वैशाख एवं ज्येष्ठ माह में श्री महाकालेश्वर भगवान का गलंतिका से अभिषेक ; शीतलता के लिए 11 मिट्टी के कलशों से सतत जलधारा बहेगी
-बृजेश परमार
उज्जैन,25 अप्रैल । श्री महाकालेश्वर मंदिर में बुधवार (वैशाख कृष्ण प्रतिपदा) को प्रातः भस्मार्ती के पश्चात भगवान को शीतल जलधारा से अभिषेक हेतु 11 मिट्टी के कलशों से गलन्तिका लगाई गई। कलशों पर प्रतीकात्मक रूप में नदियों के नाम गंगा, सिंधु, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, शरयु, क्षिप्रा, गण्डकी आदि नामो को अंकित किया गया है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर में परंपरानुसार 24 अप्रैल (वैशाख कृष्ण प्रतिपदा) से 22 जून (ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा) तक भगवान पर 11 मिट्टी के कलशों से सतत जलधारा हेतु गलंतिका बांधी गई है। सतत शीतल जलधारा प्रवाहित की जावेगी, जो प्रतिदिन प्रात: भस्मार्ती के पश्चात से सायंकाल पूजन तक रहेगी। पं.आशीष पुजारी बताते हैं कि परंपरा अनुसार प्रतिवर्ष वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तक (दो माह) श्री महाकालेश्वर भगवान जी को शीतलता प्रदान करने के लिए प्रतिदिन लगने वाले अभिषेक पात्र (रजत कलश) के साथ मिट्टी के 11 कलशों से सतत जलधारा प्रवाहित करने हेतु गलंतिका बांधी जाती है। वैशाख व ज्येष्ठ माह में अत्यधिक गर्मी होती है। भीषण गर्मी में भगवान श्री महाकालेश्वर को दो माह तक प्रतिदिन भस्मार्ती के बाद प्रातः 6 बजे से सायं 5 बजे संध्या पूजन तक गलंतिका बधेगी। गलंतिका केवल श्री महाकालेश्वर मंदिर में ही नही अपितु 84 महादेव एवं संपूर्ण भारतवर्ष में भी लगायी जाती है।
ये है धार्मिक मान्यता
पं. पुजारी के अनुसार धार्मिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने गरल (विष) पान किया था। गरल अग्नि शमन करने के लिए ही आदिदेव सदाशिव का जलाभिषेक किया जाता है। गर्मी के दिनों में विष की उष्णता (गर्मी) और भी बढ़ जाती है। इसलिए वैशाख व ज्येष्ठ मास में भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलश से ठंडे पानी की जलधारा प्रवाहित की जाती है। जिसको गलंतिका कहते हैं।
धर्म-सिंन्धु पुस्तक के अनुसार ”अत्र मासे प्रपादान देवे गलंतिका बंधन व्यजनच्छत्रोपान वंदनादिदान महाफलम” अर्थात इस मास में प्रपाका दान (जलदान) पशु-पक्षी,देवताओं,ऋषियों,मनुष्यों को जलसेवा करनी चाहिए, देव के गलंतिका(कंठी) बांधना और बीजना(बोवाई) छत्र,चन्दन, धान्य आदि के दान का महान फल होता है। वैशाख एवं ज्येष्ठ माह तपन के माह होते है। भगवान शिव के रूद्र एवं नीलकंठ स्वरूप को देखते हुए सतत शीतल जल के माध्यम से जलधारा प्रवाहित करने से भगवान शिव प्रसन्न एवं तृप्त होते है तथा प्रजा एवं राष्ट्र को भी सुख समृद्धि प्रदान करते है।