November 23, 2024

Tribute : पर्यावरण संरक्षण की लोक चेतना के पर्याय थे पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा – पुरोहित

रतलाम,22 मई (इ खबर टुडे )। चिपको आंदोलन के नेता और विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा अब नहीं रहे। शुक्रवार को
उन्होने एम्स मे दोपहर 12:30 बजे अंतिम सांस ली। 94 वर्षीय श्री बहुगुणा पिछले 13 दिन से ऋषिकेश के
एम्स मे भर्ती थे, जहां उनका स्वास्थ्य गंभीर बना हुआ था। कुछ दिनों पहले कोरोना वाइरस से संक्रमित होने
के बाद हालत बिगड़ने पर उनको ऋषिकेश एम्स में भर्ती करवाया गया था।


श्री बहुगुणा के निकट सहयोगी रहे “पर्यावरण डाइजेस्ट” के संपादक डॉ॰खुशाल सिंह पुरोहित ने कहा कि श्री
बहुगुणा का अवसान भारत ही नहीं समूचे विश्व में पर्यावरण प्रेमियों के लिए दुखद खबर हैं। श्री बहुगुणा
पर्यावरण संरक्षण की लोक चेतना के पर्याय हो गए थे। उन्होने समाज के युवा वर्ग को पर्यावरण से जोड़ने का
महत्वपूर्ण कार्य किया। श्री बहुगुणा का मध्यप्रदेश में उनका अनेक बार प्रवास हुआ, रतलाम से उन्हे विशेष
लगाव था। डॉ॰पुरोहित ने कहा कि “पर्यावरण परिषद” एवं “पर्यावरण डाइजेस्ट” द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के
लिए हमारे सहज निमंत्रण पर वर्ष 1982 से 2011 तक एक दर्जन से अधिक बार हमे और पूरे शहरवासियों को
उनका स्नेह और सानिध्य मिला। रतलाम शहर के पर्यावरण की प्रथम नागरिक रिपोर्ट “साक्षारता बनाम
प्रदूषण” को श्री बहुगुणा द्वारा 13 फरवरी 1985 को रतलाम में जारी किया गया था। पत्रिका के संयुक्त
संपादक कुमार सिद्धार्थ ने कहा कि देश ने एक महान वृक्षमित्र खो दिया है, यह आपूरणीय क्षति हैं।

सुविख्यात सर्वोदयी विचारक, पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा पिछले कई सालों से हिमालय में वनो के संरक्षण
के लिए लड़ रहे थे। वह पहले 1970 के दशक में चिपको आंदोलन के प्रमुख थे। सुंदरलाल बहुगुणा के प्रयासों
का ही नतीजा रहा कि आंदोलन के बाद उत्तराखंड में सरकार ने पेड़ काटने पर रोक लगा दी थी। बाद में उन्होने
1965 से 970 तक पहाड़ी क्षेत्रों में शराब पर रोक लगाने के लिए महिलाओं को एकत्रित किया और जन
आंदोलन चलाया। सुंदरलाल बहुगुणा ने 1981 से 1983 के बीच पर्यावरण जनजागृति को लेकर कश्मीर से
कोहिमा तक 5000 किमी. कि पदयात्रा की थी, यह यात्रा न केवल उन्हे सुर्खियों में ले आयी बल्कि आंदोलन
देश-विदेश में चर्चित हो गया। आपने अपनी श्रीमति विमला बहुगुणा के सहयोग से सिल्यारा (टिहरी गढ़वाल) में
पर्वतीय नवजीवन मण्डल की स्थापना की जिसके तहत पर्यावरण संरक्षण के अनेक कार्यक्रम चलाये गए। टिहरी
बांध के विरोध को लेकर आपके द्वारा चलये गए लंबे संघर्ष अनेक बार किए गए उपवास और अनशन के
फलस्वरूप भारत सरकार को अपनी पुनर्वास नीति मे कई सुधार करने पड़े।

चिपको आंदोलन के कारण श्री बहुगुणा विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। श्री बहुगुणा के कार्यों
से प्रभावित होकर अमेरिका की ‘फ़्रेंड्स ऑफ नेचर’ संस्था ने 1980 में उन्हे पुरस्कृत भी किया। पर्यावरण बचाने
की अलख जगाने वाले इस नेता को वर्ष 2009 में भारत सरकार ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया था। श्री
बहुगुणा को अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, इनमे 9 दिसंबर 1987 को स्वीडन में दिया गया ‘राइट
लाइवलिहूड़’ पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री बहुगुणा के निधन पर देशभर से अनेक सर्वोदयी संस्थाओं, रचनात्मक कार्यकर्ताओं और पर्यावरण से सरोकार रखने वाले लोगो ने अपनी भावभीनी श्र्द्धांजलि अर्पित की हैं।

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