November 22, 2024

Raag Ratlami Politics : सावन का महीना,सियासत का जोर,धार्मिक आयोजनों की मची है होड

रतलाम। श्रावण मास अर्थात पूरी तरह धर्ममय होने का मास। पूरे महीने शिवालयों में पूजा,आराधना और उपवास। ये तो हुई धार्मिक बातें। लेकिन आजकल धार्मिक आयोजनों के जरिये सियासत को साधने का भी मौका हासिल किया जा रहा है। श्रावण मास की कांवड यात्राएं,शाही सवारी और भजन संध्या जैसे आयोजन जहां आयोजनकर्ताओँ को धर्मलाभ दिलाती है वहीं उनका सियासती कद भी बढा देती है। शायद यही वजह है कि सियासत को मजबूत करने के चक्कर में धार्मिक आयोजनों की संख्या पहले से कुछ बढी हुई है।

सियासत की बात हो तो आजकल पंजा पार्टी की सियासत नील बटे सन्नाटा जैसी हो गई है। अब बची केवल फूल छाप,जिसकी सियासत हर ओर छाई हुई है। पंजा पार्टी में आजकल उंगलियों पर गिने जाने लायक नेता बचे है,इसलिए उधर मारामारी खत्म सी है। जो कुछ खींचतान और मारा मारी है वो सारी की सारी फूल छाप में है।

फूल छाप पार्टी में नए मुखिया की तैनाती हो चुकी है। नए मुखिया की तैनाती के साथ ही उनकी टीम में बदलाव की सुगबुगाहटें भी शुरु हो चुकी है। फूल छाप के कई सारे नेता नए मुखिया की टीम में बडी जिम्मेदारी हासिल करने की इच्छा रखते है। यही हालत फूल छाप की यूथब्रिगेड का है। फूल छाप की युवा ब्रिगेड का मुखिया बनने की चाहत दर्जनों युवा नेता अपने मन में पाल रहे है। शायद यही वजह है कि इस श्रावण मास के धार्मिक आयोजनों में युवा बढ चढ कर हिस्सा ले रहे है। कोई कांवड यात्रा निकाल रहा है,तो कोई शिव जी की शाही सवारी निकाल रहा है। कहीं महाआरती का आयोजन किया जा रहा है तो कोई भजन संध्या का आयोजन कर रहा है।

किसी जमाने में ऐसा माना जाता था कि धर्म कर्म बडी उम्र के लोगों पर ज्यादा असर करता है,लेकिन आजकल तस्वीर बदली हुई है। धार्मिक कार्यक्रमों में युवा बढचढ कर शामिल हो रहे है। ये बात पक्की है कि धार्मिक आयोजनों में शामिल होने वाले युवाओं में बडी संख्या उन युवाओं की है जो वास्तव में धार्मिक होने लगे है,लेकिन यह भी सच है कि कई सारे युवा धर्मलाभ के साथ साथ राजनीतिक लाभ भी हासिल करना चाहते है।

शहर की सड़के,गलियां और चौराहे पोस्टर बैनरों से पटे पडे है। कहीं कांवड यात्रा के पोस्टर लगे है,तो कहीं भजन संध्या के बैनर लगे है। उपर उपर से देखने पर तो लगता है कि यो सारे विशुद्ध धार्मिक आयोजन है,लेकिन जब इन पोस्टर बैनरों को गहराई से देखा जाए तो पता चलता है कि इनके जरिये सियासती दांव भी चले जा रहे है। पोस्टर बैनर पर फूल छाप के बडे नेताओं के फोटो भी लगाए जा रहे है,ताकि जब नियुक्तियां हों तो इनका लाभ उठाया जा सके।

लेकिन फूल छाप के जिले के मुखिया चुप्पी साधे बैठे है। अभी तक उन्होने अपने पत्ते नहीं खोले है। उनकी टीम में जगह पाने का तमन्नाई हर नेता उनके आगे पीछे चक्कर लगा रहा है और वे है कि हर किसी को बस उम्मीद रखने की सलाह दे रहे है। अभी तक उन्होने इस बात का इशारा तक नहीं किया है कि वे अपनी नई टीम आखिर कब बनाएंगे? श्रावण मास में भगवत भक्ति कर रहे सारे नेता भगवान से यही ्प्रार्थना कर रहे है कि श्रावण मास में किए गए उनके आयोजनों के बदले उन्हे कोई ना कोई दमदार पोस्ट जरुर दिलवा दे।

शहर में अवैध तरीके से चलाए जा रहे पांच मदरसों को बन्द करने की तजवीज काफी पहले से की जा चुकी थी। इनमें से एक लडकियों वाले मदरसे में तो भोपाल से आई मैडम जी ने खुद निरीक्षण कर लिया। मैडम जी के निरीक्षण के बाद पहले जिला इंतजामिया की नम्बर दो वाली मैडम जी निरीक्षण के लिए पंहुची और बाद में बडे साहब खुद वहां नजर मार कर आ गए। लेकिन अब तक मदरसों को बन्द करने का मामला एक इंच भी आगे नहीं सरक पाया।

अब तो बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाले आयोग के चेयरमेन साहब ने खुद जिला इंतजामिया को इस मदरसे पर कार्रवाई करने के लिए पत्र भेज दिया है,लेकिन जिला इंतजामिया है कि कार्यवाही करने को तैयार ही नहीं है। सवाल ये है कि जिला इंतजामिया को आखिर डर किस बात का है। मदरसे को बन्द करने में मुश्किल क्या है? अब ना तो देश की राजधानी में और ना ही सूबे की राजधानी में ऐसी सरकार है जो जालीदार गोल टोपी वालो के हर जायज नाजायज काम पर आंखे मूंद लेती थी। अब तो सरकारें खुद इंतजामिया को कडे कदम उठाने के निर्देश देने लगी है। इसके बाद भी जिला इंतजामिया द्वारा कुछ ना कर पाना समझ से परे है।

ऐसा लगता है कि बालकों के अधिकारों की रक्षा करने वाला आयोग जब कडे कदम उठाएगा तभी शायद इन अवैध मदरसों का मामला निपट पाएगा। जब तक आयोग की तरफ से जिला इंतजामिया को कोई कडी फटकार नहीं लगेगी तब तक शायद मदरसे इसी तरह चलते रहेंगे।

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