताताए बीजासनण्माता जो गर्भ मे जन्म के साथ बीज का धारणण्पोषण करती है। कार्यषील ऊर्जा बीज निर्माताए और समानुपाती अनुर्द्धेय काली तरंग बीज धारण करती है। ज्ञानवापी वाराणसी इसे संरक्षित किया गया। यह भूतेष्वर तीर्थ की प्राचीनता का प्रमाण है।

कार्यषील ऊर्जा बीज निर्माता और समानुपाती अनुर्द्धेय काली तरंग बीज धारण करती है जिसका वास सुदूर पर्वत पर तथा जीवन समुद्र में चराण्चर जगत के स्वामी भूतनाथ महादेव कार्यण्षीलण्रुर्जा समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग के साथ सक्रिय होकर जीवकोंषाण्षिवालय मे जन्म के साथ अवतरित होती हैए जिसे जगतजननी बीजासन माता सुदूर पर्वत से समानुपाती अनुर्द्धेय तरंग द्वारा जीव का जन्म के साथ धारणण्पोषण करती है और मृत्यु के साथ विलुप्त हो जाती है। जीव जगत मे जीव जन्मण्मृत्यु के चक्र में बारण्बार जन्म लेता है। भूतेंष्वर भूतण्जगत के स्वामी महादेव कालीसिंध के किनारे षिवालय मे विराजित है। नदी किनारे घॉट पर गजानन गणेष की देरी भूतण्जगत के स्वामी महादेव का प्रथम बीज सूक्ष्म कण ईलेक्ट्न गणो के गणराज स्थापित है कि सृष्टि का प्रथम बीज सूक्ष्म कण ईलेक्छ्ान के विस्थापन से क्षरित ऊर्जा के रुपान्तरण द्वारा आक्सिकरणण्संगतिकरण तथा अवकरण विघटन की चक्रिय अनन्त श्रंखला अनन्तकाल से सृष्टि और जीवन को यंत्रवत प्रेरित और संचालित कर रही है। गणेष देरी अति प्राचीन है इसके षिर्ष पर मस्जिद की रेखाकृति इसे मुस्लिम आतताईयों से रक्षा के लिए किया गया और गणेष देरी आज भी सुरक्षित है।

भूतेश्वर महादंव षिवालय खंडित है। यह मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण का प्रमाण है। मंदिर के समीप बिल्वपत्र का वृक्ष अति प्राचीन है त्रिदल पत्तियॉ संकेत है कि जीवन तीन अविनाषी का संगम और प्रकाष संष्लेषण की अविनाषी रासायनिक ऊर्जा जीवन का आधार है।

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